भोटिया जनजाति एक परिचय, चमोली की नीति घाटी ‘उबदेश’ क्षेत्र के गांवों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु जनजाति मोर्चा ने जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया से भेंट की

✍️डाॅ हरीश मैखुरी

चमोली 3मई 2021, चमोली की नीति घाटी में सुराईंठोटा तथा माणा घाटी में बेनाकुली हनुमान चट्टी से उपर के गांवों को जनजाति के लोग ‘उबदेश’ कहते हैं। जबकि ऋषिकेश रामनगर व हल्द्वानी से नीचे के हिस्सों को ‘देश’ कहा जाता है। ‘उबदेश’ के लोग जाड़ों में छ माह बर्फ से बचनेे के लिए निचले ‘गंगाड़’ क्षेत्रों में आ जाते हैं तथा गर्मियों में छ माह ‘उबदेश’ चले जाते हैं। यह क्रम शदियों सेे चला आ रहा है। इन जीवट और कर्मठ लोंगों को पहले उबदेशी, मित्र, भोटिया, तोल्छा या मार्छा कहा जाता। पिथौरागढ़ में इन को रंग तथा शोका तथा उत्तरकाशी में जाड़ कहा जाता है। संवैधानिक तौर पर अब इन्हें जनजाति कहा जाता है ये जनजाति हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की प्रथम पंक्ति है, इनके बिना देश की सीमायें खाली और असुरक्षित हैं। चमोली जनपद में माणा घाटी के मार्छा तथा नीती घाटी के तोल्छा कहलाते हैं। इनका सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव लास्पा है। चमोली के भोटिया लोग नन्दा देवी, काली, टिम्मरसैंण शिवलिंग, पांडवोंं, हनुमान जी पितृ देवताओं घंटाकर्ण, नर्सिंग तथा भगवान बद्रीविशाल तथा कुछ खास पर्वतों की पूजा करते हैं। इनका पैतृक व्यवसाय भेड़ बकरी घोड़े चंवर गाय आदि पशुपालन उनी कारोबार तथा भोट प्रान्त तिब्बत के साथ व्यापार था। इस जनजाति के अधीन बड़े बड़े चरागाह थे। 1962 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह हड़प लिया तथा भारत के नीति माणा आदि घाटियों में भी तखड़ी झड़प की। इस युद्ध के तत्काल बाद ही 1962 उत्तराखंड में पिथौरागढ़ उत्तरकाशी और तीन नये सीमावर्ती जिले अस्तित्व में आये। और भोटिया जनजाति के चरागह सैन्य छाछावनियों के लिए अधिगृहित कर दिए गए। तिब्बत व्यापार भी बंद कर दिया गया। तिब्बत व्यापार बंद होने से इनको रोजगार और जीवन यापन का संकट आ गया। तिब्बत व्यापार करने वाले अंतिम जीवित बचे भोटिया व्यापारी ने बताया कि सीता कुंड से घोड़े में एक ही दिन में मानसरोवर जाया जा सकता है। वे कहते हैं भारत सरकार को अपना मानसरोवर चीन से वापस लेना ही चाहिए। तिब्बत नेहरू की गलती से चीन के पास गया। वे तिब्बत को सागर कहते हैं जहां नमक मिलता है। 1962 में व्यापार बंद होने के बाद भी इस जीवट कोम ने अपनी पहचान बनाये रखते हुए उस दौर में उनी कारोबार तथा निचले गंगाड़ क्षेत्रों में वस्तु विनिमय प्रणाली के माध्यम से अपना व्यापार बनाये रखा। अपने मृदु व्यवहार के कारण यह सफल व्यापारी सिद्ध हुए हैं। फोटो सौजन्य राखी रावत

आज भोटिया लोग अपनी इमानदारी जीवटता दयालुता मेहनत के बल पर न केवल उच्च सरकारी अधिकारियों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। अपितु व्यापार व्यवसाय में भी आगे हैं। इस जनजाति से केदार सिंह फोनियां जैसे कर्मठ और इमानदार विधायक और मंत्री रहे तो आईएस पाल उत्तराखंड के पहले स्वास्थ्य महानिदेशक रहे और आरबीएस रावत प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक रहे। डाक्टर इंजिनियरिंग तो बहुत कुमाऊँ में पिथौरागढ़ से तो इस जनजाति के कमीश्नर डीएम पुलिस अधिकारियों की खासी संख्या है। फिर भी सरकारों ने इस जनजाति की जो जमीन 1962 में सैन्य छावनियों के लिए अधिग्रहित की उसके बदले इनको आजतक न भूमि दी न इनके पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य किए। उल्टे इनके पशुपालन को तो अनेक बार हतोत्साहित भी होना पड़ता है फलस्वरूप दस दस हजार बकरियां रखने वाले इनके चरवाहे आज कल 100 – 200 बकरी पर सिमट गये और अधिकांश लोगों ने पशुपालन व्यवसाय छोड़ दिया। उन का कारोबार भी घाटे में जा रहा है। अब भोटिया लोगों की अधिकतर नयी पीढ़ी तो दिल्ली देहरादून गोपेश्वर नन्दप्रयाग कर्णप्रयाग आदि शहरों में शिफ्ट हो गयी है लेकिन खुशी की बात है कि इन शहरों में भी शादी विवाह आदि विशेष अवसरों पर नयी पीढ़ी अपनी परंपरा और परिधान भूलती नहीं है। जनजाति की राखी रावत कहती हैं कि जो लोग अपनी परम्परा और परिधान छोड़ देतेे हैं उनकी पहचान भी समाप्त हो जाती है और वे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं इसलिए हम शहरों में भी अपनी परम्परा गर्व के साथ जीवित रखे हुए हैं। माणा पीताम्बर दत मोल्फा इसकी परम्पराओं बचाने में लगे हुए हैं 

