उत्तराखण्डः और कितने मुख्यमंत्री?

हरीश मैखुरी

9 नवंबर सन् 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखण्ड राज्य ने केवल 17 साल में ही 9 मुख्यमंत्रियों का बोझ उठा लिया है। उत्तराखण्ड की कार्यवाहक सरकार के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का कार्यकाल इसलिए छोटा रहा कि नवगठित राज्य को अपनी सरकार बनानी थी। चुनाव के बाद पृथक उत्तराखण्ड राज्य के धुर विरोधी रहे कांगे्रस पार्टी के पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखण्ड में न केवल पहली चयनित सरकार के थोपे हुए मुख्यमंत्री बने बल्कि अब तक अपना 5 साल पूरा कार्यकाल चलाने वाले अकेले मुख्यमंत्री हैं, जबकि उसके बाद सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने ढाई साल में ही भुवन चंद्र खण्डूरी को बदलकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया और जब निशंक भी सत्ता के खांचे पर फिट नहीं बैठे तो पुनः चुनाव के समय खण्डूरी की वापसी हुई।

फिर इसके बाद कांग्रेस सत्ता में आई और विजय बहुगुणा ऊपर से थोप दिए गए, फिर वही कहानी दोहराई गई और ढाई साल में ही बहुगुणा को चलता कर हरीश रावत को उत्तराखण्ड की कमान सौंपी गई। 2017 के चुनावों में जनता ने फिर कांग्रेस सरकार को सिरे से खारिज कर भारतीय जनता पार्टी को मौका दिया और भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार पंरपरा तोड़ते हुए डोईवाला से विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया है। स्वभाव से मिलनसार और निरापद छवि के धनी त्रिवेंद्र सिंह रावत की परफाॅरमेंस देखने के लिए डेढ़ माह का कार्यकाल काफी कम है फिर भी जिस तरह से उनकी ढीली परफाॅरमेंस आ रही, और निर्णय लेने की क्षमता लड़खड़ा रही है उससे इनके कार्यकाल पर भी ढय्या लगनी तय मानी जा रही है।

आश्चर्य की बात ये है कि इतनी बड़ी तादाद में मुख्यमंत्री जनता ने नहीं बदले, जनता ने भाजपा और कांग्रेस की सरकार को बारी-बारी पूरा बहुमत दिया, तो फिर सवाल यही उठता है कि इतने मुख्यमंत्री किस बिनाह पर बदले गए जबकि इन मुख्यमंत्रियों पर कानूनन कोई बड़ा आरोप भी नहीं रहा। उत्तर साफ है, छोटे राज्य से बड़ी कमाई की उम्मीदें लगाए राष्ट्रीय दल अपने कमाऊ पूत को उत्तराखण्ड पर मुख्यमंत्री थोपते रहे  और जब मुख्यमंत्री अपेक्षित सहयोग राशि इकट्ठा करने में सक्षम नहीं हुए तो बदल दिए गए। उससे ज्यादा दुखद ये है कि विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले इस पिछड़े उत्तराखण्ड राज्य को अब तक न तो यशवंत सिंह परमार की तरह कोई प्लानर मुख्यमंत्री मिला और न ही योगी आदित्यनाथ की तरह दृढ़ इच्छा शक्ति व त्वरित निर्णय लेने वाला मुख्यमंत्री ही मिला। इसीलिए उत्तराखण्ड के ये अक्षम मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड का विकास तो दूर इन 17 सालों में अपनी एक राजधानी तक स्थापित नहीं कर पाए।