धन और स्वास्थ्य के लिए धनतेरस मनाने के नियम और लाभ

डाॅ हरीश मैखुरी

धनतेरस का महत्व, मनाने के नियम और लाभ- आज के दिन धन के देवता कुबेर और आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है इससे अक्षय धन ? व आरोग्य प्राप्ति होती है आज सबसे पहले रिद्धि सिद्धि और बुद्धि के देवता गणेश जी का पूजन करें तत्पश्चात षोडशोपचार करें और धन ? के लिए कुबेर जी और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि का स्मरण करें उनकी मूर्तियों का पंचामृत स्नान करायें और उनका पूजन करें।  तत्पश्चात जौ तिल घी गूगल टगर से हवन करें। इन दोनों देवताओं के लिए मधुर मिष्ठान, मधुर फल और उड़द के पकौड़े पूरी दही और महाप्रसाद अर्पित करें और जो भी सामग्री आज के दिन आपने धनतेरस हेतु खरीदी है उसे भगवान के लिए समर्पित करें। शाम को घर में चारों तरफ दिए जलाएं और सुगंधित मंगलदीप धूप जलाएं। घर के चारों कोनों में गारे वाला नमक व हल्दी गांठ लोहे या स्टील के बर्तन में रखें। तथा घर के चारों तरफ आज व कल रात्री राई राड़ा व लाल पिठांई मिला कर डालें इससे आपके घर की नकारात्मक प्रभाव चले जाएंगे और घर में सुख समृद्धि शांति और आरोग्य आएगा। ध्यान रहे धनतेरस व दीपावली किसी भी दिन उल्लू बलि आदि से तामसिक पूजा कदापि ना करें यह अधोगामी और नर्क वास कराता है।आज आरोग्य के देवता धनवन्तरि का अवतरण दिवस है। आज के दिन समुद्र मंथन से उनका विष्णु स्वरूप प्रकाट्य हुआ। प्राचीन काल में राजा व ऋषि-मुनि, प्रजा के आरोग्य रहने की कामना भगवान धन्वन्तरि जी से करने हेतु हवन-पूजन करते थे, ताकि वातावरण शुद्ध रहे और शुद्ध प्राणवायु फेफड़ों में संचित रहे।

स्कंद पुराण’ में आख्यान आता है कि धनतेरस को दीपदान करनेवाला अकाल मृत्यु से पार हो जाता है । धनतेरस को बाहर की लक्ष्मी का पूजन धन, सुख-शांति व आंतरिक प्रीति देता है । जो भगवान की प्राप्ति में, नारायण में विश्रांति के काम आये वह धन व्यक्ति को अकाल सुख में, अकाल पुरुष में ले जाता है, फिर वह चाहे रुपये-पैसों का धन हो, चाहे गौ-धन हो, गजधन हो, बुद्धिधन हो या लोक-सम्पर्क धन हो ।*

*धनतेरस का सत्संग कहता है कि आप अपने प्रकाश में जियो, सारे ब्रह्मांडों को जो सँभाल रहा है वही सबका आत्मस्वरूप है । धनतेरस को इस आत्मधन का चिंतन करें । आत्मसुख के लिए अंतरंग साधना है । 

लेकिन अब धनतेरस अमीरों के लिये जेवरात और गरीबों के लिये बर्तन या चांदी का सिक्का खरीदन तक  सीमित हो गया, पटाखे छुरड़ी जैसे जहर और चाईनीज कबाड़ से बाजार पटे पड़े हैं, सामानों से, सब्जी की ठेली वाला भी आज बर्तन की लगाये हैं । चहल-पहल है परन्तु नहीं है तो कहीं भी धन्वन्तरि का नाम, जिनके अर्चन के लिये पुरखों ने आज का दिन नियत किया था।   आज के दिन पुराने रोगी और गंभीर बीमार व्यक्ति के ऊपर से गरुड़ पंख अथवा कंडाली याा नीम पीपल की झाड़ी से रोग को झाड़ने की भावना करें और उसे तुलसी नीम व मिश्री मिला हुआ गंगाजल चांदी की  चमच से अथवा अनार की कलम से तीन या सात बार पिलाएं। यह रोग शामक है।