📖 *नीतिदर्शन…………………*✍
*नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः।*
*विक्रमार्जितराज्यस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।।*
📝 *भावार्थ* 👉🏾 पराक्रम से राज्य प्राप्त करने वाले सिंह को न मृग अभिषेक करते हैं, न संस्कार करते हैं, पराक्रम से उपार्जित राज्य की प्रभुता सिंह को अपने आप ही प्राप्त है।
🌹………..|| *पञ्चाङ्गदर्शन* ||……….🌹
*श्रीशुभ वैक्रमीय सम्वत् २०७७ || शक-सम्वत् १९४२ || याम्यायन् || प्रमादी नाम संवत्सर|| हेमन्त ऋतु || पौष कृष्णपक्ष || द्वादशी तिथि अपराह्न ४:५५ तक उपरान्त त्रयोदशी || भानुवासर || पौष सौर २७ प्रविष्ठ || तदनुसार १० जनवरी २०२१ ई० || अनुराधा नक्षत्र पूर्वाह्ण १०:४९ तक उपरान्त ऐंन्द्र || वृश्चिकस्थ चन्द्रमा ||*
💐👏🏾 *सुदिनम्* 👏🏾💐
*🚩जय सत्य सनातन🚩*
*🚩आज की हिंदी तिथि*
🌥️ *🚩युगाब्द-५१२२*
🌥️ *🚩विक्रम संवत-२०७७*
⛅ *🚩तिथि – द्वादशी शाम 04:52 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅ *दिनांक 10 जनवरी 2021*
⛅ *दिन – रविवार*
⛅ *शक संवत – 1942*
⛅ *अयन – दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु – शिशिर*
⛅ *मास – पौष*
⛅ *पक्ष – कृष्ण*
⛅ *नक्षत्र – अनुराधा सुबह 10:50 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा*
⛅ *योग – गण्ड सुबह 11:50 तक तत्पश्चात वृद्धि*
⛅ *राहुकाल – शाम 04:52 से शाम 06:14 तक*
⛅ *सूर्योदय – 07:19*
⛅ *सूर्यास्त – 18:13*
⛅ *दिशाशूल – पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण – प्रदोष व्रत*
💥 *विशेष – द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
💥 *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
💥 *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार और द्वादशी के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*
🌷 *कर्ज-मुक्ति के लिए मासिक शिवरात्रि* 🌷
👉🏻 *11 जनवरी 2021 सोमवार को मासिक शिवरात्रि है।*
🙏🏻 *हर मासिक शिवरात्रि को सूर्यास्त के समय घर में बैठकर अपने गुरुदेव का स्मरण करके शिवजी का स्मरण करते- करते ये 17 मंत्र बोलें, जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो, वो शिवजी के मंदिर में जाकर दिया जलाकर ये 17 मंत्र बोले।इससे कर्जा से मुक्ति मिलेगी*
🌷 *1).ॐ शिवाय नम:*
🌷 *2).ॐ सर्वात्मने नम:*
🌷 *3).ॐ त्रिनेत्राय नम:*
🌷 *4).ॐ हराय नम:*
🌷 *5).ॐ इन्द्र्मुखाय नम:*
🌷 *6).ॐ श्रीकंठाय नम:*
🌷 *7).ॐ सद्योजाताय नम:*
🌷 *8).ॐ वामदेवाय नम:*
🌷 *9).ॐ अघोरह्र्द्याय नम:*
🌷 *10).ॐ तत्पुरुषाय नम:*
🌷 *11).ॐ ईशानाय नम:*
🌷 *12).ॐ अनंतधर्माय नम:*
🌷 *13).ॐ ज्ञानभूताय नम:*
🌷 *14). ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:*
🌷 *15).ॐ प्रधानाय नम:*
🌷 *16).ॐ व्योमात्मने नम:*
🌷 *17).ॐ युक्तकेशात्मरूपाय नम:*
🙏🏻 *आर्थिक परेशानी से बचने हेतु* 🙏🏻
👉🏻 *राशि फल
