हरीश मैखुरी
आधी आबादी की सुरक्षा के प्रति सरकारें कितनी संवेदनशील और जिम्मेदार है इसका सबसे बेहतरीन नमूना निर्भया कार्पस फंड है। अपने शुरुआती दौर में बना तो यह फंड केवल यौन हिंसा पीड़ित महिलाओं के पुर्नवास और कानूनी सहायता हेतु था लेकिन जब समाज सेवी संस्थाओं और व्यापारिक संगठनों ने जमके इस कार्पस फंड पर पैसे बरसाए तो इसका उद्देश्य भी व्यापक कर दिया गया और इस केंद्रीय फंड का एक हिस्सा राज्यों के लिए भी आवंटित किया जाने लगा, आज आलम यह है कि अरबों रुपए का यह फंड बिना माॅनिटरिंग एजेंसी और गाइड लाइन के राज्यों के लिए मात्र एक खानापूर्ति बनकर रह गया है इसी कारण 4 हजार करोड़ का निर्भया कार्पस फंड, 10 प्रतिशत भी खर्च नहीं हुए।
2013 में यूपीए सरकार और 2014 में एनडीए सरकार ने निर्भया फंड के लिए एक-एक हजार करोड़ रुपए मंजूर किए। इस फंड के तहत अहम स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगने थे। रेप पीड़ितों की मदद के लिए शहरों में निर्भया सेंटर्स की स्थापना होनी थी। निर्भया फंड अब 4 हजार करोड़ का हो चुका है। पर इसका 10 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसमें से 1404.68 करोड़ रुपए राज्यों को भी दिए गए थे, लेकिन सबने लौटा दिए।
इसी से पता चलता है कि अगर सरकारी एजेसियों पर कानून का डंडा न हो तो वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति न केवल लापरवाह हैं बल्कि पूरी तरह से गैरजिम्मेदार व मक्कार भी हैं। ऐसा नहीं है कि यौन हिंसा पीड़ित महिलाओं की संख्या में निर्भया कांड के बाद कोई कमी आई हो या इन महिलाओं को आर्थिक सहायता या पुर्नवास की आवश्यकता न हो, बल्कि एक रेप पीड़ित महिला ओ सबसे पहले तत्काल एक अहेतुक धनराशि की व्यवस्था इस निर्भया कार्पस फंड में होनी चाहिए ताकि जब भी ऐसी घटना हो तत्काल महिला को प्राथमिक इलाज व प्राथमिक कानूनी सहायता हेतु मद्द मिल सके।
हम हर साल महिला दिवस, मात् दिवस, बाल दिवस मनाकर अपने दायित्वों की इतिश्री तो कर देते हैं लेकिन जब जिम्मेदारी की बात आती है तो महिलाओं के लिए आवंटित धनराशि को भी तिजोरी में छुपा देते हैं।