उत्तराखण्डः मानव और जंगली जानवरों के संघर्ष की अंतहीन कहानी

हरीश मैखुरी
आश्चर्यजनक रुप से 53,483 वर्ग किमी0 का उत्तराखण्ड दुनिया का एकमात्र राज्य है जहां इतने कम क्षेत्र में 6 राष्ट्रीय पार्क और 8 वन्य जीव विहार हैं, यही नहीं बांधों ने भी उत्तराखण्ड का बहुत बड़ा क्षेत्र जंगली जानवरों के रहने लायक नहीं छोड़ा इसलिए जंगली जानवरों का रुख जंगलों की बजाए बसासत की ओर हो गया है। दुनिया में कहीं भी इतने कम क्षेत्रफल में इतने अभ्यारण और वन्य जीव विहार देखने को नहीं मिलते जितने की उत्तराखण्ड राज्य की इस छोटी सी भौगोलिक परिधि के अन्तर्गत हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया की अपेक्षा उत्तराखण्ड में वन्य जीवों और मनुष्यों के बीच का संघर्ष तेजी से बढ़ा है।

पूरी दुनिया में पिछले 5 सालों में कुल जितने बाघों को आदमखोर होन की वजह से मारा गया है उतने इस दौरान सिर्फं उत्तराखण्ड में मारे गए हैं। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि काले भालू को आमतौर पर शाकाहारी जीव माना जाता है लेकिन उत्तराखण्ड के भालू भूख और अपने नवजात बच्चों की चिंता के चलते आए दिन ग्रामीणों को नोचकर घायल करते हैं बल्कि उनका मांस भी खा जाते हैं, इस कारण ये भालू करीब-करीब मांसाहारी हो गए हैं। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों से पलायन की एक बड़ी वजह खंूखार जंगली जानवर भी है यहां के गांवों से आए दिन भालू और बाघ के हमले में घायल लोगों की सूचना सुर्खियों में रहती है। यही नहीं ये जंगली जानवर फसलों को भी तहस-नहस कर देते हैं जिसकी वजह से ग्रीमीणों का खेती से भी मोह भंग हो गया है।

कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क, गोविंद नेशनल पार्क, नंदा देवी नेशनल पार्क, फूलों की घाटी, गंगोत्री नेशनल पार्क और गोविंद वन्य जीव विहार, केदारनाथ वन्य जीव विहार, अस्कोट वन्य जीव विहार, सोननदी वन्य जीव विहार, विन्सर वन्य जीव विहार साथ ही विनोग, आसन और झिलमिल जैसे वन्य जीव विहार उत्तराखण्ड के अत्यंत सीमित भौगोलिक क्षेत्र में मानव की अपेक्षा पूरी दुनिया में वन्य जीवों की संख्या अनुपात बढ़ाने में सहायक रहे हैं और यही अनुपात इनके बीच संघर्ष का मुख्य कारण है। किसानों का संघर्ष केवल भालू और बाघ से नहीं है बल्कि सुअर, शाही, बन्दर, लंगूर और सांपों से भी है। जहां बाघ और भालू सीधे मनुष्यों पर अटैक करते हैं वहीं बाकी जंगली जानवर किसानों की फसल चैपट कर जाते हैं वहीं किसानों की फसल चैपट करने वाले पक्षियों को भी किसानों पर रहम नहीं आता।

उत्तराखण्ड में पिछले 17 सालों में करीब 852 लोग हिंसक जंगली जानवरों के शिकार हुए इनमें बहुत सारे स्कूली बच्चे ऐसे थे जो अपने परिवार के इकलौते चिराग थे बहुत सारी महिलाएं ऐसी थीं जिनपर परिवार निर्भर करता था लेकिन इस दर्द को दिल्ली और देहराूदन की वातानुकूलित व्यवस्था समझना ही नहीं चाहती, मैं सोचता हूं कि कि यदि गैरसैण के लखपत सिंह रावत अब तक 58 आदमखोर बाघों को मौत के घाट नहीं उतारते तो मरने वालों का यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता था। इसीलिए अब यहां के इंसानों की ंिचंता न सही विकास और पलायन को रोकने की दृष्टि से इन वन्य जीव विहार और पार्को में हस्तक्षेप करना पड़े तो सरकार को इस बारे में युक्तियुक्त ढंग से सोचना जरुरी है।