हर महिने में शिवरात्रि (मासिक शिवरात्रि – कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी) को आती है | तो उस दिन जिसके घर में आर्थिक कष्ट रहते हैं वो शाम के समय या संध्या के समय जप-प्रार्थना करें एवं शिवमंदिर में दीप-दान करें ।*
👉🏻 *और रात को जब 12 बज जायें तो थोड़ी देर जागकर जप और एक श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।तो आर्थिक परेशानी दूर हो जायेगी।*
🙏🏻 *प्रति वर्ष में एक महाशिवरात्रि आती है और हर महिने में एक मासिक शिवरात्रि आती है। उस दिन शाम को बराबर सूर्यास्त हो रहा हो उस समय एक दिया पर पाँच लंबी बत्तियाँ अलग-अलग उस एक में हो शिवलिंग के आगे जला के रखना |बैठ कर भगवान शिवजी के नाम का जप करना प्रार्थना करना, | इससे व्यक्ति के सिर पे कर्जा हो तो जल्दी उतरता है, आर्थिक परेशानियाँ दूर होती है ।*
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🌺भारत का स्वर्णिम इतिहास🌺
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1 – जब साइंस नाम भी नहीं था तब भारत में नवग्रहों की पूजा होती थी
2. जब पश्चिम के लोग कपडे पहनना नहीं जानते थे. तब भारत रेशम के
कपडों का व्यापार करता था
3. जब कहीं भ्रमण करने का कोई साधन स्कूटर मोटर साईकल, जहाज वगैरह नहीं थे.
तब भारत के पास बडे बडे वायु विमान हुआ करते थे।(इसका उदाहरण आज
भी अफगानिस्तान में निकला महाभारत कालीन विमान है. जिसके पास जाते
ही वहाँ के सैनिक गायब हो जाते हैं। जिसे देखकर आज का विज्ञान भी हैरान है)
द्वापर युग के प्रभु श्रीराम कालीन पुष्पक विमान वनवास के दौरान श्री लंका से अयोध्या वापस आए थे
4. जब डाक्टर्स नहीं थे. तब सहज में स्वस्थ होने की बहुत सी औषधियों का ज्ञाता था, भारत देश सौर ऊर्जा की शक्ति का ज्ञाता था भारत देश। चरक और धनवंतरी जैसे महान आयुर्वेद के आचार्य थे भारत देश में
5. जब लोगों के पास हथियार के नाम पर लकडी के टुकडे हुआ करते थे. उस समय भारत देश ने आग्नेयास्त्र, प्राक्षेपास्त्र, वायव्यअस्त्र बडे बडे परमाणु
हथियारों का ज्ञाता था भारत
6. हमारे इतिहास पर रिसर्च करके ही अल्बर्ट आईंसटाईन ने अणु परमाणु पर
खोज की है
7. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके नासा अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज कर
रहा है
8. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रशिया और अमेरीका बडे बडे हथियार
बना रहा है
9. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रूस, ब्रिटेन, अमेरीका, थाईलैंड,
इंडोनेशिया बडे बडे देश बचपन से ही बच्चों को संस्कृत सिखा रहे हैं स्कूलों मे
10.आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके वहाँ के डाक्टर्स बिना इंजेक्शन,
बिना अंग्रेजी दवाईयों के केवल ओमकार का जप करने से लोगों के हार्ट अटैक, बीपी, पेट, सिर, गले छाती की बडी बडी बिमारियाँ ठीक कर रहे हैं।
ओमकार थैरपी का नाम देकर इस नाम से बडे बडे हॉस्पिटल खोल रहे हैं और
हम किस दुनिया में जी रहे हैं ?
