आज का पंचाग, आपका राशि फल, हरिद्वार कुंभ का पहला स्नान, मकर संक्रांति *देवताओं* का *प्रभात काल* आज है दान करने और पुण्य अर्जन का दिन

 ‼️ 🕉️ ‼️
🚩🌞 *सुप्रभातम्* 🌞🚩
📜««« *आज का पंचांग* »»»📜
कलियुगाब्द…………………..5122
विक्रम संवत्………………….2077
शक संवत्…………………….1942
मास……………………………..पौष
पक्ष…………………………….शुक्ल
तिथी………………………..प्रतिपदा
प्रातः 09.03 पर्यंत पश्चात द्वितीया
रवि…………………………उत्तरायण
सूर्योदय………..प्रातः 07.09.59 पर
सूर्यास्त……. …संध्या 06.02.44 पर
सूर्य रैगी………………………….धनु
चन्द्र राशि………………….. …मकर
गुरु राशि……………………….मकर
नक्षत्र………………………….श्रवण
दुसरे दिन प्रातः 04.57 पर्यंत पश्चात धनिष्ठा
योग…………………………….वज्र
रात्रि 10.03 पर्यंत पश्चात सिद्धि
करण…………………………..बव
प्रातः 09.03 पर्यंत पश्चात बालव
ऋतु……………………………हेमंत
*दिन………………………गुरुवार*

*🇮🇳 राष्ट्रीय सौर दिनांक २३*
*पौष मास, सौर अग्रहायण !*

*🇬🇧 आंग्ल मतानुसार दिनांक*
*१४ जनवरी सन २०२१ ईस्वी !*

⚜️ *पौष शुक्ल प्रतिपदा :*
*मकर संक्रांति पर्व*

*मकर संक्रांति का पुण्यकाल प्रातः 8:15 बजे से सायं 4:20 बजे तक है।*

मकर संक्रांति *देवताओं* का *प्रभात काल* है, आज़ से सूर्य *उत्तरायण* होंगे। *आज* के दिन *गङ्गा जी* राजा भगीरथ के रथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर *सागर* में मिली थीं। आज के दिन भारत में सबसे प्रसिद्ध मेला *बंगाल* के *गंगा सागर* में लगता है। आज से सूर्य की गति तिल- तिल बढ़ेगी। यानि दिन का समय बढ़ने लगता है और रात्रि की अवधि कम होने लगती है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को *पोंगल* के रूप में मनाया जाता है। वहां नई फसल का चावल, दाल, तिल के भोज्यपदार्थ से *कृषि देवता* की पूजा की जाती है, *तमिल पञ्चाङ्ग* का नया वर्ष *पोंगल* से शुरू होता है।

⚜️ *अभिजीत मुहूर्त :-*
प्रातः 12.14 से 12.57 तक ।

👁‍🗨 *राहुकाल :-*
दोपहर 01.56 से 0३.17 तक ।

🌞 *उदय लग्न मुहूर्त :-*
*धनु*
05:06:58 07:26:14
*मकर*
07:26:14 08:59:21
*कुम्भ*
08:59:21 10:33:16
*मीन*
10:33:16 12:04:30
*मेष*
12:04:30 13:45:13
*वृषभ*
13:45:13 15:43:50
*मिथुन*
15:43:50 17:57:32
*कर्क*
17:57:32 20:13:42
*सिंह*
20:13:42 22:25:31
*कन्या*
22:25:31 24:36:10
*तुला*
24:36:10 26:50:48
*वृश्चिक*
26:50:48 29:06:58

🚦 *दिशाशूल :-*
दक्षिणदिशा – यदि आवश्यक हो तो दही या जीरा का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें ।

☸ शुभ अंक…………………..5
🔯 शुभ रंग……………..केसरिया

✡ *चौघडिया :-*
प्रात: 11.14 से 12.35 तक चंचल
दोप. 12.35 से 01.55 तक लाभ
दोप. 01.55 से 03.16 तक अमृत
सायं 04.37 से 05.57 तक शुभ
सायं 05.57 से 07.37 तक अमृत
रात्रि 07.37 से 09.16 तक चंचल |

