अक्षय तृतीया भगवान परशुराम प्रकाट्योत्सव पर किए पुण्य कभी क्षीण नहीं होते

हरीश मैखुरी
अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर भगवान विष्णु के छठे अवतार चिरंजीवी भगवान परशुराम जी का धराधाम के कल्याणार्थ प्रकाट्य हुआ। आज अक्षय तृतीया तिथि  25 अप्रैल को प्रातः 11:51 मिनट पर आरम्भ होकर 26 अप्रैल को अपराह्न 12:19 मिनट तक होगी। परशुराम शास्त्रौं और शस्त्रों के अद्वितीय ज्ञाता हैं। इनके नाम स्मरण मात्र से पाप मुक्ति हो जाती है। आज के दिन जो भी दान पुण्य या भगवान के नाम स्मरण चिंतन मनन संध्या वंदन भगवान विष्णु के सहस्त्र नाम पाठ सत्यनारायण की कथा आदि जो भी किए जाते हैं या कोई मंत्र जपा जाता है तो उसका कभी क्षय नहीं होता। ऐसे स्वयं श्री परशुराम के वचन हैं। इसीलिए आज के दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है।
भगवान परशुराम इस धरती पर सदैव अजर अमर और विचरण करने वाले हैं। जो सज्जन श्र्रद्धापूर्वक उनका स्मरण चिंतन कर अपनी व्यथा या अपने मनोरथ उनके पास प्रकट करता है, वह अवश्य यथा समय पूर्ण होते हैं। क्योंकि अश्वत्थामा, बली, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य एवं परशुराम ये सातों सदैव चिरंजीवी हैं, और तीनों लोकों में निरंतर नाना रुप में भ्रमण करते रहते हैं, आश्चर्यजनक रूप से इनका जब सच्चे हृदय से ध्यान किया जाता है तो वे प्रकट हो जाते हैं, यह अति गुह्य और गोपनीय तथ्य है। भगवान परशुराम का एक अत्यंत दुर्लभ स्त्रोत मंत्र बृहद जनहित में यहां दे रहे हैं इसका जो भी नित्य पाठ करता है वह गंभीर से गंभीर रोग, दोष, समस्या, मुकदमा आदि से छुटकारा प्राप्त कर लेता है, क्योंकि परशुराम बंधन काटने वाले धरती पर आदि शक्ति भगवती के समान ही अकेले भगवान हैं। भगवान राम चन्द्र और परशुराम की युति भी अनोखी है, दोंनो के ‘राम’ एक ही हैं। इस बात में हमारे सभी धर्म शास्त्र एकमत हैं कि भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों एक ही रूप हैं ओंकार और निराकार भी हैं और पालक, प्रतिपालक, संहिृति कर्ता और शक्तिरूपा भी हैं। इसलिए नाम भेद से पूजा विभेद नहीं होना चाहिए, अन्यथा महां पातक के भागी बनते हैं। 
 
गवान परशुराम का परशुरामस्तोत्रम्
कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजम् ।
जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं दारिद्रयान्तकम् ॥ १ ॥ 
नमामि भार्गवं रामं रेणुकाचित्तनंदन ।
मोचिताम्बार्तिमुत्पातनाशनं दुख:नाशनं ॥ २ ॥ 
भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम् ।
गतवर्गप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम् ॥ ३ ॥
वशीकृतमहादेवं दृप्तभूपकुलान्तकम् ।
तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम् ॥ ४ ॥
परशु दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः ।
रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम् ॥ ५ ॥
शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञामंडितं रणपण्डितं ।
रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनं ॥ ६ ॥
मार्गणाशोषिताब्घ्यंशं पावनं चिरजीवनं ।
य एतानि जपेद्रामनामानि स कृती भवेत ॥ ७ ॥
॥ इति श्री पूज्यपाद वासुदेवानंदसरस्वतीविरचितं श्रीपरशुरामस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ 
🚩 *जय श्री परशुराम*🚩
अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज ने परशुराम जी के जन्म उत्सव एवं देवभूमि उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के आरम्भ/कपाट खुलने के शुभ अवसर को मंगलकारी बनाने के लिए आज संध्या पर अपने घरों में दीप प्रजलवित करने का अनुनय किया।