साल में एक दिन के लिए खुलते हैं इस मंदिर के कपाट

 

हरीश मैखुरी/जितेन्द्र पंवार

नंदा देवी राजजात के समय एक अंतिम पड़ाव वाण गांव आता है यहीं पर माता भगवती के भाई लाटू देवता जो कि नंदा देवी के अगवानी वीर कहे जाते हैं उनके मंदिर के कपाट खोलने की भी एक विशेष तांत्रिक पूजा होती है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस लाटू मंदिर के कपाट वर्ष में एक दिन बैशाख माह की बुद्ध पूर्णिमा को भी एक केवल एक दिन के लिए खुलते हैं और रात को तांत्रिक पूजा के बाद इस मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं।

आज इसी अवसर पर क्षेत्रीय विधायक मगन लाल शाह इस यात्रा को प्रमोट करने और पिछड़े क्षेत्रों को आगे लाने के लिए यहां पहुंचे उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि लाटु देवता के कपाट खुलने के अवसर पर वाण गांव में श्रद्धालुओं को भी संबोधित किया। मीडिया से मुखातिब होते हुए शाह ने कहा कि हमें उत्तराखण्ड में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना है और स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ना है।

कहां है ये मंदिर

यह मन्दिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल ब्लॉक में वांण गाऊ में स्थापित है। राज्य में यह देवस्थल लाटू मंदिर नाम से विख्यात है, क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती है। इस मंदिर में किसी वीआइपी की भी नहीं चलती है। वीआइपी की छोड़िए, यहां इस मंदिर के पुजारी की भी नहीं चलती है। पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर देवता की पूजा करनी पड़ती है। श्रद्धालु इस मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रहकर पूजा कर मन्नतें मांगते हैं। आपने देश में मौजूद कई अजब-गजब मंदिरों के बारे में सुना होगा। कई ऐसे भी मंदिर हैं जिनमें औरतें नहीं जाती कुछ में पुरुष नहीं जाते या कुछ रात में बंद रहते हैं लेकिन क्या ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जिसमें किसी का भी जाना मना है। ये एक ऐसा मंदिर है जहां पुजारी को भी आंख पर पट्टी बांधकर पूजा करने की इजाजत है।

क्या है मान्यता
उत्तराखंड की जनश्रुतियों के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या नंदा देवी के धर्म भाई हैं। दरअसल वांण गांव प्रत्येक 12 वर्षों पर होने वाली उत्तराखंड की सबसे लंबी पैदल यात्रा श्रीनंदा देवी की राज जात यात्रा का बारहवां पड़ाव है। यहां लाटू देवता वांण से लेकर होमकुंड तक अपनी बहन नंदा देवी की अगवानी करते हैं।
इस मंदिर के कपाट साल में एक ही दिन वैशाख माह की पूर्णिमा को खुलते हैं और पुजारी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट खोलते हैं। श्रद्धालु और भक्त दिन भर दूर से ही लाटू देवता का दर्शन कर पुण्यभागी बनते हैं। लाटू देवता के कपाट खुलने के शुभ अवसर पर यहां विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ का आयोजन किया जाता है। इस दिन यहां एक विशाल मेला लगता है।

अन्धे हो सकते हैं लोग!
लोगों का मानना है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात रूप में नागराज अपने अद्भुत मणि के साथ वास करते हैं, जिसे देखना आम लोगों के वश की बात नहीं है। पुजारी भी साक्षात विकराल नागराज को देखकर न डर जाएं इसलिए वे अपने आंख पर पट्टी बांधते हैं। लोगों का यह भी मानना है कि मणि की तेज रौशनी की चुंधियाहट इन्सान को अंधा बना देती है। लोग यह भी कहते हैं कि न तो पुजारी के मुंह की गंध तक देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए। इसलिए वे नाक-मुंह पर पट्टी लगाते हैं। इस मंदिर में स्थित नागमणी की चकाचोैंध से बचने के लिए इस तांत्रिक पूजा के विशेष पुजारी भी अपने चेहरे को कपड़े से ढककर ही पूजा प्रक्रिया संपन्न करते हैं।