📿 *आज का मंत्र :-*
।। ॐ लोकपालाय नमः ।।

📢 *सुभाषितानि :-*
संसारे मानुष्यं सारं मानुष्ये च कौलीन्यम् ।
कौलिन्ये धर्मित्वं धर्मित्वे चापि सदयत्वम् ॥
अर्थात :-
संसार में मनुष्यत्व, मनुष्यत्व में खानदानी, खानदानी में धर्मिष्टत्व, और धर्मिष्टत्व में सदयत्व सार (रुप) है ।

🍃 *आरोग्यं :-*
*फेफड़े की कमजोरी का इलाज :-*

*6. ब्रोकोली -*
ब्रोकोली में एंटीऑक्सीडेंट का उच्च स्तर पाया जाता है और इस प्रकार, यह फेफड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए बेहद फायदेमंद और सर्वोत्तम सब्जियों में से एक है। अध्ययनों ने यह भी साबित कर दिया है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस से ग्रस्त मरीजों के लिए ब्रोकोली एक प्रभावी उपाय है।

⚜ *आज का राशिफल* ⚜

*राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय के नए स्रोत प्राप्त हो सकते हैं। दूसरों के कार्य की जवाबदारी न लें। रोजगार प्राप्त होगा। ऐश्वर्य के साधन जुटेंगे। संपत्ति के बड़े सौदे हो सकते हैं। बड़ा लाभ होगा। भाग्य का साथ मिलेगा। मित्र व संबंधियों से मेल-मिलाप होगा।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
यात्रा मनोरंजक रहेगी। वरिष्ठजनों के मार्गदर्शन से लाभ में वृद्धि होगी। थकान रहेगी। व्यस्तता के चलते स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रचनात्मक कार्य पूर्ण होंगे। कार्य से लाभ होगा। पार्टी व पिकनिक का आनंद प्राप्त होगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।

👫🏻 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
पारिवारिक मतभेद बढ़ सकते हैं। दूसरों की भावना का खयाल रखें। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। अपेक्षाकृत कार्यों में विलंब होगा। चोट, चोरी व विवाद आदि से हानि संभव है। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। तनाव बढ़ेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
सुख के साधनों पर खर्च होगा। पार्टनरों से मतभेद खत्म होंगे। आय में वृद्धि होगी। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। सावधानी आवश्यक है। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। अपेक्षित कार्य समय पर पूर्ण होंगे। यात्रा मनोरंजक रहेगी। लेन-देन में सावधानी रखें।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
स्वास्थ्य प्रभावित होगा। घर-बाहर तनाव रहेगा। सामंजस्य बैठाएं। चिंता तथा तनाव रहेंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। बुरी खबर मिल सकती है। मेहनत अधिक होगी। दूसरों से अपेक्षा न करें। जोखिम न लें।

🙎🏻‍♀️ *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
स्वास्थ्य का ध्यान रखें। घर-परिवार का सहयोग मिलेगा। प्रसन्नता रहेगी। संतान पक्ष से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। बिगड़े काम बनेंगे। प्रयास सफल रहेंगे। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी। बेचैनी रहेगी। यात्राएं मनोरंजक रहेगी।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। यात्रा मनोरंजक रहेगी। अतिथियों का आगमन होगा। अच्छे समाचार प्राप्त होंगे। जल्दबाजी करने व विवाद से बचें। राजकीय बाधा से सामना करना पड़ सकता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। व्यवसाय ठीक चलेगा।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
किसी पारिवारिक कार्यक्रम में भाग लेना पड़ सकता है। भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। बुद्धि के प्रयोग से हल प्राप्त होगा। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। मनोरंजक यात्रा होगी। भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। आय में वृद्धि होगी। दूसरों पर अतिविश्वास न करें।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। मित्रों से मतभेद हो सकता है। विवाद न करें। व्यवसाय ठीक चलेगा। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। दूसरों पर भरोसा न करें। जल्दबाजी से काम बिगड़ सकते हैं। पुराना रोग उभर सकता है। कार्यस्थल पर परेशानी संभव है।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
नए काम की योजना बनेगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। कोई वरिष्ठजन सहयोग करेगा। बड़ी समस्या दूर होगी। डूबी हुई रकम प्राप्त हो सकती है। यात्रा मनोरंजक रहेगी। घर-परिवार में प्रसन्नता रहेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। भाइयों का सहयोग मिलेगा।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
नए कार्य प्रारंभ करने का मन बनेगा। अपेक्षित सहयोग प्राप्त होगा। प्रसन्नता रहेगी। आर्थिक नीति में परिवर्तन संभव है। कार्यस्थल पर सुधार होगा। मातहतों का सहयोग प्राप्त होगा। पारिवारिक समृद्धि के साधनों पर बड़ा खर्च होगा। प्रमाद न करें।

