कब सुधरेगी उत्तराखंड सरकार…

प्रभात उप्रेती
मुहब्बत भी जरूरत होती हेै
यह अब जाना
निकल गया काम
 तो कर दिया रवाना
 आज सरकार जिस ठेका पद्धति नौकरियों में चला रही है उससे तो यही लगता है। सालों रगड़ा फिर उम्र निकल गयी तो  कमीशन बैठा  के उन्हें जिंदगी से तन्हा कर दिया।  वैेसे ही उत्तराख्ंाडियों का कमीशन से निकलना कठिन होता है कारण बाहर के लोगों का मैरिट हाई होता है। क्यों होता है सभी जानते हैं। पुराने कमीशन की लिस्ट देखें उत्तराखंडी इक्का दुक्का ही दिखेंगे।  फिर वहीं अंादोलन कोर्ट के चक्कर! अहंवादी सचीवालय,उनके कर्मचारियों की चिरौरी करो। सारी डिगनिटी चूल्हे में।सालों से यही खेल चल रहा है गाड़ गधेरों में फैले राजनैतिक आधार पर बने सैकड़ों डिग्री कालेजों के प्राध्यापकों की  नौकरी में। यह ठेका पद्धति ही जीवन के अधिकार के खिलाफ, हरैसमेंट है। नौकरी क्या हुई पीडब्लूडी का टेंडर हो गया।
      राजनीतिज्ञों  को जब  अपने आदमी बिठाने हैं तो  कमीषन की पोस्ट नहीं निकालते। जब दूसरों की बात हो तो संविधान कानून बघारते हैं। मेरे ही कार्यकाल में अस्थाई प्रध्यापक आठ किस्म के थे जो कमीषन वाला होता वह अपने को सबका बाप मान के ऐठा रहता था।मेरे भाई!  अगर पोस्ट क्रिएट कर रहे हो तो  सब्र कर पहले ही कमीषन निकाल लो क्यों ठेकेदारी करा रहे हो!नौकरी जहुन्नम बना रहे हो।  सारे संासद या विधानसभा में आपसी मारममार है पर अपनी तनख्वाह बढ़ाने में एका है।  फस्ट क्लास पांच साला  नौकरी में ही पेंशन, पुर सकून जिंदगी,चकाचक लाइफ। वहीं तीस साला नौकरी के बाद भी नो-पेनशन, हासिल पाया जीरो। उत्तराखंड में तो वैसे ही अग्रेजों ने वह नौकरी का कीड़ा डाला कि उसके जींस में नौकरी घुस गयी। सारा उत्तरखंड राज्य आंदोलन का आधार ही यह रहा। क्या यही राज्य का कानसैप्ट है! इन नेताओं में इतने गट्स नहीं कि एक बोेर्ड बना कर सब ठीक कर इन ठेकेदारों को स्थायी कर दें,बांकी कमीषन से निकाल दें।
हद हो गयी बेवफाई की, इन राजनेताओं की,इस राज्य की अधःपतन  की।
आज फिर कमीषन सुना बैठाया जा रहा  है जो है उन्हें भी बैठाया जा रहा है।
उत्तराखंड के नौकरी के ठेकेदारों ,तलबगारो! एक हो जाओ तुम्हें कुछ नहीं खोना पड़ेगा सिवाय अन्याय के।