उत्तराखण्ड की मुंडी क्यों मरोड़ी मोदी जी?

 

हरीश मैखुरी

समूचे देश में जीएसटी (गुड्स एंव सर्विस टैक्स) यानि माल एवं सेवा कर, एक जैसा बनाने की बातें भारत सरकार के विज्ञापनों में थी। नारा था कि एक देश एक कर, एक टैक्स। लेकिन जहां समूचे देशवासी 20 लाख से ऊपर के लेन-देन पर जीएसटी के दायरे में आएंगे वहीं उत्तराखण्ड जैसे हिमालयी राज्यों के लिए यह दायरा घटाकर 10 लाख कर दिया गया। यानि उत्तराखण्डवासी यदि साल भर में 10 लाख का लेन-देन करते हैं तो वे जीएसटी के दायरे में आ जाएंगे इसका मतलब ये हुआ कि उत्तराखण्ड में 2 हजार 740 रुपये रोज का लेन-देन करने वाला व्यक्ति जीएसटी के दायरे में होगा, जबकि देश के अन्य राज्यों में 5 हजार 480 रुपये रोज का लेन-देन करने पर व्यक्ति जीएसटी के दायरे में आएगा। ऐसा अन्याय उत्तराखण्ड जैसे पिछड़े देश के निवासियों के लिए मोदी सरकार ने क्या सोच कर किया है।

जीएसटी का दायरा देश के लिए 20 लाख और उत्तराखण्ड जैसे छोटे हिमालयी राज्यों के लिए 10 लाख करने से इन राज्यों के लोगों का क्या फायदा होगा? ये नहीं बताया गया है। एक देश में दो तरह का जीएसटी क्यों? बहरहाल राज्य के लोग इसे एक देश एक कर की भावना के विरुद्ध और निवासियों के साथ सौतेला व्यवहार बता रहे हैं।