दिल्ली दहलाने की फिराक में पकड़े गए दोनों जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों से मिले हैं खतरनाक आउटपुट

राजधानी के सराय काले खां क्षेत्र से दो संदिग्‍ध आतंकवादियों को पकड़ा गया है। दिल्‍ली पुलिस के अनुसार, सोमवार रात करीब सवा 10 बजे मिलेनियम पार्क से इन दोनों को उठाया गया। पुलिस को इनके वहां पहुंचने की भनक मिली थी जिसके बाद जाल बिछाया गया। मिली जानकारी के मुताबिक, दोनों संदिग्‍ध आतंकी कश्मीर के रहने वाले हैं और जैश-ए-मोहम्‍मद से जुड़ाव रखते हैं। पुलिस ने इनके पास से दो सेमी-ऑटोमेटिक पिस्‍टल और 10 जिंदा कारतूस बरामद किए।डीसीपी (स्‍पेशल सेल) संजीव यादव की अगुवाई में पूरा ऑपरेशन हुआ। खुफिया एजेंसियों और स्‍पेशल सेल की एक जाइंट टीम इनसे पूछताछ में पताा चला है कि दिल्ली में आतंकी वारदात करने से पहले पकड़े गए जैश ए मोहम्मद के येे आतंकवादी अब्दुल लतीफ और मोहम्मद अशरफ देवबंद के एक मदरसे में रुके थे, वे सहारनपुर में एक मस्जिद में भी रुके थे।

इससे पता चलता है कि इनके स्थानीय संपर्क भी हो सकता है। लोकल सपोर्ट बिना कोई आतंकी वारदात नहीं हो सकती। मदरसों का इस तरह दुरूपयोग सबके लिए चिंता का विषय है। 

आतंकवादी मिलने के बाद शोशल मीडिया पर  मदरसों और मस्जिदों की तलाशी की मांग जोर पकड़ रही है और कहा जा रहा है कि जहाँ भी आतंकी या हथियार मिले वो जगह ध्वस्त होनी चाहिए।

शोशल मीडिया पर आप इंडिया ने जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों को पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान के विषय में लिखा “वहाँ अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान जैसे आतंकी संगठन बिलकुल आजाद होकर घूमते हैं। इतना ही नहीं राजनीतिक और सेना का संरक्षण भी इन संगठनों को दिया जाता है और इन्हीं को सुरक्षित रख कर या सबकी नजरों से छिपाकर पाकिस्तान अपने गुप्त प्रोपगेंडे को पूरा करता है।

पाक की ऐसी हरकतों के कारण FATF ने उसे साल 2018 से ग्रे लिस्ट में रखा हुआ है। उस पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वह अपनी सरजमीं पर आतंकियों को ऐसा माहौल देते हैं कि उनके संगठन ऑपरेट किए जा सकें।

सोचने वाली बात यह है कि आखिर एक इस्लामिक राष्ट्र इतनी तेजी से आतंकवाद की फैक्ट्री कैसे बन रहा है? क्यों हर आतंकी इस जगह को अपने लिए जन्नत मानता है? क्यों यहाँ 9/11 का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन पकड़ा जाता है? कहाँ से यह आतंकी संगठन नए लोगों को भर्ती करते हैं? “

इस पोस्ट पर की  चोंकाने वाली प्रतिक्रिया देते हुए एक भारतीय यूजर ने लिखा “इस्लामी दारुल उलूमों में आतंकवादियों के अतिरिक्त उनके लिए प्रवक्ता प्रचारक समर्थक व्याख्या करने वाले भी अब 40-50 वर्षों से निकलने लगे हैं। गणित विज्ञान तकनीकी शिक्षा से देशी हथियार बनाने वाले विदेशी मीडिया में लेख लिखने, काम करने वाले, टीवी कैमरामैन वीडियो जर्नलिस्ट विज्ञापन बनाने वाले सब निकल रहे हैं। आतंकवाद के इन नए स्वरूपों से अपडेटेड हैं आप पुराने तालिबानी पख्तून में ही ढूंढने में लगे हुए हैं”