🐋 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
संत-महात्मा के दर्शन होंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। तंत्र-मंत्र में रुचि रहेगी। वरिष्ठजन सहयोग करेंगे। घर-परिवार में कोई बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। तीर्थयात्रा की योजना कार्यरूप लेगी। झंझटों से दूर रहें। यात्रा में सावधानी रखें। प्रसन्नता रहेगी। मिठाई वितरण करें।

*🚩 🎪 ‼️ 🕉 विष्णवे नमः ‼️ 🎪 🚩*

*☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ☯

🚩 🇮🇳 ‼️ *भारत माता की जय* ‼️ 🇮🇳 🚩

*मकर संक्रांति पर विशेष*
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*मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व।*
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।

मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।

*मकर संक्रांं‍ति पूजा व‍िध‍ि*
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भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस द‍िन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए।

*मन्त्र*
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१- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:।

२- ऋड्मण्डलाय नम:, ऊं सवित्रे नम:, ऊं वरुणाय नम:, ऊं सप्तसप्त्ये नम:, ऊं मार्तण्डाय नम:, ऊं विष्णवे नम:।

पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।

इसके घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।

मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।

*राशि के अनुसार दान योग्य वस्तु*
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मेष🐐 गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।

वृषभ🐂 सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।

मिथुन👫 मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।

कर्क🦀 चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।

सिंह🦁 तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।

कन्या👩 खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।

तुला⚖️ सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।

वृश्चिक🦂 मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।

धनु🏹 पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।

मकर🐊 काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।

कुंभ🍯 काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।

मीन🐳 रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।

*कुछ अन्य उपाय*
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सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।

अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं।

जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है।

पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें।

श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें।
मनोकामना संकल्प कर नए अन्न, कम्बल घी का दान करें लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।

सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।
मंत्र “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः”
संध्या काल में अन्न का सेवन न करें।
तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।

शनि देव के मंत्र का जाप करें।
मंत्र “ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः”
घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें।

*मकर संक्रान्ति का शुभ कब है मुहूर्त्त ?—*
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मकर संक्रांति २०२१ इस साल बेहद खास संयोग में आ रहा है। इस पर अच्छी बात यह भी है कि इस साल मकर संक्रांति की तिथि को लेकर किसी तरह का कन्फ्यूजन भी नहीं है। इस साल मकर संक्रांति
१४ जनवरी को ही पूरे देश में मनाई जाएगी। इसी दिन पोंगल, बिहू और उत्तरायण पर्व भी मनाया जाएगा।

*मकर संक्रांति पर सूर्य का मकर में प्रवेश*
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मकर संक्रांति १४ जनवरी को मनाए जाने की वजह यह है कि इस साल ग्रहों के राजा सूर्य का मकर राशि में आगमन गुरुवार १४ जनवरी को हो रहा है। गुरुवार को संक्रांति होने की वजह से यह नंदा और नक्षत्रानुसार महोदरी संक्रांति मानी जाएगी जो ब्राह्मणों, शिक्षकों, लेखकों, छात्रों के लिए लाभप्रद और शुभ रहेगी। शास्त्रों का मत है कि संक्रांति के ०६ घंटे २४ मिनट पहले से पुण्य काल का आरंभ हो जाता है। इसलिए इस वर्ष ब्रह्म मुहूर्त से संक्रांति का स्नान दान पुण्य किया जा सकेगा। इस दिन दोपहर
०२ बजकर ३८ मिनट तक का समय संक्रांति से संबंधित धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम रहेगा। वैसे पूरे दिन भी स्नान दान किया जा सकता है।

