आज का पंचाग आपका राशि फल, आज से श्राद्ध पक्ष आज से प्रारम्भ, श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को ऐसे मिलती हैं

*🙏🏻�आज का पंचांग🙏🏻*
 *कल तिथि पहली एकम है*
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*💥विक्रम संवत :- 2077(2078)*
*💥तारीख:- 20 सितम्बर 2021*
*💥वारः- सोमवार*
*💥मास:- भादरवा सुद*
*💥तिथि:- (१५) पूनम*
*💥नक्षत्र:-* पू भाद्रपदा
 28:03 से उ भाद्रपदा
*💥चन्द्रराशि:-*  कुंभ ♒ (ग श स) 
21:52 से मीन ♓ (द च झ थ)
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*आज कल्याणक ❌*
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*🛑आजका दिन मध्यम  है*
पंचक ===
भद्रा  समाप्त 17:24
*🌞 सूर्योदय* सुबह 06:29
*🍁कामळीका काळ* सुबह  08:53
*🍁नवकारशी*: सुबह 07:17
*🍁पोरिसी :* सुबह 09:31
*🍁साढपोरिसी:* सुबह 11:02
*🍁पुरिमड्ढ* दोपहर 12:33
*🍁अवड्ढ:* दोपहर 03:35
*🍁कामळीका काळ* साम 04:13
*🍁सामकी दो घडी* साम 05:49
*🌚 सूर्यास्त*:साम 06:37
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*✈️  मुम्बई*
🌞 सूर्योदय : सुबह 06:29
☕नवकारशी : सुबह 07:17
🌚 सूर्यास्त : साम
 06:35
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*🔴 दिल्ली *
🌞 सूर्योदयः सुबह 06:10
☕ नवकारशी: सुबह 06:58
🌚 सूर्यास्त: साम 06:19
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*🍯 चेन्नाई*
🌞 सूर्योदय : सुबह  05:59
☕ नवकारशी: सुबह 06:47
🌚 सूर्यास्त : साम 06:06
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*🔔 कलकत्ता*
🌞सूर्योदय : सुबह  05:26
☕ नवकारशी : सुबह 06:14
🌚सूर्यास्त : साम  05:34
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 *🌞 (दिनका शुभ चोघडीया)🌞*
🔸01🔹अमृतः सुबह 06:29 से 08:00
🔹03🔸शुभः सुबह 09:31 से 11:02
🔸06🔹चलः दोपहर 02:04 से 03:35
🔹07🔸लाभः दोपहर 03:35 थी 05:06
🔸08🔹अमृत: साम 05:06 थी 06:37
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    *🌚 (रातका शुभ चोघडीया)*🌚
🔹01🔸चलः साम 06:37 थी 08:32
🔸04🔹लाभः रात 11:01 से 12:31
🔹06🔸शुभः रात  02:00 थी 03:30
🔸07🔹अमृतः रात 03:30 से 05:00
🔹08🔸 चलः  रात 05:00 से 06:30
शट————————–
*🌞सोमवार दिनकी शुभ होरा🌞* 
🔸01🔹चन्द्र 06:29 से 07:29
🔹03🔸गुरू 08:30 से 09:31
🔹06🔸शुक्र 11:32 से 12:33
🔹07🔸बुध 12:33 से 01:33
🔸08🔹चन्द्र  01:33 से 02:34
🔹10🔸गुरू 03:35 से 04:35
————————- *🌚सोमवार रातकी शुभ होरा* 🌚  
🔹01🔸शुक्र 06:37 से 07:36
🔸02🔹बुध 07:36 से 08:35
🔹03🔸चन्द्र 08:35 से 09:35
🔸05🔹गुरू 10:34 से 11:33
🔹08🔸शुक्र 01:32 से 02:31
🔸09🔹बुध 02:31 से 03:31
🔹11🔸चन्द्र 04:30 से 05:29
🔸12🔹गुरू 05:29 से 06:29
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*दक्षिणभारतमे प्रचलित राहुकाळ*
गुलिककाळ,एवं यमघंडकाळका
समय,  *सोमवार*
🌑राहुकाळ,07:30 से 09:00 (अशुभ)
🔴गुलिककाळ 13:30 से 15:00 (शुभ)
🌑यमघंडकाळ,10:30 से 12:00 (अशुभ)
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*( प्रतिष्ठा शान्तिस्नात्रादि के लिए कुम्भस्थापन के दिन*) 👇🏿
*🍯कुम्भ कळशचक्र*,
तारीख,11-09-2021 ना 11:24,से
तारीख, 20-09-2021 ना  03:29. तक
*🍯कुम्भ कळशचक्र*,
तारीख,29-09-2021 ना 23:27,से
तारीख, 06-10-2021 ना  01:12. तक
*🍯कुम्भ कळशचक्र*,
तारीख,11-10-2021 ना 12:57 से
तारीख, 19-10-2021 ना  12:13. तक*🍯कुम्भ कळशचक्र*,
तारीख,29-10-2021 ना 11:40,से
तारीख, 04-11-2021 ना  07:44. तक
*🍯कुम्भ कळशचक्र*,
तारीख,09-11-2021 ना 17:01,से
तारीख, 17-11-2021 ना  22:44. तक
 
