आज का पंचाग भगवान और भक्ति का अति मर्मस्पर्शी गूढ़ ज्ञान और उज्जैन महाकाल का रहस्य

*नीतिदर्शन…………….*✍
*स् जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।*
*परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।।*
📖 *भावार्थ* 👉🏾 संसारमें जन्म–मरणका चक्र चलता ही रहता है, परंतु जन्म लेना उसीका सफल है, जिसके जन्म लेनेसे वंशकी उन्नति हो।
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐
🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || याम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| हेमन्त ऋतु || मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष || त्रयोदशी तिथि || मन्दवासर || मार्गशीर्ष सौर २७ प्रविष्ठ || तदनुसार १२ दिसम्बर २०२० ई० || नक्षत्र विशाखा || तुलास्थ चन्द्रमा ||*
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐आज का पंचांग
दिनांक – 12 दिसम्बर 2020
दिन – शनिवार
विक्रम संवत् – 2077
शक संवत् – 1942
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – मार्गशीर्ष
पक्ष – कृष्ण
तिथि – त्रयोदशी
नक्षत्र – विशाखा
योग – अतिगंड दोपहर 12:07 तक तत्पश्चात सुकर्मा
दिशाशूल – पूर्व, उत्तर पूर्व
सूर्योदय – 07:05 (जयपुर)
सूर्यास्त – 17:34 (जयपुर)
राहुकाल – 09:00 – 10:30 अभिजीत मुहूर्त – 11:43 – 12:26

👉🏽💰🏌🏽 *जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र जब उच्च स्थि‍ति में होता है, तो जातक धनी, सुंदर, जोश से भरा,*
👉🏽✈️🏬 *घूमने-फिरने का शौकीन, ऐश्वर्यवान और सुंदर, घर का स्वामी होता है।*
👉🏽💑💝 *वैवाहिक जीवन मधुर होता है, तथा परिवार में सुख शान्ति, प्रेम रहता है।*
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🕉️ *बद्रीनाथो विजयते*🕉️
*बहूनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसासु च*
*बदरी सदृशं तीर्थ न भूतो न भविष्यति*
*प्रभाते बद्रिकारण्ये मध्यान्हे मणिकर्णिकाम्*
*भोजने तु जगन्नाथं शयने कृष्ण द्वारिकाम्*
*भगवान प्रात: में श्री बद्रीनाथ धाम, भोजन के लिये श्री जगन्नाथपुरी धाम, मध्यान्ह में काशी के घाटों पर मुक्ति देने के लिये और शयन के लिये श्री द्वारिका धाम और पुन: प्रभात में श्री बदीनाथ धाम में रहते है ,भगवान नारायण अपने वाहन गरुड़ में बिराजमान होकर नित्य परिक्रमा करते है*
*ऐसे जगत पालनहार भगवान श्री लष्मी नारायण आपके सभी मन मनोरथ पूर्ण कर आपको सदैव सुखी, स्वस्थ, समृद्ध और निरोगी रखे*
🙏🏻🙏🏻 *सुप्रभात*🙏🏻🙏🏻
*आपका हर पल शुभ हो।*
*🕉️जय बद्रीविशाल जी🕉️*

