ग्रामीण क्षेत्रों में मोटरमार्गों का निर्माण सरकारों की प्राथमिकता क्यों नहीं? गैरसैंण स्थाई राजधानी कब?

✍️हरीश मैखुरी

   वरिष्ठ पत्रकार विजेन्द्र रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि मोरी विकास खंड के सुदूरवर्ती गांव गंगाड़ की प्रियंका प्रशव पीड़ा से तड़पती रही। सड़क न होने के कारण ग्रामीणों ने कई किलोमीटर इसे अपने कंधों पर मोटर मार्ग तालुका पहुंचाया, फोन करने पर भी स्वास्थ्य की सवारी 108 भी गायब मिली वहां से उसे किसी तरह प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र मोरी पहुंचाया गया, यहां भी महिला चिकित्सक नहीं है, फिर इसे घरवाले ढाई सौ किलोमीटर दूर देहरादून ले जाने की तैयारी करने लगे, इतने में उसका कष्टदायक प्रशव हुआ जिसमें बच्चे की जान चली गई और महिला की मुश्किल से जान बची। मामला इसी 23 मार्च का है।

स्थानीय जन प्रतिनिधि व 22 के चुनाव की तैयारी में जुटे नेता ऐसी ह्रृदय विदारक घटनाओं को चुपचाप देखते हैं और देहरादून के मंत्री और नेताओं को फूलमालाओं से समय-समय पर लादते रहते हैं।

 इधर चमोली जिले में बदरीनाथ के विधायक महेंद्र भट्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि ” आज भगवान भविष्य बद्री धाम में सड़क पहुँच गयी है। ग्रामीण जनता के उत्साह ने मन को और भी प्रफुल्लित किया।मुझे भगवान भविष्य बद्री जी ने अपने सेवक के रूप में स्वीकार कर इस कार्य को आगे बढ़ाने में अपना आशीर्वाद प्रदान किया।”

महेंद्र भट्ट थैंग डुमक और कलगोठ पैदल पंहुचे और एक वर्ष के भीतर गांव में मोटर सड़क पहुंचाने का आश्वासन भी दिया।

लेकिन सवाल वही है बना हुआ कि 20 वर्ष हो गए उत्तराखंड राज्य बने हुए, लेकिन यहां के 30% गांव आज भी सड़कों के लिए तरस रहे हैं इन गांव की दूरी 8 से लेकर 30 किलोमीटर तक दूर है।  इन गांवों में लोगों के पास जीवन जीने के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है लेकिन हमारे नेता देहरादून एयरकंडीशन में रहते हैं  संभवत या इसीलिए ग्रामीणों का दर्द वे अनुभव नहीं कर पाते। इसके लिए आवश्यक है कि सरकारें तत्काल गैरसैंण को स्थाई राजधानी बना यें, और उससे पहले गैरसैंण तहसील को जिला बनाए। पहाड़ों का प्रत्येक गांव सड़क से जुड़े यह सरकारों की प्राथमिकता होना चाहिए। 

     उसी तरह चमोली के सिमली में पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी में भी मेडिकल कॉलेज की तत्काल स्थापना आवश्यक है ताकि लोगों को अपने निकटवर्ती  अपने निकटवर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा मिले और इनपदों से स्वास्थ्य के लिए होने वाला पलायन भी रूक सके।

    उसी तरह चमोली के कंथोली सैंण में सामरिक महत्व की हवाई पट्टी बनाई जा सकती है जिस पर बड़े हवाई जहाज भी उतर सकते हैं।साथ ही चीन सीमा पर हमारे पास एक सुंदर हवाई पट्टी होगी और यह हवाई पट्टी गैरसैंण स्थाई राजधानी के निकट होगी, यहां से बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा भी आसान हो जाएगी।

  उसी प्रकार से चार धाम देवस्थानम बोर्ड को बनाए रखा जाना आवश्यक है। इन चारों धामों की इंफ्रास्ट्रक्चर और मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए कोई ना कोई एजेंसी अवश्य चाहिए और वह एजेंसी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली चारधाम देवस्थानम् बोर्ड ही हो सकती है। जिसके लिए सरकार पहली बार बजट में वित्तीय प्रावधान भी कर रही है। 

      जिन स्टेकहोल्डर्स एवं पंडे पुजारियों को इस बोर्ड में रहने में आपत्ति हो उनको इस बोर्ड की परिधि से बाहर रखा जा सकता है, लेकिन चार धाम देवस्थानम बोर्ड जैसी संस्था कि चारों धामों में अवस्थापना सुविधाओं के लिए महती आवश्यकता है।

 वैसे भी चारधाम देवस्थानम बोर्ड की प्रस्तावना में लिखा है कि देवस्थानम् बोर्ड मंदिरों के धार्मिक रीति रिवाज कस्टम सिस्टम पूजा-पाठ सदियों से चली आ रही परंपराओं पंडे पुजारियों के कार्यमें  कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा और इनको पूर्ववत रखा जाएगा। साथ ही इस बोर्ड का अध्यक्ष हिंदू मुख्यमंत्री होगा, यदि हिंदू मुख्यमंत्री ना हो उस स्थिति में उप मुख्यमंत्री इस बोर्ड का अध्यक्ष होगा ऐसे में बोर्ड का विरोध किया जाना या बोर्ड को भंग करना औचित्य हीन है।