आज पूर्णिमा से शुरू श्राद्ध, 16 दिन तक भूलकर भी न करें ये काम

* पूर्णिमा से शुरू श्राद्ध, 16 दिन तक भूलकर भी न करें ये काम*….

आज यानि पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू हो जाएंगे। ये 15 दिन तक होते हैं। इस साल पितृपक्ष 13 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि इन 15 दिन हमारे पितृ पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। इन 15 दिनों में पितृों को पिण्ड दान तथा तिलांजलि कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए। श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। पितृपक्ष 13 से शुरू होकर 28 सितंबर को पितृविसर्जन के साथ समाप्त होगा। पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है। श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए। आपको बता दें कि इस बार 14 को प्रतिपदा और 15 सितम्बर को द्वितीया का श्राद्ध होगा और 28 सितम्बर को सर्व पितृ अमावस्या का श्राद्ध होगा। 16 को मध्याह्न तिथि न मिलने के कारण श्राद्ध नहीं होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पितृपक्ष का मान प्रतिपदा से अमावस्या तक है। इस बार दशमी और एकादशी तिथि का श्राद्ध एक ही दिन होगा। 
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार श्राद्ध में कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें शास्त्रों में वर्जित माना गया है। उनके अनुसार श्राद्ध में कोई भी नया काम शुरू नहीं करना चाहिए। श्राद्ध में नए घर का निर्माण और प्रवेश नहीं करना चाहिए। इससे हानि होती है। इसके साथ ही विवाह संबंधी कार्यों को भी वर्जित माना गया है। इसके साथ ही किसी तरह की खरीदारी को भी श्राद्ध में वर्जित माना गया है। श्राद्ध में पूजा-पाठ के साथ जन्मदिन मना सकते हैं। श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को पीपल की जड़ में 12 ने पर खीर रखने से मात्र फिटकार से मुक्ति तथा अपने चौक या छत पर कौवे को पूरी खिलाने से पित्र दोष समाप्त होते हैं। हरिद्वार और बद्रीनाथ में जाकर अपने पितरों के पिंडदान और तर्पण करने से वे सदैव बैकुंठ लोक में वास करते ।  जबकि गाय को गोग्रास रोटी या पींडा देने से जो व्यक्ति अल्पायु में मरते हैं उनकी मुक्ति और शांति हो जाती हैश्राद्ध करने से मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, बल, धन और सुख प्राप्त करता है।-गरुड़ पुराण
श्राद्ध पक्ष में रोज गीता के 7वें अध्याय का पाठ और 1माला ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1माला “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा” करके फल पितरों को अर्पण करना चाहिए। 

*कब कौन सा श्राद्ध*
13 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध
14 सितंबर पहला श्राद्ध
15 से 16 सितंबर तक दूसरा श्राद्ध
17 को तृतीय श्राद्ध
18 को चतुर्थी श्राद्ध
19 को पंचमी श्राद्ध
20 को षष्टी श्राद्ध
21 को सप्तमी श्राद्ध
22 को अष्टमी श्राद्ध
23 को नवमी श्राद्ध
24 को दशमी श्राद्ध
25 को एकादशी और द्वादशी का श्राद्ध
26 को त्रयोदशी श्राद्ध
27 चतुर्दशी श्राद्ध
28 सर्व पितरी श्राद्ध