👉   ☯🌼20 का  पंचांग 🌼☯
   
🕉 🐑मेष :~ 👉: सामाजिक प्रसंगों में सगे- सम्बंधियों और मित्रों के साथ आपका समय खूब आनंदपूर्वक बीतेगा। मित्रों के पीछे धनखर्च होगा और उनके द्वारा लाभ भी होगा। प्रकृति के सानिध्य में पर्यटन पर जाएँगे। सरकारी और अर्ध सरकारी कार्यों में सफलता मिलेगी। 
🕉🐂वृषभ :~ 👉:  नए कार्यों का आयोजन करने की इच्छा रखनेवाले लोगों के लिए अनुकूल दिन है। नौकरी तथा व्यवसाय में लाभदायक परिणाम मिलेगा। पदोन्नति मिलेगी। व्यापार में नई दिशाएँ खुलती हुई प्रतीत होंगी। सरकार द्वारा लाभ के समाचार मिलेंगे। मानप्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
🕉💑मिथुन : 👉: शरीर में स्फूर्ति और मन में उत्साह का अभाव रहेगा। पेट के रोग सताएँगे। नौकरी में उच्च पदाधिकारियों के नकारात्मक व्यवहार का भोग बनना पड़ेगा। राजकीय कठिनाइयाँ बाधक बनेंगी। महत्त्वपूर्ण कार्य या निर्णय आज स्थगित रखने की सलाह है। 
🕉 कर्क 👉: मन का नकारात्मक व्यवहार आपको हताश करेगा। बाहर का खाने-पीने के कारण स्वास्थ्य खराब होगा। क्रोध को नियंत्रण में रखना पड़ेगा।  नए सम्बंध तकलीफदायक साबित होंगे। पैसे की तंगी अनुभव करनी पड़ेगी। दुर्घटना, आपरेशन का योग है। गुरुचरणसेवी मुनि अजितचन्द्र विजय +919824010332
🕉🦁सिंह :~ 👉: पति- पत्नी के बीच छोटी छोटी बातों से खटराग उत्पन्न होने से मनमुटाव होगा। सार्वजनिक जीवन में अपयश या स्वाभिमान भंग होने का योग हैं। भागीदारों के साथ मतभेद होगा। कोर्ट- कचहरी के प्रश्न हल होने में विलंब होगा।
🕉👸🏼कन्या :~ 👉 :शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य बना रहेगा।  आर्थिक लाभ और काम में सफलता मिलेगी। बीमारी में राहत महसूस होगा। नौकरी में लाभ मिलेगा। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को तथा सहकार्यकर्ताओं को सहयोग मिलेगा।
🕉⚖तुला :~👉 : आज का दिन आप के लिए मध्यम फलदायी रहेगा। स्थावर संपत्ति सम्बंधित दस्तावेज करने हेतु सावधानी बरतिएगा।। परिवार में तकरार न हो इसका ध्यान रखिएगा। परंतु मध्याहन के बाद स्वस्थ अनुभव करने पर सृजनात्मक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान जाएगा।
🕉🦂वृश्चिक :~ 👉: गृहस्थजीवन में उलझे हुए प्रश्नों का निराकरण मिलेगा। साथ में स्थावर संपत्ति से जुडे हुए कार्यों में से भी मार्ग मिलेगा। भाई- बहनों के साथ संबंधो में प्रेम बना रहेगा। परिवारजनों के साथ मतभेद रह सकता है। धन की हानि के योग हैं। 
🕉🏹धनु :~ 👉 :  संतानों की प्रगति होगी। प्रिय व्यक्ति के साथ की मुलाकात रोमांचक रहेगी। तन- मन से ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव करेंगे। अत्यधिक विचारों से मन विचलित बनेगा। आज किसी के साथ बौद्धिक चर्चा या वाद- विवाद में भाग लेने का अवसर आएग।
🕉🐏मकर :~ 👉 : परिवारजनों के साथ मनमुटाव न हो, इसका ध्यान रखें। शेयर- सट्टा में पूँजी निवेश का आयोजन करेंगे। आर्थिक लाभ होगा। स्वास्थ्य सम्बंधी कुछ शिकायत रहेगी। आँख में कोई तकलीफ होने की संभावना है। नकारात्मक वृत्ति दूर करने से लाभहोग। 
🕉⚱कुंभ :~ 👉 :  सगे- सम्बंधियों तथा मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के साथ घर में उत्सव का वातावरण रहेगा। सुरुचिपूर्ण और मिष्टान्न का आनंद लेंगे। आर्थिक दृष्टि से लाभदायक दिन है। अध्यात्म और चिंतन में गहरी रुचि लेंगे।
🕉🐠मीन :~ 👉:  एकाग्रता कम और बेचैनी अनुभव करेंगे। मित्रों तथा स्वजनों के साथ मतभेद खड़े होंगे। लालच वृत्ति आपको नुकसानी में न धकेले, इसका ध्यान रखें। जमानतगीरी या कोर्ट- कचहरी के मामलों में न पड़ना अच्छा है।  

