सिर्फ बाबा रामदेव और पतंजलि के उत्पाद और दवा पर ही सवाल क्यों?

सिर्फ बाबा रामदेव और पतंजलि के उत्पाद और दवा पर ही सवाल क्यों? दावे तो दूसरी तमाम कम्पनियों के भी हैं उन पर ऐसे सवाल नहीं उठते? समाज के प्रति गुणवत्ता और विश्वसनीयता की जिम्मेदारी सभी कम्पनियों की क्यों नहीं होनी चाहिए?  उदहारण के लिए एक संस्था वक्फ लैबोरेट्रीज जो हमदर्द के नाम से कई प्रोडक्ट बनाती है उसके अनेेक उत्पादों व दवाओं के बारे में इतने बढ़ा चढ़ा कर दावे किए गए हैं लेकिन आज तक किसी ने उस उन दावों पर सवाल नहीं उठाया। 
 एक टॉनिक जिसे वह सिंकारा के नाम से बेचती है वह कहती है कि आप इसे पीते ही एकदम जोश और स्फूर्ति से भर जाएंगे? 

एक शरबत है रूह अफजा, वक्फ लेब्रोटरी दावा करता है कि इसमें ताजे गुलाब डाले गए लेकिन क्या आज तक किसी ने लैब में परीक्षण करके यह पता लगाया कि इसमें सच में ताजे गुलाब डाले गए हैं या विदेशों से गुलाब का केमिकल एसेंस डाला गया है?

एक सिरप साफी के नाम से है और दावा करता है कि अब खून को पूरी तरह से साफ कर देता है, आज तक मीडिया या सोशल मीडिया में कभी किसी ने उस पर सवाल उठाया ? 
आखिर इस साफी में ऐसा क्या चीज है कि ये खून को फिल्टर कर देती है ?और अपने बड़े-बड़े दावों के समर्थन में वक्फ लैबोरेट्री कौन सी जांच रिपोर्ट का हवाला कर दे रही है?

ऐसे ही या एक दवा रोगन बादाम के नाम से बेचती है और दावा करती है कि यह बादाम का और 100 ग्राम का सीसी यह 750 रु दाम । 
क्या किसी ने सवाल उठाया कि असली बादाम है या बादाम के एसेंस हैं…
एक जानकार ने बताया कि यदि आपको 100ml बादाम का कंसंट्रेटेड एसेंस निकालना होगा तो उसके लिए कम से कम आपको 5 किलो बादाम चाहिए अब आप 5 किलो बादाम की कीमत करीब ढाई से ₹3000 होगी तो कोई  मात्र ₹700 मे 100ml बादाम का एसेंस कैसे दे सकता है? 

आज तक किसी भी नेता या संस्था ने ऐसी किसी कंपनी की दवाओं के बड़े-बड़े दावों पर कभी कोई सवाल  उठाया? 
लेकिन यदि पतंजलि कोई उत्पाद लांच करती है तो सोशल मीडिया पर चीफ फार्मासिस्ट बनकर ऐसे ज्ञान देते हैंक्या बाबा रामदेव का सबसे बड़ा अपराध है यह है कि उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया !

ठीक ऐसी ही सोमवार को ग्लेनमार्क फ़ार्मा ने करोना की दवाई निकाली 103 रूपेय की एक गोली 34 गोली का पत्ता 3500 रूपेय का , किसी मंत्रालय ने उसके दावे पर सवाल नहीं खड़ा किया, किसी ने उससे कोई सबूत नहीं माँगा की यह गोली करोना ठीक कर सकती है या नहीं? पर जैसे ही बाबा रामदेव ने साढ़े पाँच सौ रूपेय में करोना की किट निकाली सारे बुद्धिजीवी इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने लगे, आयुष मंत्रालय जो ख़ुद इस बीमारी से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक काढ़े का ज़ोर शोर से प्रचार कर रहा है वो भी तलवार भाँजने लगा। इस घटना ने दिखा दिया की यह मंत्रालय कहने को भले ही सरकार के आधीन काम करता हो पर वास्तव में यह अंग्रेज़ी दवा कोंपनियों के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली से अधिक सिद्ध नहीं हुआ है। किसी सरकारी मंत्रालय ने आज तक Fair & Lovely क्रीम बनाने वाली कम्पनी से यह दावा सिद्ध करने को नहीं कहा की उनकी क्रीम से काले लोग गोरे होते हैं?

ऐसे ही गंजे सिर पर बाल उगाने वाले अनेक कम्पनियों के तेल हैं जिनसे बाल उगाने के बड़े बड़े दावों की पोल सभी गंजेपन की शिकायत वाले खोलते रहते हैं। इन पर किसी ने सवाल उठाया ? 

क्यों उनसे इन अधिकारियों को क्लीन चिट के बदले क्या मिलता है? आज की तारीख़ में बाबा रामदेव की विश्वसनीयता आयुष मंत्रालय से अधिक है, यह दवाई बाज़ार में आने दो , जनता इसे हाथो हाथ लेगी, करोडों रु का बिजनेस फेल करवाएगा ये बाबा, तब निजी अस्पतालों में  लाखों का बिल कौन देगा ?

