शब्द ब्रह्म की सुर साधना का नाम है नरेन्द्र सिंह नेगी

डॉ हरीश मैखुरी

उत्तराखंड की लोक संस्कृति के मानदंड और यहां के जन-जन के दिलों में बसे संस्कृति नायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी किसी परिचय और शब्दों के मोहताज नहीं हैं, मैंने नरेंद्र सिंह नेगी को रेडियो व टेप रिकॉर्ड पर सुना था लेकिन उनका पहला लाईव शो 1987-88 में श्रीनगर में आयोजित “इण्टर काॅलेजिएट कल्चरल मीट” में देखा, तब उन्होंने रेखा धस्माना के साथ “चम चम चम चम चम चमकी घाम डांड्यूं मां, मायादारि आख्यूं का सुपिन्यां उड़िग्येनी” गीत प्रस्तुत किया, इसके साथ ही उस दिन बहुत से अन्य भी गीत गाए, उनके साथ घन्ना भाई भी थे। नेगी जी को करीब 1:00 बजे रात मंच पर बुलाया गया लेकिन भीड़ नेगी जी को देखने के लिए इतनी उतावली थी 1:00 बजे रात भी हजारों लोग उनका इंतजार करते रहे। तब से आज तक लोगों में नेगी के प्रति दीवानगी कम होने का नाम नहीं ले रही। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब नेगी जी का स्वास्थ्य नाशाद रहा, बताया जाता है कि उस समय गूगल पर नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाले नरेंद्र सिंह नेगी ही थे। नेगी जी सादगी और शालीनता की प्रतिमूर्ति हैं, जितना विनम्र उनका स्वभाव है उतने ही ऊंचे दर्जे के वह कवि और लोक गायक हैं। लगभग विलुप्त हो चुके हजारों गढ़वाली शब्दों को न केवल उन्होंने पुनर्जीवन दिया बल्कि उनको अपने गीतों के माध्यम से जन जन के बोल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज उत्तराखंड में बहुत सारे अच्छे गायक हैं लेकिन पैमाना नरेंद्र सिंह नेगी ही हैं, गायकों के लिए यही कहा जाएगा कि यह नरेंद्र सिंह नेगी से अच्छे हैं या नहीं हैं, लेकिन पैमाना नरेंद्र सिंह नेगी ही रहेंगे। नरेंद्र सिंह नेगी जैसे मानदंड स्थापित करना कोई हंसी खेल नहीं है, यह सतत् गहन शब्द ब्रह्म की सुर साधना है। संस्कृति के प्रति समर्पण और लोक जीवन के प्रति आस्था व लोकजीवन के स्तर को ऊंचा उठाने का संघर्ष है। समय-समय पर नरेंद्र सिंह नेगी ने उत्तराखंड की स्थिति व राजनीतिज्ञों पर भी अपने गीतों के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया, यह भी एक कारण हो सकता है जो अब तक नेगी जी को पद्म पुरस्कारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सका। पर सच कहूं तो नरेंद्र सिंह नेगी पुरस्कारों से ऊपर हैं, उनके एक एक शब्द और गीत उत्तराखंड के इतिहास और भूगोल और लोकजीवन का दर्पण है। उत्तराखंड की संस्कृति को दशा दिशा देने में नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही नहीं गढ़वाली साहित्य की मानकीकरण की दिशा में भी नरेंद्र सिंह नेगी के द्वारा गाये गये शब्द महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके शब्दों का वाक्य विन्यास प्रस्तुतीकरण एवं प्रकटीकरण इतना सुंदर है कि उसे यहां के जनमानस ने अंगीकृत कर लिया। गढ़वाली बोली अब धीरे-धीरे मानकीकरण की ओर बढ़ रही है। उनके जागर देव गायन और उनकी पुस्तक ‘गांण्यूं कि गंगा अर स्यांण्यूं का समोदर’ का अध्ययन करने पर नरेद्र सिंह नेगी की गढ़वाली भाषा संयोजन में महत्वपूर्ण योगदान का सुखद अहसास होता है। शेष फिर कभी। 04-07-2019