चमोली के घाट मंगरोली गांव में तैयार होता है इस वास्कट के लिए कंडाली के रेशे का सूत

चमोली के घाट मंगरोली गांव में तैयार होता है इस वास्कट का सूत

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस विशेष वास्कट को पहनकर कैबिनेट बैठक संपन्न करने के उपरांत लिखा “उत्तराखंड में फाइबर से बने कपड़ों की प्रबल संभावनाएं हैं। कंडाली, भीमल और इंडस्ट्रियल हैम्प के रेशे किसानों की तकदीर बदल सकते हैं। इसी सोच को प्रोत्साहित करने के लिए आज कैबिनेट के सभी साथियों ने कंडाली (सिसौंण) के रेशे से बनी जैकेट पहनी” स्थानीयलोलोगों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि बदन पर पहने जाने के बाद यह वास्कट एक तरह से एयरकंडीशन का काम करती है। उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के लिए ग्रामीण आय का अच्छा श्रोत बन सकता है। – – संपादक 

आलेख एवं फोटो – जगदम्बा प्रसाद मैठाणी

   आज इस बात की बेहद ख़ुशी है कि , पीपलकोटी में आगाज और उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद् के द्वारा तैयार किये गए कंडाली के जैकेट को माननीय मुख्यमंत्री जी एवं कैबिनेट मंत्रियों द्वारा धारण किया गया। आगाज और उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद् द्वारा रेशे को कार्डिंग के बाद देहरादून लाया जाता है यहाँ से कार्डिंग के बाद कंडाली का रेशा ऊन के साथ ब्लेंड या मिलाकर – वापस मंगरोली पहुंचता है.नंदप्रयाग से घाट रोड पर है मंगरोली गांव। इसी रेशे को बागेश्वरी चरखे में कातकर मंगरोली की नंदाकिनी स्वायत्त सहकारिता जिसकी स्थापना – उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद् ने की है में कपड़ा बनाने के लिए भेजा जाता है ।

कंडाली की पहली जैकेट जिसका नाम अनार दाना था वो IICD की हमारी विद्यार्थी शिवांगनी राठौर ने ७ साल पहले तैयार किया था – शिबलाल टेलर के साथ मिलकर पीपलकोटी में।

यहाँ की सदस्य भोटिया जनजाति की महिलाएं अपने गुरु फिरतु राम के सहयोग से कंडाली के रेशे को ताने बाने में बुनकर कपडे में बदल देती हैं , कपडे से फिर बनाई जाती है कंडाली के रेशों से बनी जैकेट ( टेलर के सहयोग से ) । इस जैकेट को DIC/उद्योग निदेशालय ने खरीद कर माननीय मंत्रियों तक पहुँचाया। इस जैकेट की वर्तमान में कीमत लगभग 2000 रूपये है ! ये आज हमारे लिए गौरव का क्षण है.

जिसको और अधिक जानकारी चाहिए कृपया व्हाट्स ऐप कीजिये- 8126653475

उद्योग निदेशक अरुण कुकसाल लिखते हैं “सन् 1939 में सीरौं गांव पौड़ी (गढ़वाल) के अन्वेषक और उद्यमी अमर सिंह रावतजी ने कंडाली, रामबांस और पिरूल से व्यावसायिक स्तर पर कपड़ा बनाने का काम किया था। परन्तु उनकी सन् 1942 में मृत्यु होने के बाद यह कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। उन्होने अन्य खोज भी की थी। इस पर किताब भी लिखी है। उनके परिवार के पास उनके बनाये कपड़े आज भी हैं। सरकार को चाहिए कि अमर सिंह रावतजी की उद्यमीय खोजों पर नये संदर्भों में परीक्षण कर उनके प्रयासों को आगे बढ़ाये”