ठेका हाँसिल ना होने की स्तिथि में गाँवों की सड़कों को जबरन कोर्ट में धकेलेने का चलन एक गैरकानूनी और खौफनाक हत्यार बन चुका है

अल्मोड़ा: वैसे यह शगलउउत्तराखंड के गांवों के निर्माण कार्यों में आम तौर पर देखा जाने लगा है। लेकिन ताजा मामला अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी विकासखंड के अंतर्गत पिछले 10 वर्षों से स्वीकृत निर्माणाधीन चलमोड़ीगाड़ा-कलौटा मोटर मार्ग के टेंडर से जुड़े एक ठेकेदार के द्वारा फिर से सड़क को हाईकोर्ट में धकेले जाने की खबर से नाराज ग्रामीणों ने फिर से उत्तराखण्ड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है। बीते बुधवार 11 दिसम्बर को ग्रामीणों की समिति ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाईकोर्ट में इस मामले में अपनी इम्प्लीडमेंट एप्लीकेशन दायर की,जिसमें 12 दिसम्बर गुरुवार को कोर्ट में सुनवाई हुई कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि ग्रामीणों की इम्लीडमेन्ट एप्लीकेशन पर माननीय हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता मदन-मोहन पांडेय ने ग्रामीणों का पक्ष रखते हुये बहस की शुरुआत करते हुये कोर्ट को बताया कि सड़क के अभाव में ग्रामीणों की लगातार हो रही दर्दनाक मौतों तथा पर्दे के पीछे से सड़क निर्माण में लगातार बाधा खड़ी कर रहे नेताओं और उनके इशारों पर उनसे जुड़े ठेकेदारों द्वारा ठेका हाँसिल ना होने की स्तिथ में गाँव की सड़क को जबरन कोर्ट में धकेलेने का चलन अब एक गैरकानूनी और खौफनाक हत्यार बन चुका है।बहस और सबूतों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने ग्रामीणों के अधिवक्ता की दलीलों को न्याय संगत मानते हुये ग्रामीणों को केस की पार्टी मानते हुये उनकी इम्लीडमेन्ट को स्वीकार कर लिया है। ताजा मामला टेंडर से जुड़े एक ठेकेदार का है, जिसने इस सड़क को PMGSY से निर्माण करवाने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई होने तक PMGSY के द्वारा कोई भी अंतिम फैसला लेने पर रोक लगा रखी है। ज्ञात हो कि चलमोड़ीगाड़ा-कलौटा मोटरमार्ग इससे पहले भी दो बार लगातार विवादों में रहा है, इससे पूर्व यह तब सुर्खियों में आया था जब क्षेत्र के आधे दर्जन ग्रामप्रधानों के एक ग्रुप ने उनके पक्ष के ठेकेदार को ठेका ना मिलने की आशंका को देखते हुये सड़क की निविदा पर आपत्ति उठाते हुये एक सामूहिक मेजरनामा लोकनिर्माण विभाग में लगा दिया था।उसके बाद फिर नये सिरे से टेडरिंग हुई थी जो फिर विवादों में उलझ गयी और निविदा से जुड़े एक ठेकेदार ने टेडरिंग में धांधली का आरोप लगाकर निविदा को हाईकोर्ट में चुनौती देकर सड़क को कोर्ट में धकेल दिया था। सड़क को न्ययालय में धकेलेजाने से नाराज ग्रामीणों ने अपनी एक पब्लिक कमेटी के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसके बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान ठेकेदार की याचिका को आधारहीन बताते हुये उसे खारिज कर दिया था। फिरहाल ग्रामीण अब ठेकेदारों से जुड़े तीसरे विवाद से जूझ रहे हैं। कोर्ट में सुनवाई के दौरान ग्रामीण विकास जन सँघर्ष समिति के प्रबंध निदेशक एवं बार एशोसिएशन के अध्यक्ष पूरन सिंह बिष्ट,अध्यक्ष केशवदत्त जोशी तथा समिति के कार्यकारी निदेशक मोहन चंद्र उपाध्याय न्ययालय में मौजूद रहे। मामल में दूसरे पक्षकारों के अनुसार बेहतर मोटरमार्ग का निर्माण करना उनकी प्राथमिकता है। बता दें कि सम्बन्धित अधिकारीयों के नक्कारेपन के चलते ऐसे अनेक और मामले भी उतराखंड के गांवों से लगातार कोर्ट कचहरी में फंसे होने की वजह से गांवों की मोटरमार्ग लटके पड़े हैं।