सती प्रथा भारत में कभी थी ही नहीं

सतीप्रथा भारत में कभी थी ही नहीं। सती  शब्द संस्कृत के सत्यनिष्ठ से बना है जिसका भावार्थ  सत्य निष्ठा से रहना है  । महिलाओं के संदर्भ में सती का अर्थ हुआ सच्ची या निनिष्ठावान  पत्नी। माता सती अनुसुइया की कथा जिसमे उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बच्चा बना दिया था। उन्होंने तीनों  देवों को अपने सतीत्व की शक्ति से बच्चा बना दिया। इसका अर्थ हुआ कि अनुसुइया जिंदा रहते हुए ही सती थी।  परन्तु  ईसाई मिशनरियों और वामपंथी इतिहासकारों ने प्रचारित किया कि हिंदुओं में पत्नी, चिता पर जल कर मर जाति थी उसे सती कहते थे..
जबकि सती शब्द की अर्थानुसार किसी भी सत्य निष्ठ  “जिंदा” पत्नी को सती कहा जाता  है। आज भी लोग अपनी  लड़कियों का नाम  सती रखते हैं । 
दूसरा उदाहरण सावित्री का जिन्होंने अपने सतीत्व के बल पर यमराज से अपने पति को जिंदा करवा लिया। मतलब सावित्री भी जिंदा होते हुए सती थी। 
अहिल्या और माता सीता भी सती थी पर इन दोनों ने भी जल कर आत्मदाह नहीं किया। 
माद्री को कई लेखों में अम्बेडकरवादियों द्वारा सती दिखाया गया जबकि सच्चाई कुछ और है। दुर्वासा का पांडु को शाप था कि जिस दिन पांडु अपनी पत्नी से सहवास करेंगे उनकी उसी दिन मौत हो जाएगी। पाण्डु ने इसीलये अपनी पत्नियों से दूरी बना के रखी क्योंकि वे मरना नहीं चाहते थे पर एक दिन माद्री नदी से नहा कर बिना कपड़ों के निकली और उन्हें देख कर पांडु ने अपना संयम खो दिया और पाण्डु ने माद्री से सहवास किया इसके बाद पाण्डु का देहांत हुआ, माद्री ने खुद को पाण्डु की मौत का जिम्मेदार मान का आत्महत्या की जिसे हिंदू विरोधी,वामपंथी और ईसाईयों ने हिंदुओं की सती प्रथा कह के झूठा प्रचार किया। 
इतिहास में कई विधवाएं हुयीं पर किसी ने आत्मदाह नहीं किया। रावण की विधवा पत्नी मंदोदरी, राम की तीनों माताएं विधवा थी, पर आत्मदाह नहीं किया। अंग्रेज़ो से आने से पहले शिवजी की माता जीजाबाई ने भी विधवा होते हुए आत्मदाह नहीं किया…
राजस्थान में क्षत्रिय राजपूत परिवार की महिलाओं ने मुगल आआक्रांताओं द्वारा युद्ध में  मारे गए अपने पतियों के वियोग और मुगलों द्वारा रखैल बनाये जाने के विरोध में जौहर किया  जो सिर्फ राज परिवार तक सीमित था यानी साधारण क्षत्रियों की महिलाएं भी जौहर  नहीं करतीं थीं… इतिहास में कोई सबूत नहीं कि ब्राह्मणों और वैश्यों की महिलाओं  कभी इस तथाकथित सती प्रथा का पालन किया पर इतिहास में सम्पूर्ण हिंदुओं की प्रथा बात कर हिन्दू समाज को बदनाम किया गया है। हिन्दू भी अपने बचाव में कहते फिरते हैं कि सती प्रथा अतीत में होती थी, अब तो नहीं होता। जबकि उन्हें कहना चाहिए कि सती प्रथा कभी थी ही नहीं…
सती का उल्लेख किसी भी हिन्दू धर्म की पुस्तक में नहीं मिलता, किसी वेद में भी नहीं, मनुस्मृति में भी नहीं.. इतनी नकारात्मकता हिन्दू धर्म के खिलाफ 2000 साल पुराने जोशुआ प्रोजेक्ट के अन्तर्गत सोच समझ कर फैलायी गई है ताकि हिन्दू अपने धर्म पर शर्मिंदा महसूस हों और हिन्दू धर्म छोड़ें ताकि ईसाईयत में उनका धर्मान्तरण आसान हो जाए…
सभी धर्मपरस्त हिन्दू बहुत समय से एक मनोवैज्ञानिक युद्ध के मैदान में हैं…दुश्मन हिन्दू समाज व धर्म को खत्म करना चाहता है और इस मनोवैज्ञानिक युद्ध मे दुश्मन को हराने में हमारा सबसे बड़ा हथियार होगा हमारा “ज्ञान” भारत की तो सत्य निष्ठा से काम करने वाली हर कामकाजी गृहिणी सती माता है।