चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी?

*चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी.?*

उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। तो उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से।

चूल्हे की राख का संगठन है ही कुछ ऐसा। आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें।

राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, जो पौधों में उपलब्ध होते हैं। ये सभी Major तथा Minor Elements पौधे, या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से।

सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium।
इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus Manganese, Sodium तथा Nitrogen। कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है।

राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph 9 से 13.5 तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है। जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का खात्मा। रोटी अथवा खाने पर लगने वाली चूल्हे के लकड़ियों की राख की मात्रा भी पाचक और बैक्टीरिया नाशक होती है इसीलिए चूल्हे पर बनी हुई रोटियां पाचन और आरोग्य प्रदान करती हैं। 

आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। भारत में युगों से भगवान शंकर से लेकर आज तक लाखों की संख्या में साधु संत आज भी अपने बदन पर राख का अंग राग और वस्त्र लगाते हैं उससे एक तो शरीर उनका ऑटो एक्लामेटाईज होता है साथ ही  रोगाणुओं और विषाणु से भी सुरक्षित रहता है राख से अच्छा सैनिटाइजर आज तक नहीं बना है। 

सनातन संस्कृति में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है।

मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है। मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है।

जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटेन्ट का काम करती है। इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है।

वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फेक्शन पर्पज के लिए लो कोस्ट एकोफ़्रेंडली विकल्प है जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमेंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है।

*सनातन धर्म का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। ऋग्वेद की एक रिचा है  जिस का हिंदी में अर्थ है कि  जो विज्ञान सम्मत नहीं है वह शास्त्र नहीं है और जो शास्त्र नहीं है  आचरणीय नहीं है। वास्तव में शास्त्र का अर्थ ही अकाट्य विज्ञान होता है इसलिए सनातन सांस्कृतिक परम्परा अपनाइए और स्वस्थ रहिये।*