*पूजनीय पितरों के लिए यह श्राद्धौं के 16 दिन विशेष फल प्रदान करने वाले हैं*

20-sep-2021 से 06-sep-2021 तक (पितृ पक्ष)

पं वेद प्रकाश तिवारी ज्योतिष एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
9919242815 निशुल्क परामर्श उपलब्ध

*श्राद्ध की तिथियां*

पहला श्राद्ध: पूर्णिमा श्राद्ध: 20 सितंबर 2021 , सोमवार

प्रतिपदा श्राद्ध: 21 सितंबर 2021, मंगलवार

द्वितीय श्राद्ध: 22 सितंबर 2021, बुधवार

तृतीया श्राद्ध: 23 सितंबर 2021, गुरूवार

चतुर्थी श्राद्ध: 24 सितंबर 2021, शुक्रवार

पंचमी श्राद्ध: 25 सितंबर 2021, शनिवार

षष्ठी श्राद्ध: 27 सितंबर 2021, सोमवार

सप्तमी श्राद्ध: 28 सितंबर 2021, मंगलवार

अष्टमी श्राद्ध: 29 सितंबर 2021, बुधवार

नवमी श्राद्ध (मातृनवमी): 30 सितंबर 2021, गुरुवार

दशमी श्राद्ध: 01 अक्टूबर 2021,शुक्रवार

एकादशी श्राद्ध: 02 अक्टूबर 2021, शनिवार

द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णवजनों का श्राद्ध: 03 अक्टूबर 2021

त्रयोदशी श्राद्ध: 04 अक्टूबर 2021, रविवार

चतुर्दशी श्राद्ध: 05 अक्टूबर 2021, सोमवार

*अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या समापन*
– 06 अक्टूबर 2021, मंगलवार

श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं.?*🙏🏻🌹
श्राद्ध का अर्थ : – ‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्।’
‘श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं।
श्राद्ध-कर्म से व्यक्ति केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है। पितरों की पूजा को साक्षात् विष्णुपूजा ही माना गया है।
श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं?
प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं–कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिण्ड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है? इस शंका का स्कन्दपुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी महाकाल से पूछा–’मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिण्डदान किया जाता है तो वह जल, पिण्ड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?’
भगवान महाकाल ने बताया कि–विश्वनियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो 
जाते हैं। वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति–इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं। इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं।
पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व!!!!
जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार ?
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वेदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर देवयोनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’ होकर प्राप्त होता है। यदि गन्धर्व बन गए हैं तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
 यदि पशुयोनि में हैं तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है। नागयोनि में वायुरूप से, यक्षयोनि में पानरूप से, राक्षसयोनि में आमिषरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रुधिररूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता हैं।
जिस प्रकार बछड़ा झुण्ड में अपनी मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मन्त्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्रीराम द्वारा श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन!!!!!
श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधिरूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गयीं। ब्राह्मण-भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं–
‘मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे आपको बताती हूँ। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारणकर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छायारूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघनकर वहां कैसे खड़ी रहती; इसलिए मैं ओट में हो गई।’
श्राद्ध में तुलसी की महिमा१!!!!!!
तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।
पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न!!!!!
श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है—
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)
यमराजजी का कहना है कि–
–श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
–पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
–परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
–श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
–पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
–श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
श्राद्ध न करने से होने वाली हानि????*
शास्त्रों में श्राद्ध न करने से होने वाली हानियों का जो वर्णन किया गया है, उन्हें जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शास्त्रों में मृत व्यक्ति के दाहकर्म के पहले ही पिण्ड-पानी के रूप में खाने-पीने की व्यवस्था कर दी गयी है। यह तो मृत व्यक्ति की इस महायात्रा में रास्ते के भोजन-पानी की बात हुई। परलोक पहुंचने पर भी उसके लिए वहां न अन्न होता है और न पानी। यदि सगे-सम्बन्धी भी अन्न-जल न दें तो भूख-प्यास से उसे वहां बहुत ही भयंकर दु:ख होता है।
आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे; यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोकपर आते हैं लेकिन जो लोग–पितर हैं ही कहां?–यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से भी श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं और बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं। फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।
मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है।
धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध?
ब्रह्मपुराण में बताया गया है कि धन के अभाव में श्रद्धापूर्वक केवल शाक से भी श्राद्ध किया जा सकता है। यदि इतना भी न हो तो अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर कह देना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध के लिए न धन है और न ही कोई वस्तु। अत: मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ; वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों।
पितृपक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है, अत: प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण अवश्य करना चाहिए।not।।श्राध यानी श्रद्धा कोई भी म्लेच्छ टाइप या संकित या जिज्ञाशू पिपासु ओर रोगंशु तर्क वितर्क न करे हमे पता है ।तुम कितनी श्रद्धा वान हो