आज का पंचाग, तुलसी पूजन के लाभ, महर्षि दधीचि और पिप्पलाद का रोचक प्रसंग, शनि उपचार में पीपल लगाने के लाभ

 भगवान गणेश ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं और विघ्न विनायक हैं। उनका एक सुन्दर नाम सुमुख है। वे देवताओं में अग्रणी पूजा के अधिकारी हैं। ‘ॐ गं गणपतये नम:’ इनका बीज मंत्र है यही जप मंत्र भी है।

📖 *नीतिदर्शन…………………*✍
*न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।*
*विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।।,*
📝 *भावार्थ* 👉🏾 जो विश्वासपात्र नहीं है, उसपर कभी विश्वास न करें, परन्तु जो विश्वासपात्र है, उसपर भी अधिक विश्वास न करें; क्योंकि अधिक विश्वाससे भय उत्पन्न होता है, अतः भगवान के शिवा बिना समुचित परीक्षण किये किसी पर विश्वास न करें। क्योंकि आवश्यकता के  मनुष्य की प्राथमिकता परिवर्तित होती रहती है।
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐
🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || याम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| हेमन्त ऋतु || मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष || नौमी तिथि || चान्द्रवासर || पौष सौर ०९ प्रविष्ठ || तदनुसार २३ दिसम्बर २०२० ई० || नक्षत्र रेवती || मीनस्थ चन्द्रमा ||*
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐*🚩जय सत्य सनातन🚩*

*🚩आज की हिंदी तिथि*

🌥️ *🚩युगाब्द-५१२२*
🌥️ *🚩विक्रम संवत-२०७७*
⛅ *🚩तिथि – नवमी रात्रि 08:39 तक तत्पश्चात दशमी
⛅ *दिनांक 23 दिसम्बर 2020*
⛅ *दिन – बुधवार*
⛅ *शक संवत – 1942*
⛅ *अयन – दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु – शिशिर*
⛅ *मास – पौष मास ९ गते*
⛅ *पक्ष – शुक्ल*
⛅ *नक्षत्र – रेवती 24 दिसम्बर प्रातः 04:33 तक तत्पश्चात अश्विनी*
⛅ *योग – वरीयान् दोपहर 12:50 तक तत्पश्चात परिघ*
⛅ *राहुकाल – दोपहर 12:38 से दोपहर 01:59 तक*
⛅ *सूर्योदय – 07:13*
⛅ *सूर्यास्त – 18:02*
⛅ *दिशाशूल – उत्तर दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -*
💥 *विशेष – नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

🌷 *दीर्घायु और आरोग्य वृद्धि के लिए* 🌷
🙏🏻 *विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में बताया कि जिनके परिवार में ज्यादा बीमारी …..जल्दी-जल्दी किसी की मृत्यु हो जाती है वे लोग मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि के दिन (दशमी तिथि के स्वामी यमराज है मृत्यु के देवता | ) भगवान धर्मराज यमराज का मानसिक पूजन करे, और हो सके तो घी की आहुति दे |*
🙏🏻 *एक दिन पहले से हवन की छोटी सी व्यवस्था कर लेना घी से आहुति डाले इससे दीर्घायु, आरोग्य और ऐश्वर्य तीनों की वृद्धि होती है विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में बताया है | आहुति डालते समय ये मंत्र बोले–*
💥 *विशेष – [ ध्यान रखे जिसके घर में तकलीफे है वो जरुर आहुति डाले और डालते समय स्वाहा बोले और जो आहुति न डाले तो वो नम: बोले | ]*
🌷 *ॐ यमाय नम:*
🌷 *ॐ धर्मराजाय नम:*
🌷 *ॐ मृत्यवे नम:*
🌷 *ॐ अन्तकाय नम:*
🌷 *ॐ कालाय नम:*
🙏🏻 *ये पाँच मंत्र बोले ज्यादा देर तक आहुति डाले तो भी अच्छा है |*
🙏🏻 *अकाल मृत्यु घर में न हो, जल्दी-जल्दी किसी की मृत्यु न हो उसके लिए घर में अमावस्या के दिन गीता का सातवां अध्याय पढना चाहिये | पाठ पूरा हो जाय तो सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिये कि हमारे घर में सबकी लंबी आयु हो और जो पहले गुजर गये है हे भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और आज के गीता पाठ का पुण्य ये उनको पहुँचे | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय करके वो जल चढ़ा दे |*
🙏🏻 *और हो सके तो ….भगवान ने पैसा दिया हो थोडा बहुत तो उस अमावस्या को गरीब बच्चों – बच्चीयों को चार–पाँच बच्चों को खाना देकर आये सब्जी-रोटी थोडा कुछ मीठा हलवा बना ले थोडा-सा गरीब बच्चों को दे आये | सेवा भी हो जायेगी और जो गुजर गये है वो हम पर राजी हो जायेंगे |*
💥 *विशेष – 24 दिसम्बर 2020 गुरुवार को मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है।*

🌷 *तुलसी को पानी अर्पण से पुण्य* 🌷
🌿 *अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए उसकी हवा से भी बहुत लाभ होते हैं और तुलसी को एक ग्लास पानी अर्पण करने से सवा मासा सुवर्ण दान का फल मिलता है।*

🌷 *तुलसी पूजन विधि व तुलसी – नामाष्टक* 🌷
🌿 *तुलसी पूजन विधि* 🌿
🙏🏻 *25 दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें | उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें :*
🌷 *महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी*
*आधि व्याधि हरा नित्यम् तुलसी त्वाम् नमोस्तुते*
🌿 *फिर ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें | दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की ७, ११, २१,५१ व १०८ परिक्रमा करें | उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें | तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है |*
🌿 *तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें | तुलसी के समीप रात्रि १२ बजे तक जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद-विश्रांति पायें | तुलसी – नामाष्टक का पाठ भी पुण्यदायक है | तुलसी – पूजन अपने नजदीकी आश्रम या तुलसी वन में अथवा यथा–अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान में कर सकते हैं |*
🌷 *तुलसी – नामाष्टक* 🌷
*वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |*
*पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||*
*एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |*
*य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||*
🌿 *भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |*
🌿 *जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)*
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श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि “शनै:चरति य: शनैश्चर:” अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है।

इसलिए अपने जीवन काल में पीपल के वृक्ष अवश्य लगाएं देखरेख करें जिससे पीपल का आशीष आप और आपकी पीढ़ी पर निरंतर बना रहे पीपल इस धरती पर जीव वृक्ष है इसकी जड़ों में कभी तेल नहीं डालना चाहिए इससे आपका वंशवृक्ष सूख जायेगा।उन्होंने इसलिए सूर्योदय से पहले पीपल को जल चढ़ाना चाहिए। पीपल को सीमेंट आदि का पक्का चबूतरा घेरने सेमहापाप लगता है और आप विपत्तियों से घिर सकते हैं। पीपल की जड़ों पर चीटियों के लिए पंजीरी या महाप्रसाद बनाकर बुरक देना चाहिए जिससे हजारों चींटियों को भोजन मिलेगा और चींटियां पीपल की फंगल चाट कर उस पेड़ को स्वस्थ रखेंगी। और आपको करोड़ों प्राणियों को भोजन देने का महात्म्य प्राप्त होगा। जो पीपल के पेड़ को कटने से बचाव करता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।