बदरीश पंचायतन पन्द्रह दिन अपूजित रह जायेगी?

हरीश मैखुरी
बदरीश पंचायतन पन्द्रह दिन अपूजित रह जायेगी? यह सवाल सभी के मन में है। बद्रीनाथ बद्रीनाथ धाम के वृत्तिधारी और डिमरी पंचायत श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट ३० अप्रैल की बजाय 15 दिन बाद मई में खोले जाने से खासे दुखी और आक्रोशित हैं  उनका कहना है कि “धार्मिक परम्पराओं से खिलवाड़ स्वीकार नहीं किया जा सकता, यही एक अवसर था जब विद्वत धर्माचार्यगण और धर्म ज्ञाता जन, सार्थक शास्त्रार्थ करके एवं इतिहास को ध्यान में रखते हुये ,सदा के लिए ऐसी परिस्थितियों में एक व्यवस्था बना देते जो धार्मिक रुप से अनुकूल हो, ये अवसर में बहुत जल्दबाजी की गयी सब कुछ सरकार के ऊपर छोड़ दिया , जबकि यह  बद्रीनाथ जी से जुड़ देश के विद्वान धर्माचार्यों की वार्तालाप व बहस का विषय था। कपाट खुलने का दिन निर्धारित करने के दिन देव पूजा के प्रतिनिधि श्रीमान नारद जी अपना कार्यभार नर को देते हैं ,अब उन्हें भी कुछ और दिन रुकना पडेगा, ये मात्र आपदा प्रबन्धन का विषय या धार्मिक व्यवस्था का? परम्परा के अनुसार बसन्त पंचमी के दिन भगवान बदरीनाथ जी के कपाटोद्घाटन की तिथि 30 अप्रैल  2020  (बैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी )तय थी।राज्य सरकार के काले कानून चार धाम  देवस्थान विधेयक और उस के परिणाम स्वरूप उपजे चार धाम देवस्थान बोर्ड की असफलता के कारण न तो बदरीनाथ में यात्रा सम्बन्धित कोई तैयारी समय पर हो पायी और ना ही माननीय रावल जी को  समय पर जोशीमठ पहुंचाया गया।
  राज्य सरकार ने अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए टिहरी राजदरबार को आगे कर कपाटोद्घाटन की तिथि क़ो परिवर्तन कर 15 मई ( जेठ माह कृष्ण पक्ष पंचमी ) कर दिया। जो परम्परा और शास्त्र विरुद्ध है। यह आज तक के इतिहास की पहली घटना है जब एक बार घोषित तिथि को बदला गया हो ।
हमारे गढवाल क्षेत्र में मान्यता है कि जब किसी शुभ कार्य का संकल्प कर लिया जाये या विवाह समारोह का दिनपटा तय हो जाये और दुर्भाग्य से परिवार में कोई सूतक भी हो जाये तब भी संकल्पित शुभ कार्य को तय कार्यक्रम को पूर्णतया संपन्न किया जाता है। 
  हमारे यहां मान्यता है कि बसन्त पंचमी के दिन देव और नर (जनसामान्य ) दोनों को बता दिया जाता है कि किसी तिथि से बदरीनाथ में देव पूजा बन्द हो कर मनुष्यों द्वारा पूजा प्रारम्भ हो जायेगी। ऐसे में हमारा मत है कि तिथि परिवर्तन से यह स्थिति आ गयी है कि देव पूजा 29 अप्रैल सांय से बन्द हो जायेगी जबकि नर पूजा 15 अप्रैल से शुरू होगी। इन परिस्थितियों में बदरीश पंचायत पन्द्रह दिन अपूजित रह जायेगी ।जो परम्परा व शास्त्र के अनुकूल नहीं है तथा घटनाक्रम अशुभ संकेत भी देता है ।
  इस क्रम में भगवान बदरीनाथ जी से क्षमा प्रार्थना करते हैं कि हमारे तमाम प्रयासों के बाद भीऔर राज्य सरकार की हठधर्मिता के कारण कपाटोद्घाटन समय पर नहीं हो पा रहा है ।
   30 अप्रैल को  ठीक 4•30 प्रातः भगवान बदरीनाथ जी के कपाट खुलने का दिन है जो बैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी और पुष्य नक्षत्र के  कारण अत्यंत शुभ दिन है ।इस दिन गुरुवार जिससे गुरु पुष्य योग बनता है। जो अक्षय तृतीया के समान शुभ माना जाता है। इस दिन किये जाने वाले जप तप का पांचगुना लाभ मिलता है। इस दिन जहाँ 4•30 पर अमृत सिद्ध योग है वहीं पूरे दिन सर्वाथ सिद्ध नामक शुभ योग भी बन रहा है ।
   सामूहिक चर्चा और सम्यक विचारोपरांत हमरा भगवान बदरीनाथ जी की पूजा व्यवस्था से जुडे सभी हक हकूक धारियों और भगवान बदरीनाथ जी में आस्था रखने वाले भक्तों से आग्रह है कि वे सभी अपने घरों में कल प्रातः 3•30 पर जागरण कर नित्य कर्म व शारिरिक शुद्धि के उपरांत ठीक.4•30 पर भगवान बदरीनाथ जी का  अभिषेक श्रंगार ,पूजन अर्चन कर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें ।भगवान बदरीनाथ जी से कपाट खुलने में हुई देरी के लिए क्षमा मांगते हुए  प्रार्थना करें कि सृष्टि के पालनहार भगवान  नारायण सम्पूर्ण जगत को करोना महामारी के संकट मुक्त करा कर मानव जाती की  रक्षा करें। इस धरा धाम के स्वामी, पालनकर्ता नारायण भगवान की जो भी इच्छा हो। 
   इस पूजन के उपरांत सभी भक्त मनोकामना पूर्ति हेतु अपने निवास पर ही नारायण रक्षा कवच ,विष्णु सहस्रनाम के साथ हवन भी करें। साथ ही प्रातः पूजन अर्चन और हवन के फोटो सोशियल मीडिया पर भी भेजें।”