✡️✡️✡️।।श्रीहरिः।।✡️✡️✡️
श्रद्धेय श्रीभाईजी के दार्शनिक विचार

इस साधन जगतमें श्रीपोद्दारजीने उत्तरोत्तर विलक्षण चार राज्य माने हैं–

१.कर्मराज्य,
२.भावराज्य
३. ज्ञानराज्य
४.महान परम भावराज्य।
कर्मप्रवण पुरुष कर्मराज्यमें श्रोत-स्मार्त वैद्य कर्मोंके द्वारा कर्म-साधन करते हैं। वे सर्वथा कामनारहित होनेपर ‘नैष्कर्म्यसिद्धि’ को प्राप्त होते हैं। इससे आगे ‘भावराज्य’ है जहां भक्तिकी प्रधानता होती है। इसमें भावसाधनाके द्वारा अपने भावानुरूप इष्टदेव और उनके दिव्य लोकोंको प्राप्त करते हैं। य भी सर्वथा मायामुक्त होते हैं।
इससे आगे ज्ञानराज्य है। इसमें विचार-प्रधान पुरुष साधन-चतुष्टयादिके द्वारा महावाक्योंका अनुसरण करके विशुद्ध आत्मस्वरूप परिनिष्ठित होते हैं। इनके प्राणोंका उत्क्रमण नहीं होता। ये ब्रह्मरूप हो जाते हैं या ब्रह्मसायुज्य प्राप्त करते हैं। जीवनकालमें भी बोध होते ही जगत् का अत्यन्ताभाव हो जाता है और सम्यक् बौधके कारण है अविद्याके अभ्यासका सर्वथा अभाव होनेसे जीव, जीवभावसे मुक्त होकर दूसरोंकी दृष्टिमें शरीर बने रहने पर भी जीवन्मुक्त हो जाता है। यही ज्ञान है। श्रीशंकराचार्यके, अद्वैत मतमें यही सर्वोपरि स्थिति है।
इससे आगे एक महाभावरुप ‘भगवद्भाव-राज्य’ है। भुक्ति-मुक्ति, कर्म-ज्ञान आदिकी वासनासे शून्य पुरुष ही इस परम ‘भावराज्य’ के अधिकारी होते हैं। श्रीपोद्दारजीके अनुसार ब्रह्म-तत्वका साक्षात्कार होने पर वह ‘ब्रह्मज्ञानी’ जीवन्मुक्त तो हो जाता है पर इतनेसे ही वह भगवान् के–– ‘वे जो जैसे जितने हैं–– ‘यावान् यश्चास्मि’ (गीता १८।५५) उस स्वरूपको तत्वको ठीक-ठाक नहीं जान पाता। तत्त्वज्ञानी मुक्त पुरुषोंमें भी किन्हीं-किन्हींमें भगवत्प्रेमांकुरका उदय हो जाता है, जिससे वे दिव्य शरीरके द्वारा उपर्युक्त कर्म-भाव-ज्ञान राज्यसे अतीत भगवद्भाव राज्यमें प्रवेश करके प्रियतम भगवान् के साथ लीलाविहार करते हैं या उनकी लीलामें सहायक-सेवक होकर उनके सुखमें ही अपने भिन्न स्वरूपको विसर्जित कर नित्य सेवा-रत रहते हैं। यह वह राज्य है जहाँ मोक्षका भी सन्यास हो जाता है।

श्रीराधाकृष्णकी उपासनाके क्षेत्रमें अब तक अनेक मतोंकी प्रतिष्ठा हुई है। मधुरभावकी उपासना प्रणालियोंने युग-प्रभावसे अथवा अन्य कारणोंसे मधुरोपासनाके नामपर अनेक प्रकारकी अभद्रताओंका प्रवेश हो गया। इन अभद्रताओंसे बड़ी हानि हुई, वह हानि चाहे व्यक्तिगत जीवनमें हुई हो अथवा सामुदायिक जीवनमें। रसशास्त्र एवं दर्शनशास्त्रकी दृष्टिसे सम्मत श्रीपोद्दार जीके ‘रसाद्वैत’ के सिद्धान्तोंने केवल मति-भ्रम ही दूर नहीं किया अपितु श्रीराधाकृष्णके उज्जवलतम प्रेमका दर्शन कराया–– जिसकी वर्तमान युगमें अत्यन्त आवश्यकता थी। इसीसे व्रज-साहित्यके मर्मज्ञ डाॅ. प्रभुदयाल मीतलने लिखा कि श्रीपोद्दारजीकी रचनाओंमें इस विषयका जैसा मर्मस्पर्शी कथन हुआ है

पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन

 

