आज भीतरघाती नेता के लिए प्रिय उपमा ‘जयचंद’ है, जबकि वह महान सम्राट था। आइए, जानते हैं आखिर कौन था जयचंद

नेता लोगों का भीतरघाती के लिए प्रिय उपमा ‘जयचंद’ है, जबकि वह महान राजा था। आइए, जानते हैं कि आखिर कौन था जयचंद

जयचंद्र / जयचंद (1170 – 94 ई.) कन्नौज के राज्य की देख-रेख का उत्तराधिकारी उसके पिता विजयचंद्र ने अपने जीवन-काल में ही बना दिया था। विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता का पिता था। जयचंद्र बड़ा वीर, प्रतापी और विद्वानों का आश्रयदाता था। उसने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से कन्नौज राज्य का काफ़ी विस्तार किया था। ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार जयचंद्र दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री से उत्पन्न हुआ था। जयचंद्र द्वारा रचित ‘रंभामंजरी नाटिका’ से ज्ञात होता है कि इसने चंदेल राजा मदनवर्मदेव को पराजित किया। इस नाटिका तथा ‘रासो’ से यह भी पता चलता है कि जयचंद्र ने शहाबुद्दीन ग़ोरी को कई बार पराजित कर उसे भारत से भगा दिया। मुसलमान लेखकों के विवरणों से ज्ञात होता है कि जयचंद्र के समय में गाहडवाल साम्राज्य बहुत विस्तृत हो गया। इब्न असीर नाम लेखक ने तो उसके राज्य का विस्तार चीन साम्राज्य की सीमा से लेकर मालवा तक लिखा है। पूर्व में बंगाल के सेन राजाओं से जयचंद्र का युद्ध एक दीर्घकाल तक जारी रहा। गहड़वाल वंश के अंतिम शासक जयचंद को सेन नरेश लक्ष्मण सेन ने एक युद्ध में परास्त कर दिया। दिल्ली पर अधिकार को लेकर हुए संघर्ष में उसे चौहानों से पराजित होना पड़ा। दिल्ली तथा अजमेर का चौहान नरेश पृथ्वीराज तृतीय उसका समकालीन था। यह शैव धर्म का अनुयायी था। पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था।

कनौज की उन्नति
जयचंद्र के शासन-काल में बनारस और कनौज की बड़ी उन्नति हुई । कन्नौज, असनी (जिला फ़तेहपुर) तथा बनारस में जयचंद्र के द्वारा मज़बूत क़िले बनवाये गये इसकी सेना बहुत बड़ी थी, जिसका लोहा सभी मानते थे। गोविंदचंद्र की तरह जयचंद्र भी विद्वानों का आश्रयदाता था। प्रसिद्ध ‘नैषधमहाकाव्य’ के रचयिता श्रीहर्ष जयचंद्र की राजसभा में रहते थे। उन्होंने कान्यकुब्ज सम्राट के द्वारा सम्मान-प्राप्ति का उल्लेख अपने महाकाव्य के अन्त में किया है। जयचंद्र के द्वारा राजसूय यज्ञ करने का भी पता चलता है। अंत में वह मुसलमान आक्रमणकारी मुहम्मद ग़ोरी से पराजित होकर मारा गया था। उसकी मृत्यु सं. 1251 वि. में हुई थी।
जयचंद के बारे में तरह तरह की बातें बताई जाती हैं जैसे- गौरी को लड़ने के लिए इसी ने बुलाया और अभी वाट्सएप पर यह संदेश था-

मोहम्मद गौरी ने जयचंद का सर यह कहते हुए धड़ से अलग कर दिया था कि जो अपनों का नहीं हुआ, वो मेरा क्या होगा! (यह एक महान योद्धा को अपमानित करने और हेय दिखाने की दृष्टि से ही किया जाता है विशेष रूप से आज के राष्ट्र विरोधी नेताओं के संदर्भ में जयचंद कहना तो उस महान सम्राट का अपमान करना ही है) 
अब ‘जयचंद’ शब्द विश्वासघाती के लिए रूढ़ हो गया है!! (सौजन्य से सच्चिदानंद सेमवाल)