“फेयर &लवली “से गोरे होते हैं,”साफी ” से खून साफ होता है, “रूह अफ़जह” से रूह को ठंडक मिलती है,”कोलगेट” से दांत मजबूत होते है,”डव” से गाल मलाई बन जाते हैं? मगर रामदेव के “गिलोय, “अश्वगंधा, तुलसी “के अर्क से करोना ठीक नहीं होता,  कईयों को एतराज है इस पर । “‘बाबा रामदेव”‘ यकीनन इन सारे संस्थानों के लिए खतरा हैं?, इस लिए इस समय बाबा की दवा के पीछे पड़े है? कम से कम इस जानलेवा महामारी और डिप्रेशन के समय में बाबा ने भारत में गरीब जनता के चेहरों पर, मुस्कुराहट जरूर ला दी है। ऐसे प्रयास होने चाहिए। 

ऐसा नहीं है कि बाबा #रामदेव से हमारा बहुत #लगाव है, लेकिन ऐसी भी कोई वजह भी नहीं है कि हम उनसे #नफरत करें। हमारा किसी दूसरी कम्पनियों से बैर भाव भी नहीं है। लेकिन शोशल जस्टिस सबके लिए बराबर कब होगा? ये हमारा सवाल है। समाज के प्रति गुणवत्ता और विश्वसनीयता की जिम्मेदारी सब कम्पनियों की क्यों नहीं होनी चाहिए? 

#साइकिल से सामान ढोकर #पतंजलि जैसा इतना बड़ा व्यापार सम्राज्य खड़ा करना उनकी मेहनत और लगन का परिणाम है। साथ ही युवा संघर्षशील उद्दमियों के लिये बहुत प्रेणादायक है।

उन्होंने अपने योग से भारत को विश्व भर मे ख्याति दिलाई है और देशभर में लाखों लोगों को रोजगार का एक नया रास्ता दिया है।

कुछ लोग अनजाने में या जानबूझकर बाबा की दवाई पर रोज ज्ञान देने की आदत से मजबूर दिखते हैं, तुम्हारे से बेहतर #आईआईटियन, #आईआईएमियन, #पीएचडी और #एमएमबीबीएस #होल्डर पतंजलि में #नौकरी करते हैं। कोई आदमी अगर प्रयास कर रहा है तो उसका मजाक बनाने से पहले अपने #गिरेबाँ में जरूर झांक लेना चाहिए।

पतंजलि ने दावा बनाई है तो , कोई जबर्दस्ती नहीं खिला रहा है सबको।

 पेप्सी ने पानी मे सोडा चीनी मिलकर खरबों का कारोबार कर लिया, तब किसी के गुर्दे में दर्द नहीं हुआ।

ऐसी हज़ारों दवा की कम्पनियां हैं जिनकी हज़ारों दवा मार्किट में हैं,कभी खाने से पहले पूछे हो कि इसको बनाने से पहले सारे approval ले लिया था कि नहीं? 

इंडिया में सैकड़ो वो दावा आज भी धड़ल्ले से ये Cipla, Mankinds, Ranbaxy वाले बेच रहे हैं जो कई देशों में अब बैन हैं,

कभी पूछा खाने से पहले आयुष मंत्रालय से कि कैसे बिक रही ये दवा? 

यूरोप/ US में काई Antiboitic और पेन किलर बैन हैं, वो सब यहां बिना doctor के पर्ची के भी मिल जाते हैं , कभी इस पर बोला नहीं ना? तो सारा मेडिकल ज्ञान आज ही प्राप्त हुआ है? 

पतंजलि ने कोरोना की औषधि कोरोनिल भले बना लेने और परीक्षण में सफल होने का दावा किया।

लेकिन एलोपैथी समूह के साथ एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग उसके पीछे पड़ गया। 

पतंजलि को क्लिनिकल ट्रायल से लेकर सबका सबूत देना होगा, फिर उसका कई तरीके का परीक्षण होगा। ठीक है औपचारिकताएं आवश्यक है, हमारा मानना है कि इसे सकारात्मक तरीके से लिया जाए और जो भी जांच परीक्षण करनी आवश्यक हो समय से करें।लेकिन आयुर्वेद का परीक्षण एलोपैथी तरीके से कैसे हो सकता है? जिनको विश्वास है उनको खरीदने से नहीं रोका जाना चाहिए ,

हॉस्पिटल वाले सप्ताह भर में लाखों के बिल थमा रहे हैं, रेमिडिसिवियर एक डॉज की कीमत 6000 रुपये तक है ,कल pfizer ने 100 रुपये की एक टेबलेट लांच की है,

वहीं पतंजलि की पूरी किट 550 रुपये में उपलब्ध है तो यह एक बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है, एक पहलू जरूर देखिए कि इसका कोई बड़ा साइड इफेक्ट तो नहीं।

लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि अगर यह दवा कारगर साबित हो गई तो पूरी दुनियाँ भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की ओर मुड़ेगी।

इसे इस रुप में देखिए। हमारे देश में अपनी ही विद्या का उपहास उड़ाने की आत्मघाती मानसिकता है। पतंजलि और स्वामी रामदेव का भी उपहास उड़ाया जा रहा है।

एलोपैथ ने कोरोना के लिए कई महंगी दवाइयां सामने लाईं जिनसे ठीक होने की गारंटी तक नहीं। उनका किसी ने उपहास नहीं उड़ाया।

अपने देश में कुछ श्रेष्ठ करने की कोशिश हो रही है तो उस पर गर्व करना, उसका समर्थन करना हम कब सीखेंगे?

एलोपैथी अस्पताल वाले प्लास्टिक की पन्नी में डेड बॉडी पैक करके दस लाख का बिल भी देते है, कोई सवाल नहीं पूछता ?

मीडिया भी चुप ,सरकार भी चुप , 550 की दवाई पे इतनी प्रश्नोत्तरी हो रही है ,गजब है ??

सिर्फ ‘कोरोनिल’ पर ही सवाल क्यों ,पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वाश करें। 

न फायदा हो तो न करें इस्तेमाल ,आयुर्वेदिक मिश्रण है ,कोई साइड इफ़ेक्ट तो है नहीं ??

(शोशल मीडिया पर लोगों की राय)