उससे भी आशावान पहलू ये है कि पुरानी पीढ़ी के कुछ परिवारों ने ऋतु कलीनीन प्रवास पर ‘उबदेश’ जाने आने की समृद्ध प्राचीन परम्परा जीवित रखी है। वे अब भी गर्मियों में अपने उपरी गांवों जाते हैं। पहले वे कर्णप्रयाग आदि से स्थानों से लेकर माणा धनतोली तथा मलारी बाम्पा गमशाली नीति तक पैदल जाते थे। अब पशुओं के साथ वालों को छोड़कर बाकी सभी वाहनों से जाते हैं। 1987 में सड़क मलारी तक थी तथा 2010 में पहली बार नीति में सड़क पंहुची और पन बिजली प्लांट लगा। इन गांवों में अब जा कर मोबाइल टावर लगने शुरू हुए संसाधनों के अभाव में भोटिया जनजाति पलायन कर रही है। 

फोटो – जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया को ज्ञापन देते पुष्कर सिंह राणा

इस वर्ष भी जनजाति मोर्चा भाजपा चमोली के जिलाध्यक्ष पुष्कर सिंह राणाा ने सोमवार को नीती घाटी के प्रवासी परिवारों का ग्रीष्मकालीन प्रवास मे पहुँचने से पहले मूलभूत सुविधाओं की सुधार हेतु सम्बंधित विभागों के अधिकारियों की समीक्षा बैठक के संदर्भ मे जिलाधिकारी चमोली से भेंट कर उन्हें ज्ञापन देकर अवगत किया गया कि सीमान्त क्षेत्र नीती माणा घाटी के लोग मई माह के 15 तारीख तक शीतकालीन प्रवास से ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए अपने पैतृक गॉवो जैसे नीती, गमशाली,बाम्पा, फरकिया गॉव,मलारी, द्रोणागिरी, कागा-गरपक जेलम जुम्मा औऱ कोषा मे पहुँचना शुरू कर देते हैं। लेकिन शीतकाल मे बर्फ़बारी के कारण यहां पर ग्रामीणों को अनेक मूलभूत समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं। ग्रामीणों की समस्या को देखते हुए जिस तरह बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले सरकारी तन्त्र की समीक्षा बैठक करके वहां की मूलभूत समस्याओं को सुचारू किया जाता है ठीक उसी प्रकार नीती घाटी के मूलभूत समस्याओं के निराकरण हेतु मई माह के 10 तारीख तक सम्बंधित विभागों के अधिकारियों की एक समीक्षा बैठक किया जाय और ग्रामीणों के अपने पैतृक गॉव/ग्रीष्मकालीन प्रवास मे पहुँचने से पहले वहां पर मूलभूत समस्याओं का निराकरण किया जाय। जैसे बिजली पानी गैस यातायात चिकित्सालय स्कूल आदि व्यवस्थाएं ठीक हो जिससे वहां पर ग्रामीणों के पहुँचने से पहले इन मूलभूत सुविधाएं स्थापित हो सकें और ग्रामीणों को जीवन रक्षण हेतु परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। सम्बंधित विभागों मुख्यतः लोक निर्माण विभाग, विधुत विभाग,जल संस्थान,पेय जल निगम,सिंचाई विभाग,लघु सिंचाई विभाग,स्वास्थ्य विभाग (जिसमे 108 व डॉक्टरों की ब्यवस्था बहुत आवश्यक है) परिवहन विभाग (रोड़वेज बस की ब्यवस्था नीति गांव तक हो जो कि वर्तमान में तपोवन तक चलती है) पशुपालन विभाग व गैस आदि हैं। सभी को आवश्यक निर्देश दिया जाय। 

फोटो सौजन्य राखी रावत

श्री राणा के अनुसार जिलाधिकारी ने बहुत जल्दी उप- जिलाधिकारी जोशीमठ के तत्वाधान मे एक समीक्षा बैठक आहूत की बात कही है जिसमें सम्बंधित विभागों को निर्देशित किया जाएगा कि नीती घाटी के प्रत्येक गॉवों मे जो भी समस्या है उसका तुरंत निवारण किया जाय। इस भेंट वार्ता में सहयोगी श्री राम सिंह राणा मलारी (तेफना) सम्मिलित रहे।