अपने इतिहास पर गौरव करने की बजाय हम अपने इतिहास को भूलते जा रहे हैं।
हम अपनी महिमा को भूलते जा रहे हैं।
डाॅ हरीश मैखुरी 9634342461
दस महाविद्या में एक देवी “छिन्नमस्तिका” साधना
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पौरिणीक कथा
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एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम सनान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं सनान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नें पुनह देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए, देवी सनान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इस पर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करने लगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मतावलम्बी भी देवी की उपासना करते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने ओपर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता,
दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीररात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है
देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है। छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था
शास्त्रों में देवी को ही प्राणतोषिनी कहा गया है। देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है।
माँ का स्तुति मंत्र
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छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:।
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए। देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है। इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं। देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है। देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या छिन्मस्ता के इन मन्त्रों से आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश संभव है।
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र
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ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा।
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-
१. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है
२. बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है
३. सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है
४. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है
५. कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है
६ .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है
७ .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं छिन्नमस्ता ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -“४”
विशेष पूजा सामग्रियां
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मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं, बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें, सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें, भोजपत्र पर ॐ ह्रीं ॐ लिख करा अर्पण करें, दूर्वा,गंगाजल, शहद, कपूर, रक्त चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो चंडी या ताम्बे के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें।
पूजा के बाद खेचरी मुद्रा लगा कर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-
ॐ वीररात्रि स्वरूपिन्ये नम:
देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र
१)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
२)देवी रेणुका शबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्त्वपूर्ण देवी का महायंत्र होता है।जिसके बिना साधना कभी पूर्ण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें।
यन्त्र के पूजन की विधि
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पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं।
ॐ कबंध शिवाय नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप विधिवत पूजा पाठ नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
छिन्नमस्ता शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
छिन्नमस्ता शतनामावली
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प्रचंडचंडिका चड़ा चंडदैत्यविनाशिनी,
चामुंडा च सुचंडा च चपला चारुदेहिनी,
ल्लजिह्वा चलदरक्ता चारुचन्द्रनिभानना,
चकोराक्षी चंडनादा चंचला च मनोन्मदा,
देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
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1) देवी छिन्नमस्ता का शत्रु नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं वज्र वैरोचिनिये फट
लाल रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें, नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें, रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें, देवी मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है, काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें, दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें
, अखरोट व अन्य फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) देवी छिन्नमस्ता का धन प्रदाता मंत्र
ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं वज्रवैरोचिनिये फट
गुड, नारियल, केसर, कपूर व पान देवी को अर्पित करें, शहद से हवन करें, रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें।
3) देवी छिन्नमस्ता का प्रेम प्रदाता मंत्र
ॐ आं ह्रीं श्रीं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी पूजा का कलश स्थापित करें, देवी को सिन्दूर व लोंग इलायची समर्पित करें, रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें, किसी नदी के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है, भगवे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें, उत्तर दिशा की ओर मुख रखें, खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं
4) देवी छिन्नमस्ता का सौभाग्य वर्धक मंत्र
ॐ श्रीं श्रीं ऐं वज्रवैरोचिनिये स्वाहा
देवी को मीठा पान व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए, रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें, किसी वृक्ष के नीचे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है, संतरी रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें, पूर्व दिशा की ओर मुख रखें, पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम
देवी को पंचामृत व पुष्प अर्पित करें, रुद्राक्ष की माला से 4 माला का मंत्र जप करें, मंदिर के गुम्बद के नीचे या प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है। पीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें, उत्तर दिशा की ओर मुख रखें, नारियल व तरबूज प्रसाद रूप में चढ़ाएं,
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध कार्य
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बिना “कबंध शिव” की पूजा के महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना न करें, सन्यासियों व साधू संतों की निंदा बिलकुल न करें, साधना के दौरान अपने भोजन आदि में हींग व काली मिर्च का प्रयोग न करें, देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें, सरसों के तेल का दीया न जलाएं
विशेष गुरु दीक्षा
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महाविद्या छिन्नमस्ता की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप निम्न में से कोई भी एक दीक्षा ले सकते हैं।
छिन्नमस्ता दीक्षा, वज्र वैरोचिनी दीक्षा, रेणुका शबरी दीक्षा, वज्र दीक्षा, पञ्च नाडी दीक्षा, सिद्ध खेचरी दीक्षा, छिन्न्शिर: दीक्षा, त्रिकाल दीक्षा, कालज्ञान दीक्षा, कुण्डलिनी दीक्षा आदि।
डॉ0 विजय शंकर मिश्र
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