फिर याद आई उत्तराखंड की आंधी

उत्तराखण्ड क्रांति दल के संस्थापक और उत्तराखण्ड पृथक राज्य निर्माण आंदोलन के पुरोधा इन्द्रमणि बड़ोनी की पुण्यतिथि समूचे उत्तराखण्ड में आज धूमधाम से मनायी गई। वे संयुक्त उत्तर प्रदेश में उत्तराखण्ड से विधायक भी रहे। बेहद सौम्य किन्तु तेजतर्रार व्यक्तित्व के धनी इ्रन्द्रमणि बडोनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कुशल नेतृत्व के साथ-साथ पराक्रमी योद्धा थे। वे कई विधाओं के जानकार थे लेकिन सारी विधाएं एक ही आंदोलन की तरफ मोड़ दी गई और वो था उत्तराखण्ड पृथक राज्य आंदोलन। जब तक राज्य आंदोलन अपने मुकाम तक नहीं पहुंचा बड़ोनी ने चैन की सांस नहीं ली। यदि 83 लाख उत्तराखण्ड आंदोलनकारी सड़क पर उतरे लेकिन आंदोलन अहिंसक बना रहा, तो इसके पीछे इन्द्रमणि बड़ोनी की दीर्घ अंहिसावृत्ति का ही जोश था।

आज प्रदेश में इंद्र मणि बडूनी की पुण्यतिथि को संस्कृति उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है, ऋषिकेश बडोनी की कर्मस्थली रहा है यहीं से राज्य आंदोलन की चिंगारी उठी थी। शहीद स्मारक पर बड़ी संख्या में राज्य आन्दोलनकारी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे है इन्द्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को तत्कालीन टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था। बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई और अपनी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए देहरादून व नैनीताल चले गये। शिक्षा प्राप्ति के बाद अल्पायु 19 वर्ष में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया।

बडोनी, डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उन्हें वापस गाँव लौटना पड़ा। तब उन्होंने अखोड़ी गाँव और जखोली ब्लाक को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया।देवभूमि भ्रमण के दौरान उन्होंने ही भिलंगना नदी के उद्गम स्थल खतलिंग ग्लेशियर को खोजा था। उनका सपना पहाड को आत्मनिर्भर राज्य बनाने का था और उन्ही के प्रयासों से गंगी में दुर्लभ औषधियुक्त जडी बूटियों की बागवानी प्रारम्भ हुई।

उनका सादा जीवन देवभूमि के संस्कारों का ही जीता-जागता नमूना था। वे चाहते थे कि पहाडों को यहां की भौगोलिक परिस्थिति व विशिष्ट सांस्कृतिक जीवन शैली के अनुरुप विकसित किया जाए। अपनी संस्कृति के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था। वर्ष 1957 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्होंने केदार नृत्य का ऐसा समा बॉधा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे।

अमरीकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने स्व. इन्द्रमणि बडोनी को ”पहाड के गॉधी“ की उपाधि दी थी। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि उत्तराखण्ड आंदोलन के सूत्रधार इन्द्रमणि बडोनी की आंदोलन मेंय उनकरी भूमिका वैसी ही थी जैसी आजादी के संघर्ष के दौरान भारत छोडों आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी ने निभायी थी।

अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष में उतरने के साथ ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। लेकिन आजादी के बाद कामरेड पीसी जोशी के सम्फ में आने के बाद वह पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हुए। अपने सिद्वांतों पर दृढ रहने वाले इन्द्रमणि बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया। इसलिए वह चुनाव भीय निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में लडे। उनकी मुख्य चिंता इसी बात पर रहती थी कि पहाडों का विकास कैसे हो।

राज्य आंदोलन में लगातार सक्रिय रहने से उनका स्वास्थ्य गिरता गया। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखण्ड के सपूत श्री इन्द्रमणि बडोनी जी का निधन हो गया।