नव नियुक्त शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने बद्रीनाथ में धर्मध्वजा स्थापन के बाद ज्योतिष्पीठ का पदभार ग्रहण किया

अच्छी बात यह है कि भारत की सबसे प्राचीन शंकराचार्य की ज्योतिष पीठ को एक विद्वान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के रूप में मिल गया है। उन्होंने शास्त्र सम्मत रूप से ज्योतिष पीठ का विधिवत पदभार ग्रहण भी कर लिया है। वे इस पीठ पर शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानन्द के उत्तराधिकारी होंगे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद युवा पीढ़ी के विद्वान शंकराचार्य हैं, आर्ष ग्रन्थों वेद पुराणों नक्षत्रों ब्राह्मण ग्रंथों भाष्य और ज्ञान विज्ञान के अखंड भंडार हैं सहनशीलता और विनम्रता की मूर्ति हैं। सच्चे अर्थों में वे सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक हैं। अब शंकराचार्य की जिम्मेदारी है कि वे पूरे देश में बद्री केदार में निश्रित हुए और व्यास गुफा बद्रीनाथ में सृजित हुए वेदों और पुराणों की शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए देशभर में कार्य करेंगे ताकि सनातन धर्म का मर्म लोगों तक पहुंच सके और जो लोग धर्म अंतरित हुए हैं वे पुनः अपने धर्म में घर वापसी करें। शंकराचार्य जी को गौ हत्या के विरुद्ध भी अभियान चलाना होगा यह अपेक्षा हम इसलिए कर रहे हैं कि विद्वान और जिजीविषा के धनी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी असीम क्षमताओं के धनी हैं। अब देश की श्रेष्ठ पीठ के धर्माचार्य होने के नाते उन्हें राजनीतिज्ञों को भी दशा दिशा देनी होगी साथ ही किसी देश विरोधी कार्य करने वाले राजनीतिक दल के शुभचिंतक बनने से भी परहेज करना होगा। अखंड भारत के प्रादुर्भाव के लिए शंकराचार्य जी इस पीठ से कार्य करेंगे। इसी विनम्र भाव के साथ breakinguttarakhand.com न्यूज़ की ओर से शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का गदगद भाव से स्वागत और अभिनंदन है।

देवभूमि उत्तराखंड का जोशीमठ कोई सामान्य नगर नहीं अपितु देश की चार दिशाओं में आद्य शंकराचार्य जी द्वारा घोषित सनातनधर्म की चार राजधानियों में से एक है। इसी गौरव के अनुरूप इसका विकास होना चाहिए। उक्त उद्गार ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के पट्टशिष्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने आज ज्योतिर्मठ में मठ का संचालन पदभार ग्रहण करते हुये व्यक्त किए।

*परम्पराओं का निर्वहन और लोक-कल्याण हमारी कार्यविधि का मूलमंत्र*–शंकराचार्य 

उन्होंने आगे कहा कि समूचा उत्तराखंड देवभूमि है और हम इसे प्रणाम करते हैं। यहां की आध्यात्मिकता को बनाये रखने,संस्कृति और परम्पराओं को संरक्षित करने के लिये सबके सहयोग से कार्य किया जायेगा । सभी कार्यों का मूल आधार लोक-कल्याण होगा।

स्वामिश्रीः ने बताया कि पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के आदेशों-निर्देशों के पालनक्रम में ही भगवान् बदरीनाथ जी के पट बन्द होते समय बदरीनाथ पहुंच कर शंकराचार्य जी की ओर से सत्र की अन्तिम पूजा और फिर शंकराचार्य जी महाराज की पालकी का अनुगमन हमारे द्वारा किया गया है । भविष्य में भी इन परम्पराओं में सम्मिलित होकर हम ज्योतिर्मठ और पूज्य शंकराचार्य जी महाराज की ओर से योगदान करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि *सनातन धर्म के ध्वज को कभी झुकने नहीं देंगे* स्वामिश्रीः ने आगे बताया कि पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के आदेश से हमने ज्योतिर्मठ आकर पदभार ग्रहण किया है और सनातन धर्म की ध्वजा लहराई है। हम इसे कभी झुकने नहीं देंगे। इस सन्दर्भ में पूज्यपाद शंकराचार्य महाराज श्री के समस्त आदेशों,निर्देशों का पालन करते रहेंगे। इस अवसर पर उन्होंने जानकारी दी है कि *सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य*माना है। 

एक प्रश्न कि ‘वर्तमान में ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य कौन है ?’ के उत्तर में स्वामिश्रीः ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय दिनांक में ज्योतिष्पीठाधीश्वर के रूप में पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को ही स्वीकार किया है।स्वामिश्रीः ने यहां ध्यान पूजन भी किया स्वामिश्रीः ने ज्योतिर्मठ पहुंच कर सनातन धर्म की ध्वजा लहराते हुये पदभार ग्रहण किया। इससे पूर्व उन्होंने तोटकाचार्य गुफा में आदि शंकराचार्य, ज्योतिर्मठ के प्रथम आचार्य तोटकाचार्य एवं वर्तमान आचार्य की गद्दी की सविधि पूजा की और गुफा में कुछ समय तक ध्यानस्थ रहे। फिर ज्योतिर्मठ की अखण्ड ज्योति का दर्शन किया और राजराजेश्वरी देवी की आरती उतारी।

स्वामिश्रीः के जोशीमठ पहुंचते ही उनका मठवासियों और जोशीमठ के नागरिकों द्वारा भव्य स्वागत किया गया। प्रमुख रूप से सर्वश्री श्रीधरानन्द ब्रह्मचारी, श्रवणानन्द ब्रह्मचारी, सोमेश्वरानन्द ब्रह्मचारी, नगरपालिका अध्यक्ष आदि उपस्थित रहे। स्वागत भाषण वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मुरलीधर शर्मा तथा धन्यवाद ज्ञापन महिमानन्द उनियाल ने किया।