*मकर संक्रांति की तिथि का इतिहास—*
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मकर संक्रांति पर तिथियों को लेकर बीते कुछ वर्षों में उलझन की स्थिति बनी हुई रहती है क्योंकि कई बार सूर्य का प्रवेश १४ जनवरी को शाम और रात में होता है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार संक्रांति अगले दिन माना जाता है। आपको बता दें कि मकर संक्रांति का समय युगों से बदलता रहा है। ज्योतिषीय गणना और घटनाओं को जोड़ने से मालूम होता है कि महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि ६ठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में २४ दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गई थी। अकबर के समय में १० जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में ११ जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी।

*सूर्य की चाल से मकर संक्रांति की तारीख का रहस्य*
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मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक साल में २० सेकंड बढ जाती है। इस हिसाब से ५००० साल के बाद संभव है कि मकर संक्रांति जनवरी में नहीं बल्कि फरवरी में मनाई जाएगी। वैसे इस साल अच्छी बात यह है कि मकर संक्रांति पर सूर्य का आगमन १४ तारीख को सुबह में ही हो रहा है इसलिए मकर संक्रांति गुरुवार १४ जनवरी को ही मनाई जाएगी।

ऐसे मिली रावण को लंका, एक शाप ने करवा दिया सब स्वाहा हो गया लंका कांड।

*मकर संक्रांति के साथ समाप्त हो जाएगा खरमास*
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मकर संक्रांति को सूर्य के धनु राशि में आने से खरमास समाप्त हो जाएगा। लेकिन इस बार खरमास समाप्त होने पर भी विवाह और दूसरे शुभ कार्य का आयोजन नहीं किया जा सकेगा। इसकी वजह यह है कि मकर संक्रांति के ०३ दिन बाद ही गुरु अस्त हो जा रहे हैं। गुरु तारा अस्त होने से शुभ कार्यों पर १४ फरवरी तक विराम लगा रहेगा।

*इसलिए अबकी बार मकर*
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इस बार मकर संक्रांति के दिन सबसे खास बात यह है कि सूर्य के पुत्र शनि स्वयं अपने घर मकर राशि में गुरु महाराज बृहस्पति और ग्रहों के राजकुमार बुध एवं नक्षत्रपति चंद्रमा को साथ लेकर सूर्यदेव का मकर राशि में स्वागत करेंगे। ग्रहों का ऐसा संयोग बहुत ही दुर्लभ माना जाता है क्योंकि ग्रहों के इस संयोग में स्वयं ग्रहों के राजा, गुरु, राजकुमार, न्यायाधीश और नक्षत्रपति साथ रहेंगे। सूर्य का प्रवेश श्रवण नक्षत्र में होगा जिससे ध्वज नामक शुभ योग बनेगा। ग्रहों के राज सूर्य सिंह पर सवार होकर मकर में संक्रमण करेंगे। ऐसे में राजनीति में सत्ता पक्ष का प्रभाव बढ़ेगा और देश में राजनीतिक उथल-पुथल, कुछ स्थानों पर सत्ता में फेरबदल भी हो सकता है।

*मकर संक्रांति के बारे में १३ बड़ी बातें, पर्व मनाने से पहले गीता में लिखे मकर संक्रांति के तीन रहस्यों को भी जानिए*
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सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति के बारे में रोचक तथ्‍य।

०१. *मकर संक्रांति का अर्थ*
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मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है।

०२. *वर्ष में होती है १२ संक्रांतियां*
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पृथ्वी साढ़े २३ डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में ०४ स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें २१ मार्च और २३ सितंबर को विषुवत रेखा, २१ जून को कर्क रेखा और २२ दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को २७ नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को १२ राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन ०४ स्थितियों को १२ संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से ०४ संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।

०३. *इस दिन से सूर्य होता है उत्तरायन*
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चन्द्र के आधार पर माह के ०२ भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के ०२ भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात इस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। ०६ माह सूर्य उत्तरायन रहता है और ०६ माह दक्षिणायन। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के ०६ मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के ०६ मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया।

