संस्कृत विद्यालय के ऋषिकुमारों ने शोभायात्रा निकाल कर मनाया संस्कृत दिवस।।
उत्तरकाशी। भाद्र मास की पूर्णिमा के शुभ अवसर पर श्री विष्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत दिवसव का पर्व वेदमंत्रों के साथ घूम-धाम से मनाया गया ।
संस्कृत वक्ताओं ने कहा कि विष्व की सबसे प्राचीनतम् भाशा संस्कृत है तथा यहा सभी भाशाओं की जननी है। यही वज कि देववाणी संस्कृत से पुराण,उपनिशद,आदि ग्रन्थों की रचना की गई है। संस्कृत दिवस क षुभअवसर पर संस्कृत भाशा उन्नयन एवं उत्थान के लिये महाविद्यालय के आचार्याें एवं ऋषिकुमारों ने जन जागरण के लिया शोभायात्रा निकाली। इसके बाद महाविद्यालय के सभागार में संस्कृत भाशण, प्रतियोगिता एवं विचार गोश्ठी का आयोजन किया गया है। इस दौरान लगभग 62 ऋशिकुमारों को पूरे विधिविधान से योज्ञोपवीत्र संस्कार करवाया गया। इस मौके पर महाविद्यालय के प्राचार्य उमेष प्रसाद बहुगुणा, स्वामी राघवानंनद महाराज ,चिरंजीव सेमवाल,डाॅ. द्वारिका प्रसाद नौटियाल, आचार्य अनिल बहुगुणा, वेदाचार्य लवलेश दुवे, सत्येंद्र कुमार राठोर, आकदी मौजूद रहे है।
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जनेऊ के धार्मिक -वैज्ञानिक महत्व
वेदों में जनेऊ धारण करने के निर्देश को कहते उपनयन संस्कार।
जनेऊ धारण करने वालों को ह्रदय रोग संभावना को कम करता
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी। योज्ञोंपवीत्र को व्रतबन्धन कहते है। व्रतों से बंधे बिना मनुश्य का उत्थान संभव नहीं है। यज्ञोंपवीत्र को व्रतषीलता का प्रतिक माना जाता है। इस लिये इसे सूत्र भी कहते है। हिन्दु धर्म में 16 संस्कारों में जनेऊ छठा संस्कार माना जाता है, षास्त्रों में यम-नियम को व्रत माना गया है। बालक की आयुवृद्वि के लिये गायत्री तथा वेदपाठी का अधिकारी बनने के लिए जनेऊ संस्कार अत्यन्त आवष्यक है। धार्मिक दृश्टि से माना जाता है कि जनेऊ धारण करने से शरीर शुद्व और पवित्र रहता है। शास्त्रों के अनुसार आदित्य,वसु,रूद्र, वायु,अग्नि,धर्म,आग,सोम,एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में माना गया है। उसे दाएं का हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्ता होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से जनेऊ पहनना लाभदायक है यह केवल धर्माज्ञाही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है। चिकित्सकों के अनुसार जनेऊ के ह्रदय के पास से गुजरने से यह ह्रदय रोग संभावना को कम करता है। जनेऊ पहने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ तबतक नहीं उतार सकता जबतक कि वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न करले। इससे जीवाणुओं के रोगों से बचाता है। मल- मूत्र विसर्जन से पूर्व जनेऊ को कान पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबन्ध पेट की आतों से हाता है, आतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है।