देहरादून मेयर पद पर सुनील उनियाल गामा की जीत के मायने

डाॅ. हरीश मैखुरी

देहरादून के मेयर पद पर सुनील उनियाल गामा की जीत सीधे-सीधे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की साख से जुड़ा हुआ चुनावी जंग थी। मुख्यमंत्री खुद भी इस चुनाव के परिणामों की पल-पल की स्थितियों पर नजर रखे हुए थे  और उन्होंने गामा की जीत के तुरंत बाद ही  अपना फेसबुक अपडेट दिया। 

गामा सरल कर्मठ और गंभीर राजनीतिज्ञ हैं इसीलिए उनको चमोली पौड़ी टिहरी उत्तरकाशी रुद्रप्रयाग अल्मोड़ा बागेश्वर पिथौरागढ़ से देहरादून में आकर बसे लोगों का पूरा प्यार और सम्मान मिला इसका एक साफ संदेश है कि देहरादून को मलिनता पसंद नहीं है इसलिए जो लोग देहरादून को मलिन बस्ती बनाना चाहते हैं गामा उनके लिए एक सबक है कि देहरादून का समीकरण बदल गया है, अब पहाड़ जो ठान ले वो देहरादून में हो सकता है, गामा की 35 हजार 600से ज्यादा की बढत के यही सबक हैं, यह मुख्यमंत्री के लिए भी सबक है कि वे देहरादून को मलिन बस्ती बनाने की बजाय खूबसूरत सुसज्जित ग्रीन और क्लीन देहरादून बनाने की दिशा में काम करें। गामा की जीत के कारण डोईवाला अपने गृह नगर और चुनाव क्षेत्र की भी काफी हद तक भरपाई हुई है। भाजपा को 5 शहरों के मेयर दे कर मुख्यमंत्री को भी एक सज्जन व्यक्ति होने के नाते पहाड़ ने सम्मान बक्शा है। लेकिन आगे मुख्यमंत्री पहाड़ की परवाह नहीं करते, गैरसैंण पर स्टैंड नहीं लेते, चार धाम यात्रा मार्ग पर जो सुप्रीम कोर्ट का स्टे लगा है उसको भैकिट नहीं कराते, उत्तराखंड के गांवों की रोड कनेक्टिविटी नहीं बनाते, पहाड़ के गांव में रह रहे लोगों के लिए स्कूल और अस्पताल की व्यवस्थाएं नहीं जुटा पाते हैं इसका जो प्रतिकूल प्रभाव गांवों पर पड़ेगा वही मुख्यमंत्री पर पड़ना भी तय समझा जाता है। कुछ लोग पार्षदों के रूप में निर्दलीय प्रत्याशी जीते हैं पार्टियों की हार बताकर अपना मन बहलाने की कोशिश भी कर रहे हैं। दरअसल जो पार्षद पद के निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं उनमें से ज्यादातर किसी न किसी दल के जमीन से जुड़े हुए सक्रिय कार्यकर्ता कार्यकर्ता हैं लेकिन पार्टी ने इन मजबूत कार्यकर्ताओं जमीनी कार्यकर्ताओं को महरूम कर के चमचों को टिकट दिया इस कारण पार्टियों के प्रत्याशी हार गए और यह निर्दलीय सक्रिय कार्यकर्ता जीत गए। दरअसल यह पार्षद के लिए ये कार्यकर्ता पिछले तीन-चार सालों से ही अपने क्षेत्र में जमीनी स्तर पर तैयारी कर रहे थे और लोगों की जन समस्याओं से सीधे सीधे जुड़े हुए थे इसी कारण यह निर्दलीय जीत गए हैं और यहां पार्टी प्रत्याशियों का भारी-भरकम बैनर झंडा-डंडा और पैसा धूल चाटते रह गया, छोटी इकाइयों के चुनाव में अक्सर ऐसा ही होता है। कुछ लोग इस चुनाव को मोदी लहर से जोड़कर भी देख रहे हैं दरअसल मोदी लहर का स्थानीय निकाय चुनाव से कोई लेना-देना है ही नहीं, मोदी लहर 2019 में भी बरकरार रहेगी ऐसा अनुमान किया जा रहा है। क्योंकि उसके आगे कांग्रेस के जो प्रपोज्ड प्रधानमंत्री हैं वे सतही और एक तरह से जग हंसाई वाले ही हैं यही नहीं कांग्रेस को ठिकाने लगाने में इन का योगदान रह सकता है