जय श्री महाकाल

*365 दिन में 1825 रूपों में दर्शन देते हैं “महाकाल”*

उज्जैन 🚩 विश्व में अकेले राजा महाकाल ही है, जो भक्तों को नित नूतन और अभिनव रूपों में दर्शन देते है। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर लेते है। कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल और पुष्प से बाबा को श्रंगारित किया जाता है। राजाधिराज महाकाल अपने भक्तों को 365 दिन में 1825 रूपों में दर्शन देते हैं। दर्शन देने का यह सिलसिला प्रतिदिन भस्मारती से शुरू होकर शयन आरती तक चलता हैं। मंदिर में होने वाली पांच आरतियों में बाबा को अलग– अलग रूप में श्रंगारित किया जाता है। बारह ज्योर्तिलिंग में से श्री महाकालेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जहां प्रतिदिन पांच आरती होती हैं। मंदिर के 21 पुजारी क्रम अनुसार बाबा को आरती के पहले श्रंगारित करते हैं। श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति अर्थात राज है। देश के बारह ज्योतिर्लिंग में महाकाल एक मात्र ऐसे है जिनकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता के रूप में की गई। महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूपों में लिया जाता हैं।कालगणना में शंकु यंत्र का महत्व माना गया है। मान्यता है कि पृथ्वी के केन्द्र उज्जैन से उस शंकु यंत्र का स्थान श्री महाकाल का शिवलिंग ही है। इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की कालगणना होती रही है।

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ये है बाबा के श्रंगारित होने का समय

*भस्मारती*–
बारह ज्योर्तिलिंग में सिर्फ उज्जैन के महाकाल को ही भस्म रमाई जाती है। यह विश्व का एक मात्र मंदिर है जहां तड़के 4 बजे बाबा को हरिओम जल से स्नान करवाया जाता हैं, इसके बाद अघोर मंत्र से भस्म रमाकर श्रंगार किया जाता है। तड़के 4 बजे से 6 बजे तक होने वाली इस आरती में देश दुनिया के लोग दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।
दद्योदक आरती
🕉 भोग आरती 🕉
*दद्योदक आरती*–
भस्मारती के बाद सुबह 7.30 बजे बाबा महाकाल की दद्योदक आरती की जाती है। इस आरती में मंदिर के शासकीय पुजारी भगवान महाकाल का आकर्षक श्रंगार कर दही चावल का भोग लगाते है।
*भोग आरती*–
महाकाल बाबा को प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे भोग लगाया जाता है। मंदिर में पुजारी परिवार की ओर से पहले बाबा का आकर्षक श्रंगार किया जाता है, इसके बाद मंदिर समिति की ओर तैयार किए गया भोग महाकाल का अर्पित किया जाता है। इसके बाद समिति द्वारा संचालित अन्नक्षेत्र में श्रद्धालुओं को भोजन मिलता है।
*संध्याआरती*–
मंदिर में होने वाली चौथी आरती संध्याआरती होती हैं। शाम 7.30 बजे होने वाल इस आरती को संध्याआरती कहा जाता है। आरती के पूर्व शाम 4.30 बजे पुजारी बाबा का आकर्षक श्रंगार करते है। इसके बाद शाम 5.30 बजे संध्या पूजन किया जाता है। पूजन के ठीक दो घंटे बाद बाबा की संध्यारती की जाती है।
*शयन आरती*– 19 घंटे दर्शन के बाद बाबा शयन आरती के साथ ही विश्राम की ओर प्रस्थान करते हैं। संध्याआरती के बाद बाबा महाकाल को 10.30 बजे शयन आरती शुरू की जाती हैं। 30मिनट की इस आरती के साथ ही बाबा को गुलाब के फूलों से श्रंगारित किया जाता है। आरती के बाद बाबा शयन करते है। वहीं अगले दिन सुबह 4 बजे बाबा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए जाग उठते हैं।
तीन किलो भांग से होता है श्रंगार
राजाधिराज महाकाल की संध्याआरती में प्रतिदिन तीन किलो भांग से श्रंगार किया जाता है। बाबा को मंदिर समिति के पुजारी संध्या पूजन के पूर्व भांग से श्रंगारित करते हैं। इतना ही नहीं बाबा को प्रतिदिन आधा किलो सुखे मेवे से आकर्षक श्रंगार किया जाता हैं।

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