नैतिकता का राजनीतिज्ञों ने कब पालन किया जो अब नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं ?

लगता है शिवसेना का हिंदुत्व का मुद्दा  बालासाहेब ठाकरे के साथ ही ओझल हो गया  और अब शिवसेना में  ठीकरे बचे हैं जो कहीं भी फूट सकते हैं। इधर कूटनीति का जहां तहां उपहास उड़ाने वालों की नैतिकता आज कल हिलोरे मारने लगी है आज सबको नैतिकता, आदर्श व् शुचिता जैसे शब्द अचानक से बड़े प्रिय लगने लगे हैं,

रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा बाली पर बाण चलाने के बाद यही सब कुछ बाली को भी याद आया था, और उसने भी भगवान श्रीराम से नैतिकता की दुहाई देकर उनके आचरण पर प्रश्न किया था,

श्रीराम का उत्तर था कि तुमने कब नैतिकता का पालन किया जो आज तुम उस नैतिकता की दुहाई दे रहे हो ? तुमने अपने भाई का राज्य छीन लिया उसकी पत्नी तक छीन ली और उसे राज्य से विस्थापित होने के लिए विवश कर दिया, इसके बाद तुम्हारे द्वारा नैतिकता की बात करना पाखंड से अधिक कुछ नहीं।

महाभारत में भी युद्ध की समाप्ति के बाद जब भीष्म बाणों की शैया पर थे और कृष्ण उनसे मिलने आए तो भीष्म से भी रहा ना गया और उन्होंने कृष्ण से प्रश्न कर ही दिया कि जिस प्रकार से मुझे, गुरु द्रोण, कर्ण और दुर्योधन को रणभूमि से हटाया गया क्या वह उचित था

कृष्ण का उत्तर था आप अपनी प्रतिज्ञा की डोर से बंधे हुए हस्तिनापुर सिंहासन के साथ खड़े रहकर कौरवों द्वारा भीम को विष देने पर, लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का षड्यंत्र रचने पर, द्यूतक्रीड़ा में छल से पांडवों का सब कुछ छीन लेने पर ,कुलवधू द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करने पर और पांडवों को जबरन अज्ञातवास भेजने पर, अभिमन्यु वध पर आप नैतिकता की अवहेलना करते आ रहे उन्ही कौरवों के संग खड़े रहे, अपनी प्रतिज्ञा से बंधे होने के कारण युद्ध भी आपने उसी अनैतिकता के प्रतीक कौरवों की ओर से किया, ऐसे में नैतिकता के पालन का भार केवल पांडवों के शीश पर ही क्यों हो ?

सिंध के राजा दाहिर ने नैतिकता का पालन करते हुए मोहम्मद के वंशजों को शरण दी थी, उस नैतिकता का परिणाम उन्हें अपने कुल का विनाश होते हुए देखने और अपनी बेटियों को आक्रमणकारियों की यौन दासी बनते हुए देख कर चुकाना पड़ा

पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 14 युद्धों में पराजित कर बंदी बनाया और हर बार नैतिकता का पालन करते हुए उसके क्षमा मांगने पर उसे छोड़ दिया, उसका परिणाम पृथ्वीराज चौहान को 15 वीं बार धोखे खाकर हारने और अपने प्राण व् राजपाट गवा कर भुगतना पड़ा।

अटल बिहारी वाजपेई ने भी नैतिकता का पालन करते हुए मात्र 1 वोट से अपनी सरकार गिरते हुए देखी थी और भाजपा ने तो उसके बाद कई राज्यों और छेत्रिय दलों व् उनके नेताओं से धोखे खाए।

परंतु भाजपा जहां पर भी सत्ता में आई वहां विकास किया, केंद्र में आई तो राष्ट्र हित के कार्य किए, अटल बिहारी वाजपेई की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की, एक भी घोटाले का दाग नहीं लगा, जबकि अन्य सरकारों ने घोटाले कर देश के खजाने लूटने में कीर्तिमान रच दिये, हिंदुओं के दमन में कोई कसर बाकी न रखी और आतंकवाद, अलगाववाद, माओवाद को पनपाने के लिए आवश्यक वातवरण के निर्माण हेतु आवश्यक हर कदम उठाए।

वहीं भाजपा ने पूरे देश का विद्युतीकरण किया, 10 करोड़ शौचालय बनवा दिए, सस्ते इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई, गरीबों को आवास दिया, उनके घर गैस के चूल्हे लगवाए, आतंकवाद, अलगाववाद और माओवाद पर लगाम लगाई, शत्रु देश पाकिस्तान में घुसकर उसे जवाब देना शुरू किया, पाकिस्तान को आर्थिक कंगाली की ओर धकेल दिया, पिछली सरकारों में 10% से अधिक रहने वाली महंगाई दर को नियंत्रित कर 4% के अंदर लेकर आए, 11वें नंबर की अर्थव्यवस्था रही भारत को पांचवें नंबर पर ले आये, विदेशी मुद्रा भंडार अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े व् सकारात्मक निर्णय लिए, 370 जैसा कलंक हटाया, राम मंदिर के निर्माण हेतु अपना अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में उतार दिया और 500 सालों से संघर्ष कर रहे हिंदूओं के लिए राम मंदिर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया,

परंतु आज इन सभी सकारात्मक कार्यों को भूल कर नैतिकता की बीन बजा रहे लोग भूल जाते हैं कि ये भ्रष्टाचारी आपके पसंदीदा दलों के चमकते सितारे ✨ रहे हैं। 

       जब सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से हाथ मिलाया था तब कांग्रेस और गांधी समेत कई अन्य लोगों ने भी ऐसे ही नैतिकता के प्रश्न उठाए थे, सुभाष चंद्र बोस का उत्तर था “अनैतिक रूप से भारत पर कब्जा कर बैठे अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्र कराने हेतु और भारत के हित के लिए तो मैं शैतान से भी हाथ मिला सकता हूं।”

आज नैतिकता की दुहाई दे रहे उन महान विश्लेषकों, राजनीतिक विचारकों, बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों को सुझाव है कि सत्ता में रहने पर भाजपा सरकार द्वारा किए गए उन बड़े कामों को देख लो जिन्हें तुम सोचने के लिए भी डरते थे, अन्य सरकारों के किये कृत्यों से उनकी तुलना कर लो, उसके पश्चात ही नैतिकता की बीन बजाओ। वैसे भी नैतिकता का राजनीतिज्ञों ने कब पालन किया जो अब नैतिकता की दुहाई दे रहे?भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने के साथ ही  एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार 70 हजार करोड़़ घोटाले के आरोप सुर्खियों में हैं। लेकिन यह आरोप तो उन पर तब भी थे जब एनसीपी नेता शरद पवार ने उनको पार्टी का टिकट दिया, चुनाव आयोग ने उनको चुनाव लड़ने की अनुमति दी, विधायक दल का नेता चुना, अब भी कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी मिलकर अजीत पवार को  सरकार बनाने के लिए कोशिशों में है। तब नैतिकता ठंडे बस्ते में चली जाती है क्या? आखिर राजनीतिक दल अपराधियों को गंगा नहलाने के फार्मूले की बजाय बाहर का रास्ता दिखाने का साहस क्यों नहीं जुटा पाते।