औली में शादी करके गुप्ता बंधुओं ने क्या पाया और उत्तराखंड नें क्या चुकाया?

हरीश मैखुरी

औली में शादी करके गुप्ता बंधुओं ने क्या पाया और उत्तराखंड नें क्या चुकाया?
====================== गुप्ता बंधुओं के पास शादी में खर्च करने के लिए 200 करोड़ रुपया है, तो इसका अर्थ लगाया जा सकता है कि गुप्ता बंधु आज की तारीख में अच्छा खासा एंपायर होगा। बताया जा रहा है कि अफ्रीका में मुश्किल बढ़ने के कारण गुप्ता बंधु उत्तराखंड में शायद इन्वेस्टमेंट करने के मूड में हैं, जिसकी शुरुआत औली में शादी से सकती है। गुप्ता बंधुओं को औली में शादी करके जो चाहिए था वह उन्हें मिल गया है। फर्ज करो यह शादी भारत के किसी बड़े शहर में आयोजित होती तो इससे आसानी व कम खर्चे पर हो जाती। बताया जाता है कि उन्होंने औली को पहाड़ के प्रति प्रेम दर्शानें के उद्देश्य से चुना। इस शादी से उन्हें पक्ष का स्नेह और कुछ लोगों के विरोध के कारण चर्चा मिल गयी, गुप्ता बंधु अपना काम कर गए हैं, उन्हें अच्छी खासी मीडिया कवरेज मिली, उन्होंने उत्तराखंड के अधिकांश राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं पत्रकारों साधु-संतों को इस शादी में आमंत्रित करके न केवल अच्छे खासे तालुकात विकसित कर लिए बल्कि हरिद्वार ऋषिकेश से लेकर जोशीमठ क्षेत्र के स्थानीय दुकानदारों से भी व्यापारिक संपर्क साध लिए। जिन गुप्ता बंधुओं का उत्तराखंड में कोई नाम नहीं जानता था आज उनकी चर्चा है। लेकिन सवाल यह है कि उत्तराखंड को क्या मिला बदनामी? उत्तराखंड में शादी के मसले को कोर्ट ले जाता है, उत्तराखंड पर्यावरण के नाम पर इस शादी का विरोध करता है, उत्तराखंड में इस शादी के लिए न तो पर्याप्त जगह है, ना संसाधन हैं, टेंट और फूल तक बाहर से लाने पड़ते हैं बावजूद इसके उत्तराखंड वहां पर एक साड़ी धोती के लिए भी रो देते हैं ऐसी तोहीन देवभूमि के लोगों की इससे पहले शायद ही हुई हो। गुप्ता बंधुओं ने औली में शादी के दौरान हुआ कचरा साफ कराया कि नहीं सवाल ये है। लेकिन कुछ कथित पर्यावरण वादी जिन्होंने शायद ही कभी पेड़ लगाया हो, हर जगह विकास के मार्ग में पंगा फंसाने के माहिर हैं, चारधाम यात्रा मार्ग बनता है तो इन्हें मिर्ची लग जाती है, कोई ठीक-ठाक शादी करने आता है तो इन्हें मिर्ची लग जाती है, रेलवे लाइन बनती है तो इन्हें मिर्ची लग जाती, नैनीसार बोर्डिंग स्कूल का क्या हुआ? उत्तराखंड में तो ऐसे बोर्डिंग स्कूल हर ब्लाक में खोलने की योजना बननी चाहिए। अरे चलने दो उत्तराखंड को थोड़ा बहुत घिसटते हुए ही सही। यहां अभी बहुत सारे विकास के कार्य होने शेष हैं, अभी तक आधे से ज्यादा गांव मोटर सड़क से जुड़ने बाकी हैं। सिर्फ सड़कों चिकित्सालयों और स्कूलों के अभाव में लोगों ने पहाड़ खाली कर दिए हैं। हम पहाड़ को मोटर सड़कों से जोड़ें, अच्छे अस्पताल बनायें, स्कूल खोलें तो क्या पता पलायन रुक भी जाए, वैसे अब देर हो चुकी है। आगे के लिए हम तो इतना करें कि जो उत्तराखंड के हल्द्वानी देहरादून हरिद्वार और पहाड़ों में छोटे छोटे शहर बस रहे हैं वहां पर अनिवार्य शर्त लगा दें कि मकान के काम की शुरुआत तब होगी जब उस पर दो पेड़ लगाने की पहले जगह हो और दो पेड़ उसमें विकसित हो सकें, उसके बाद ही परमिशन मिले। और यदि कोई मॉल शॉपिंग कंपलेक्स या बिल्डर काॅलोनाइजर यहां काम करना चाहे तो उससे पहले जितने स्क्वायर फिट में अपना व्यवसायिक कंपलेक्स बनाना चाहते हैं उतने स्क्वायर फीट में उसी जगह के आसपास पेड़ लगाकर उनको 5 साल तक बड़ा करने के लिए भी बांडेड हो। तब तो उत्तराखंड बसता बचता है, और नहीं तो इन विकास विरोधी और कथित पर्यावरण प्रेमियों की भेंट चढ़ सकता है। वैसे ही उत्तराखंड की देवभूमि रोहिंग्या और बंगलादेशी मुस्लिमों के कब्जे में जा रही है इस पर यह विकास विरोधी कभी चिंतन मनन नहीं करते। आवश्यकता थी कि इनको उत्तराखंड से बाहर करने के लिए कोर्ट में पीआईएल लगती इन्हें जितना जल्दी हो डिपोट किया जाय। अन्यथा इनके हर परिवार के दर्जनों बच्चे कल उत्तराखंड के नागरिक बन सकते हैं। जो यहां की डैमोग्राफी खराब करेगा और अपराध को बढ़ावा देगा।