2अक्टूबर को उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों पर जो भीषण नरसंहार व अत्याचार हुआ वो आजादी के बाद की सबसे बड़ी दुर्दांत हिंसक घटना

अशोक अग्रवाल लिखते हैं 
आन्दोलनकारी, पृथक उत्तराखण्ड की माँग के समर्थन में, दिल्ली में धरना प्रदर्शन के लिए जा रहे थे, जब अगले दिन, बिना उकसाए उत्तर प्रदेश पुलिस ने १ अक्टूबर, १९९४ की रात्रि को आन्दोलनकारियों पर गोली चला दी,जलियांवाला बाग गोलीकांड की तरह आन्दोलनकारियों को गोलियों से भून दिया गया।इससे भी शर्मनाक और अमानवीय मामला तब हुआ जब गोलीबारी के बाद सैकड़ो महिलाओं का पुलिस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मिलकर सामूहिक ब्लात्कार जैसे शर्मनाक कृत्य को अंजाम दिया गया। आज भी इस कांड में बड़ी मात्रा में लोग लापता हैं।घटना के चश्मदीदों ग्रामीणों की शिकायत थी कि असली हताहतों का विवरण छुपाने के लिये भारी मात्रा में हुई निर्मम हत्या और ब्लात्कार के बाद उन्हें चुपचाप दफना दिया गया।गायब महिलाओं के कपड़े गन्नों के खेत में बरामद जरूर हुए लेकिन महिलाओं का कोई अता-पता आज तक नही लगा।मुख्यमंत्री की सह पर इस भीषण कांड को अंजाम दिए जाने के आरोप लगे।चूंकि केंद्र के निर्देश पर इस कांड की मांटिरिंग खुद मुख्यमंत्री कर रहे थे,मुख्यमंत्री ने ही गोली चलाने के आदेश जारी किए थे।

लिहाजा मुलायम सिंह यादव को इस नरसंहार और सामूहिक बलात्कारों की घटनाओं के लिए दोषी माना गया।उस समय समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री थे। FIR दर्ज हुई,कोर्ट के आदेश पर CBI जाँच भी हुई,कई पार्टियां और नेताओं को इस मुद्दे पर सत्ता हाँसिल हुई लेकिन अफसोस सबने इस मामले में केवल लीपापोती और औपचारिकताए निभाई गई।परिणामस्वरूप उतराखण्ड आंदोलन में मारे गए आंदोलनकारियो और बलात्कार पीड़ित महिलाओं को आज तक कोई न्याय नही मिला

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एडवोकेट के पी काला लिखते हैं 
रामपुर तिराहा हत्या एवम बलात्कार कांड 1984
उत्तराखंड के आन्दोलनकारियों पर बर्बर प्रहार।
इस केस में कुछ भी नहीं होने वाला। सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु या आत्महत्या या हत्या, जो भी आप कहना चाहें, हुए अभी 90 दिन भी नहीं हुऐ और मुम्बई पुलिस महकमे ने सारे सबूत नष्ट कर दिये। केवल 90 दिन पुराना केस। और साक्ष्य नहीं मिल रहे CBI को।
तो भाईजी रामपुर तिराहा हत्या बलात्कार कांड तो 1994 में हुआ था, आज से 26 साल पहले।  वहाँ सबूत अभीतक मौजूद होंगे क्या? दूसरी बात ये कि इस रामपुर तिराहा कांड मे सारे अभियुक्त पुलिस और जिला प्रशासन के सबसे बडे अधिकारी थे। जो तब DM रहा होगा वो आज उ0प्र0 के मुख्य सचिव रैंक IAS अधिकारी होगा। या उस समय का SP, SSP आज DGP होगा। कयी अभियुक्त तो सेवानिवृत्त या जीवन से भी निवृत है चुके होंगे। इतने बडे अधिकारियों के खिलाफ 26 सालों बाद सबूत जुटाना, या सबूत मिलना संभव है क्या? असंभव, असंभव, बिलकुल असंभव।
तो ये सब नौउटंकी चलाई जाती है खासकर चुनावों के समय। लोगौं को बेवकूफ बनाया जाता है ये सब कहकर।  सामान्य सी रिया चक्रवर्ती के खिलाफ तो सबूत मिल नहीं रहे, तो क्या 26 सालों बाद Chief Secretary rank के IAS के खिलाफ या  DGP rank के पुलिस अधिकारी के खिलाफ सबूत मिलेंगे क्या? ये एकदम बकबास है। तब  इन चुनावी नेताओं ने और उत्तराखंड की क्षेत्रीय पार्टियों ने कोई भी प्रयास नहीं कि यामजब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सूप्रीम कोर्ट में उप्र ने अपील दायर की थी और अब बकबास करते हैं। उसी समय उस अपील के खिलाफ बहुत ईमानदारी से सशक्त पैरवी करनी चाहिए थी उत्तराखंड के सभी क्षेत्रीय दलों को मिलकर। वो तो किया नहीं। और अब चिल्ला रहे रामपुर तिराहा कांड वोट पाने के मकसद से। सूप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस रबि धवन की खंडपीठ के फैसले को खारिज कर दिया। हासिल पाया जीरो। 
एक शेर का मजा लीजिए
किस किस की परवाह कीजिए औ किस किस को रोईए।
आराम बड़ी चीज हे मुंह ढक के सोजाइए।
इस विषय पर  जनता को बरगलायें नहीं, वोट पाने के लिए अपने अच्छे कार्य करते रहें।
उमेश रावत लिखते हैं 
उत्तराखंड बने 20 साल और उत्तराखंड शहीदो की वर्षी के 26 साल बीत जाने के बाद भी आज तक न्याय की गुहार लगाये उत्तराखंड की तमाम जनता एवं शहीदों के परिवार
जहाँ देश 2 अक्टूबर को अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी जी पुण्य तिथि माना रहा था वही 2 अक्टूबर 1994 उतराखंड़ के सीधे साधे आन्दोलनकारियोॅ के साथ मुज्जफर नगर रामपुर तिराहे मे जघन्य अपराध हुआ तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस ने जो हरकत की वह शर्मसार करने वाली है। तब केन्द्र में काॅग्रेस की सरकार थी ओर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। वह मंजर आज भी दिल को दहला देना वाला है। आखीर कब तक न्याय मिलेगा उन शहीदों को जिनका एक लौता घर का चिराग बुझ गया था। माँ के सामने बच्चे को गोलियोॅ से भून दिया गया हो माँ बहिनो के साथ जो हुआ वह इतिहास मे आज भी गवा है आज तक कभी कभी ऐसा नहीं हुआ कि माँ बहिनो की आंदोलन में इज्जत पर सवाल उठा हो यह घटना साबित करती है कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने कितनी बड़ी घिनौनी हरकत की। और दोषियो पर कोई उचित कारवाही करने बजाय उन्हें पदोन्नति दी गयी.यह बहुत बड़ा कलंक है जब तक दोषियोॅ सजा न मिल जाती है तब तक एक एक उतराखंडी का सपना अधूरा सा रहेगा। 
 कल हर साल की तरह की तरह शहीदो को श्रद्धांजलि दी जायेगी
रामपुर तिराहा गोली काण्ड भीषण नरसंहार के बाद सामूहिक ब्लात्कार!! पुलिस द्वारा उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के आन्दोलनकारियों पर उत्तर प्रदेश के रामपुर क्राॅसिंग, मुज़फ्फरनगर जिले में की गई गोलीबारी की घटना को कहते हैं।