०४. *फसलें लहलहाने लगती हैं*
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इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।

०५. *संपूर्ण भारत का पर्व*
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मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि कहा जाता है। मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। पूर्वोत्तर भारत में बिहू नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।

०६. *तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान*
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सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए, खाए और बांटे जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

०७. *स्नान, दान, पुण्य और पूजा*
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माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से स्नेह वश उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है।

०८. *पतंग महोत्सव का पर्व*
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यह पर्व ‘पतंग महोत्सव’ के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ वर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है।

०९. *ऐतिहासिक तथ्‍य*
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हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।

इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

१०. *वार युक्त संक्रांति*
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ये बारह संक्रान्तियां सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता। घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को, ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगल को, मन्दाकिनी बुध को, मन्दा बृहस्पति को, मिश्रिता शुक्र को एवं राक्षसी शनि को होती है।

कोई संक्रान्ति यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों।

११. *नक्षत्र युक्त संक्रांति*
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२७ या २८ नक्षत्र को सात भागों
में विभाजित हैं- ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा। उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी।

१२. *देवताओं का दिन प्रारंभ*
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हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।

१३. *सौर वर्ष का दिन प्रारंभ*
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इसी दिन से सौर वर्ष के दिन की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि सौर नववर्ष सूर्य के मेष राशि में जाने से प्रारंभ होता है। सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होता है।
१२ राशियां सौर मास के १२ माह है। दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है। सूर्य पर आधारित को सौरवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौर वर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।

*गीता में लिखे हैं मकर संक्रांति के ०३ रहस्य*
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सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करने को संक्रांति कहते हैं। वर्ष में १२ संक्रांतियां होती है जिसमें से ०४ संक्रांति मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति ही प्रमुख मानी गई हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं। गीता में इसका क्या महत्व है जानिए ०३ रहस्य।

०१. *उत्तरायण में शरीर त्यागने से नहीं होता है पुनर्जन्म*
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मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के ०६ मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया। माना जाता है कि उत्तरायण में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है।

०२. *देवताओं का दिन प्रारंभ*
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हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।

०३. *दो मार्ग का वर्णन* :
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जगत में दो मार्ग है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। देवयान और पितृयान। देवयान में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। पितृयान में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है। लेकिन जिनके शुभकर्म नहीं हैं वे उक्त दोनों मार्गों में गमन नहीं करके अधोयोनि में गिर जाते हैं। (सौजन्य विनोद पुरोहित, कमेड़ा चमोली)

    मकर संक्रांति हरिद्वार कुंभ 2021 के पहले स्नान और खिचड़ी संग्राद के अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने समस्त प्रदेश वासियों को मकर संक्रांति की बधाई दी और सभी के मंगल स्वास्थ्य की कामना की है। 

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री सतपाल महाराज ने समस्त प्रदेश वासियों को मकर संक्रांति की बधाई दी। उन्होंने कहा कि मकर संक्रांति व घुघुति पर्व की बधाई, आज खिचड़ी संक्रांति है ।आज तिल,उड़द,चावल,व घी से बनी खिचड़ी खाने का बड़ा महत्व है। हमें अपने रीतिरिवाजों को कभी नहीं भूलना चाहिए ।🚩इसी के साथ केन्द्रीय शिक्षा कृषि मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, गढ़वाल सांसद श्री तीरथ सिंह रावत, राज्यसभा साांसद श्री अनिल बलूनी, कृषि मंत्री श्री सुबोध उनियाल वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री श्री यशपाल आर्य, बद्रीनाथ के विधायक और चार धाम देवस्थानम बोर्ड के सदस्य श्री महेंद्र भट्ट, कर्णप्रयाग के विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी, थराली की विधायक श्रीमती मुन्नी देवी शाह, कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री राजेंद्र सिंह भंडारी ने भी समस्त क्षेत्र और प्रदेश वासियों को इस पावन अवसर की शुभकामनाएं दी हैं।