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वरूपानन्द की ओर से स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा है कि “*परम्परा अनुसार आज से ही बदरीनाथ मन्दिर के पट खुल गये ऐसा मानकर मानसिक पूजा कर रहे हम सनातनी* 
   सनातन धर्म में हरि और हर माने भगवान् विष्णु और भगवान् शिव में अभेद माना गया है। इसलिए जब शिव का दर्शन करते हैं तो विष्णु का भी दर्शन करते हैं और जो विष्णु का दर्शन करते हैं उनको शिव का भी दर्शन करने की हमारे यहां परम्परा चली आ रही है। जब कोई व्यक्ति बद्रीनाथ जी दर्शन करने जाता है तो पहले केदारनाथ जी का दर्शन करके तब बद्रीनाथ जी का दर्शन करता है। इसलिए बद्री और केदार दोनों मिले हुए हैं। बद्री और केदार को आप अलग नहीं कर सकते, लेकिन देखिए कि सरकार ने अलग कर दिया  सरकार के लोगों ने कहा कि पट आज नहीं खुलेगा। वसन्त पञ्चमी को ही यह निश्चय हो गया था कि आज माने वैशाख के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सबेरे भगवान् का पट खुलेगा लेकिन आज न खोल करके मई  15 तारीख को खोलेंगे।
 केदारनाथ जी का पट खुल गया और बद्रीनाथ जी का पट खुला ही नहीं। हर बार क्रम से इतना समय बीच में रखा जाता था परम्परा के अनुसार कि पहले भगवान् केदारनाथ का दर्शन करके तब लोग बद्रीनाथ जाएंगे तो पैदल यात्री भी 3-4 दिन में पहुँच जाते थे। अब भगवान् केदारनाथ का पट तो खुल गया। बदरीनाथ जी का दर्शन हो ही नहीं रहा है। बहुत बड़ी परम्परा को क्षति पहुंचाने का यह अपराध हो रहा है। इसलिए हम लोगों ने सोचा है और वहां बद्रीनाथ के पण्डे-पुजारियों ने भी यह निर्णय लिया है कि हम आज से ही मानसिक रूप से यह मानेंगे कि भगवान् बद्रीनाथ का पट आज ही सबेरे खुल गया। वसन्त पञ्चमी के दिन परम्परा के अनुसार टिहरी नरेश के द्वारा जो तिथि सुनिश्चित की गई थी उसी तिथि को बद्रीनाथ जी का पट खुल गया है। ऐसा आज हमलोग मान रहे हैं। और मानसिक पूजा के माध्यम से भगवान् की पूजा-अर्चना कर रहे हैं जो होती रहेगी।  बद्रीनाथ जी का पट खुल गया है। इसलिए आज से ही मानसिक पूजा हमलोग प्रारम्भ कर दें। बताया जा रहा है कि रावल कोरण्टाइन किए गए हैं। दूसरे प्रदेश से आए हैं इसलिए 15 दिनों तक उनको अलग रहना होगा। 15 दिनों तक अगर उनको अलग रहना होगा तो 3 मई को 15 दिन के पूरे हो जा रहे हैं। उसके बाद भी 15 मई तक क्यों रोका जा रहा है? 3 मई को पट क्यों नहीं खोल रहे? इसका कोई जवाब नहीं। परम्पराओं का उल्लंघन, देवताओं के अपमान, गुरुओं के अपमान का यह फल है। निश्चित रूप से आज नहीं तो कल सनातनी जनता जागेगी और जाग करके अपनी परम्पराओं के संरक्षण का जिम्मेदारी खुद लेगी। लोग दर्शन करें उसमें न यह समस्या है कि कहीं स्पर्शास्पर्श न हो जाए। और कहीं कोरोना एक दूसरे से फैल न जाए। रावल की रिपोर्ट नेगेटिव है। लेकिन अगर आप कह रहे हैं कि अभी प्रतीक्षा करके देख लिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि पॉजिटिव हो तो ठीक है। नियम को हम भी मानते हैं। तो ऐसे में बद्रीनाथ जी में रावल अकेले पूजा क्यों नहीं कर ले रहे? उचित दूरी बना करके दूसरे लोग भी जा सकते थे और जो डिमरी हैं वे पहले से वहां पर पूजा की सामग्री रख देते और हट जाते। उसके बाद फिर रावल जाते। सब जगह पर परम्पराओं को तोड़ने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। बद्रीनाथ में भी यही किया गया। लेकिन बद्रीनाथ जी का पट आज ही खुल गया। यह हम सनातनी लोग मान रहे हैं”।
 
इस संबंध में बदरीनाथ के विधायक और चार धाम देवस्थानम विकास बोर्ड के सदस्य श्री महेंद्र भट्ट का कहना है कि बद्रीनाथ के कपाट खुलने की परंपरा में सरकार ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया यह परंपरा आदिकाल से ही अध्यात्म और शास्त्र सम्मत विषय रहा है और टिहरी दरबार बद्रीनाथ के कपाट खुलने का का का मुहूर्त निश्चित करता है टिहरी दरबार को साक्षात बुलंदा बद्री कहा जाता है यदि उन्होंने शास्त्रोक्त विधि से कोई निर्णय लिया है तो सरकार उसे मानने के लिए बाध्य है उन्होंने कहा कि डिमरी पंचायत और शंकराचार्य की भावनाओं का हम लोग सदैव सम्मान करते हैं सरकार तो केवल व्यवस्था बनाती है परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं करती है