जाति व धर्म की आड़ में अब दलन करने लगे हैं दलित?

-हरीश मैखुरी

कोरे गाँव के सबक – हिन्दुस्तान ने 50%आरक्षण देकर और अंबेडकर के विसम विधान झेल कर भी जिस तबके को अपना अभिन्न अंग समझा,  वह आज फोरिन फंडिंग के इशारे पर मीमासुरों की कठपुतली बन कर तांडव कर रहा है, यह स्थिति  देश के लिए शुभ नहीं है। अब  इन तथाकथित दलित नेताओं को  जवाब देना पड़ेगा कि जेएनयू के देशद्रोही उमर खालिद कोरेगांव क्या करने पंहुचे थे? साथ ही ये भी कि देश ने सिर्फ दलित होने की वजह से कोविंद को राष्ट्रपति बना दिया, अंबेडकर, बाबू जगजीवन राम, फकरुदीन अली अहमद ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जो सिर्फ  तुष्टिकरण के चलते जाति व धर्म के  नाम पर  शीर्ष पदों पर विराजमान हैं और दलित नेता व पत्रकार किसके हाथों की कठपुतली बनने जा रहे हैं? ईसाईकरण और इस्लामिकरण कार्यक्रम में अपना सबसे ज्यादा धर्मान्तरण कोन लोग कर रहे हैं ? जिन्होंने अयोग्य होने बावजूद आरक्षण की मलाई से सरकारी पदों पर कुंडली मार कर ली,  वे ही  सबसे बड़े जातीय विद्वेष के झंडाबरदार क्यों बन रहे हैं? दलित शब्द हिन्दू डिक्शनरी का शब्द ही नहीं है यह कांसीराम बामसेफ मायावती जैसे लोगों ने गढा़ है। हमारे यहाँ जाति और वर्ण परमानेन्ट चीज नहीं है बल्कि यह स्वेच्छा से अपनाए जाने वाले पेशे रहे हैं। लेकिन आज जो लोग वर्ण व्यवस्था को गाली देते हैं वे सरकारी लाभ लेने के लिए जाति प्रमाण पत्र लेते हैं। वे ही लोग एससी एसटी एक्ट और जाति व धर्म की आड़ में अब दलन करने लगे हैं।  कहीं न कहीं धर्मान्तरण और विदेशी फंडिंग का झोल लगता है। इधर सरकारें भी जाति प्रमाण पत्र बांटने की ऐजेन्सी बनकर रह गई हैं। देश और सांप्रदायिक व सामुदायिक सद्भाव के लिए शुभ नहीं है। देश जितनी जल्दी जाति व्यवस्था के खोल से बाहर निकले उतना ही अच्छा।