‘म्येलु’ पौष्टिकता से परिपूर्ण जंगलों का औषधीय फल

*मेलू* यानि *मेहल* *षौष्टिकता* से परिपूर्ण *जंगली* *फल*आओ पहले जानें क्या है *मेलू* ।

उत्तराखंड में पाए जाने वाला जंगली फल मेलू राज्य की लोकसंस्कृति में रचा बसा हूआ है। पहले यह जंगली फल उत्तराखंड के जंगलों में यत्र तत्र सर्वत्र पाया जाता था जिसके कारण किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले बहुत से पक्षी और वन्य पशु खेतों की तरफ नहीं आते थे और वे जंगल में इन्हीं पेड़ों के फूल पत्ते फल खाकर गुजारा करते थे लेकिन जब से  ग्रामीणों ने इस मेलु पेड़ की शाखाओं को ठांकरे बनाने के लिए काटना शुरू किया तब से यह पेड़ कम हो गया है। यह एक तरह से किसानों की सुरक्षा दीवार थी जिसे ग्रामीणों ने अनजाने में ही तोड़ दिया है। 

 वर्तमान पीढी़ में इसके प्रति जिज्ञासा के अभाव में आज मेलू को उतना महत्व नहीं मिल पाया है जिसकी उसको दरकार है। 

अगर जंगली फलों को बाजार से जोड़कर देखा जाए तो ये फल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को संवारने का जरिया बनने के साथ ही जंगली जानवरों के लिये आसानी से भोजन भी उपलब्ध करा सकते हैं। जिससे जंगली जानवरों द्वारा कृषि को किये जा रहे नुकसानों को कम किया जा सकता है।

लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही है। इसी लिये विभिन्न पोषक तत्वों से परिपूर्ण ये फल सिर्फ लोकगीतों तक ही सिमट कर रह गए हैं।

जंगली खाद्य फलों में महत्वपूर्ण मेलू को वनस्पतिजगत में ~*_पाइरस_*~ *_पेसिया_* ( _Pyrus_ _pashia_ ) के नाम से जाना जाता है। रोजेसी परिवार के मेलू को *वाइल्ड* *हिमालयन* *पियर* या इन्डियन वाइल्ड पियर भी कहा जाता है। मेलू को उर्दू में बतंगी, कश्मीरी में तंगी तथा नेपाली में पासी कहा जाता है।

मेलू का पेड़ पर्णपाती प्रवर्ति का होने के साथ ही काष्ठीय कांटेदार होता है।

हिमालयी क्षेत्रों में मेलू के पेड़ 20 से 25 फीट तक की ऊँचाई लिये हुये 500 से 2000 मी0 तक गांव से लगे जंगलों तथा कृषि क्षेत्रों के आस पास प्राकृतिक रूप से बहुतायत संख्या में उगे हुये पाये जाते हैं। मेलू को साउथर्न एशिया का नेटिव यानि स्थानीय वासी माना गया है।

मेलू का पेड़ फरवरी मार्च के माह में फूलता है। इसके पेड़ पर बहुत सारे लाल पुष्पंज लगे सफेद फूल पेड़ की खूबसूरती के साथ ही धरती की सुन्दरता को बढा़ने में भी चार चांद लगा देते हैं।

उत्तराखन्ड में मेलू के पेड़ की धार्मिक मान्यता भी मानी गयी है। मेलू की शाख को काटकर होली की चीर बनायी जाती है। जिसका दहन होलिका के रूप में होली के छटवें दिन कर राख को होली का टीका देनें के लिये किया जाता है।

जंगली फलों में महत्वपूर्ण मेलू में एंटी ऑक्साइड, विटामिन की भरपूर मात्रा मौजूद होती है। इसके फलों को शूगर, प्रोटीन, ऐस, पैक्टिन के साथ ही मिनिरल्स जैसे फौसफोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, मैग्नीसियम तथा आयरन का अच्छा स्रोत माना गया है।

जानकारों द्वारा मेलू के फलों का सेवन पाचन शक्ति बढा़ने के साथ ही कैंसर जैसी घातक बिमारी के रोकथाम में उपयोगी माना गया है।

मेलू के पके फलों का रस जानवरों के आंखों के लाल होने वाले रोग (कन्जिंकेटिभ) के उपचार में मददगार माना गया है।

मेलू के फलों के जूस को डायरिया (पेट चलने की बिमारी) के उपचार में भी उपयोगी माना गया है।

मेलू के फलों का सेवन आमाशीय विकार, ज्वर, सरदर्द, पसीने की बिमारी, हिस्टीरिया (मूर्छा, बेहोशी) तथा ईपीलैप्सी (मिरगी) के उपचार में भी उपयोगी
बतलाया गया है।

मेलू की पौषटिकता को जंगली जानवरों खासकर भालू के शरीर एवं ताकत को देखकर आंका जा सकता है।

मेलू के पके फलों को पौष्टिकता की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना गया है। स्थानीय लोगों द्वारा मेलू के पक्के फलों को बहुत ही चांव से खाया जाता है।

मेलू का फल पौष्टिकता से भरा होने के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढा़ने मे काफी मददगार माना गया है।

मेलू के पके मीठे फलों का सेवन यथा समय शरीर को ताकत एवं ऊर्जा प्रदान करनें का कार्य करते हैं। ग्रामीण महिलाओं द्वारा जंगलों से सम्बन्धित कार्यों के सम्पादन हेतू जाने के समय रास्ते में मिलने पर मेलू के फलों को खूब खाया जाता है।

विशेषज्ञों की मानें तो मेलू के पेड़ की अपनी विशेष इनइकोलॉजिकल व इकोनामिकल वैल्यू है।

मेलू के पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में भी अहम भूमिका निभाते है, जबकि फल सेहत और आर्थिक लिहाज से महत्वपूर्ण है।

मेलू का पौधा बिभिन्न विपरीत परिस्थितियों में भी उग जाने एवं निरोगी गुणों के कारण अन्य नाशपाती प्रजातियों के पौधों के ग्राफ्ट हेतु रूट स्टाक के तौर पर खूब इस्तेमाल किया जाता है।

मेलू की लकडी़ मजबूत होने कारण, चलने की लाट्ठी, कृषि उपकरणों के हत्थे/बिंन्डे, इत्यादि बनाने के काम में लायी जाती है।

यदि आप सहमत हों तो श्वस्थ एवं निरोगी शरीर के लिये जून जुलाई में पकने वाले मेलू के फल का अवश्य सेवन करें और, जेम, जैली जैसे उत्पाद बना कर आर्थिक लाभ भी कमायें।

साथ ही राज की बात भी याद रखें कि जंगली फलों के महत्व को समझते हुये सभी को अपने अपने स्तर से इनकी पौध तैयार कर रोपड़ करने का प्रयास करना भी करना भी जरूरी है। “स्वस्थ भारत सुन्दर भारत”

डा0 विजय कान्त पुरोहित
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