शिवसेना का चीरहरण

 
*शिव सेना का चीर हरण*        
महाराष्ट्र में असेंबली चुनाव हुए..शिवसेना ५६ सीट जीतकर दूसरे नं पर आयी इस जीत की खुशी का इजहार करने आज के ठाकरे सर्वप्रथम आशीर्वाद / पनौती सौरी मनौती मांगने अजमेर चिस्ती की दरगाह गए !  
जिस चिश्ती (मोहम्मद गौरी का रहनुमा और मुख्य सलाहकार)  जिसने डेढ लाख हिंदू पुरूषों का कत्ल करवा कर उनकी बहन बेटियों पत्नियों को कैद कर कर  वैंग्न्स में भर भर कर  उसके देश अफगानिस्तान तोहफे मे भेजवाया दिया था , इतिहास गवाह है कि आफगानिस्तान के गजनी शहर में इन भारतीय हिंदू स्त्रियों को नीलाम कर दिया गया …और दिल्ली में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को जयचंद  के साथ मिलकर धोखे से २ बजे रात बंदी बना दिया था…. लोहे की सलियों को भट्टी में लाल कर पृथ्वीराज की  आंखे निकलवा दीं …. उधर पृथ्वीराज की पत्नी रानी संयोगिता ने ,  मौलवी चिश्ती के हाथ आने से पूर्व ही कटार से स्वंम को बलिदान कर दिया था …. परंतु इधर पृथ्वीराज की दो  वीरांगना बेटियां गौरी के सिपाहियों के घेरे मे फंस गईं ….. चिश्ती ने  अफगानी सेनिकों को निर्देश दिया कि दोनों को मैदान में लाया जाए …. जंजीरो मे जकडी दोनों बेटियों को मौलवी चिश्ती के सम्मुख लाया गया …. चिश्ती ने याखुदा सुहानल्ला कह कर  उन दो सैनिको को और्डर किया जो पृथ्वीराज की बेटियों को जकडे थे कि… इन दोनो का *जेहालतबख्त (चीरहरण)* कर दो …. सैनिकों ने पृथ्वीराज की बेटियों का चीरहण करने जैसे ही बेडियां खोलीं … बीरांगनाओं ने विद्युतगति से दोनों सैनिकों से श्मशीर छीनी और बिजली की तेजी से एक ही वार में दोनों ने उन दोनों अफगानी सैनिकों की गर्दन काट दी और उसी तेजी से एक दूसरे की छाती पर श्मशीर गाड दी…..स्वंय के सम्मान , राज्य व देश के सम्मान की खातिर प्राणों की आहुती दे दी…..           
 *हिंदू हृदय सम्राट महान बालासाहेब*  की आत्मा अंतरिछ में कहीं छोभ कर रही होगी ….यह सोच कर कि उनकी …दूसरी तीसरी पीढी सत्ता का आशिर्वाद लेने उनकी कुलदेवी *तुलजाभवानी*  के बजाय सबसे पहले उसी  *चिश्ती* की दरगाह में गए …! हैरानी है ।
              जिन बाला साहेब की चौखट पर देश के बडे बडे नेता आशीर्वाद मांगने भेंट करने उनके दरबार में आते थे उन्ही का वंश आज कुर्सी के लिए उनके सिद्धातों व वसूलों  के खिलाप जाकर उन पार्टीयों के पास कटोरा  लेकर दौड रहा है जिनके खिलाप बाळा साहब ने पूरे जीवन खिलापत की ….. काश उद्धव व आदित्य  चिश्ती की दरगाह की चौखट पर माथा रगडने के बजाय उनकी कुलदेवी  *मां तुलजा भवानी* का आशीर्वाद  लेकर मुंबई लौटते, तो शायद इतना न भटकना पडता….????               
….राकेश पुंडीर …..