अपना जंगल अपना पानी गैरसैंण हो राजधानी

 

हरीश मैखुरी

गैरसैंण उत्तराखंड राज्य की अवधारणा का प्रश्न है, इसलिए उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए, और कहीं मंजूर नहीं। ष्अपना जंगल अपना पानी गैरसैंण हो राजधानीष् राज्य निर्माण आन्दोलन के दौर से नारा ही यही रहा है। विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी को विधानसभा सत्र में ग्रीष्मकालीन राजधानी मांग करते हुए शर्म आनी चाहिए, इन्हें ठेकेदार ही बना रहना रहना है तो विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्हें मालूम होना चाहिए कि गैरसैंण में ढांचागत विकास ही स्थाई राजधानी के लिए किया गया है, न कि ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने के लिए।

इसी बजट सत्र के दौरान इंदिरा हृदयेश के एक प्रश्न के उत्तर में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने विधानसभा में खुद कहा ‘गैरसैंण जनभावनाओं और शहीदों के सम्मान का प्रश्न है, सरकार गैरसैंण स्थाई राजधानी के मुद्दे पर समाधान की तरफ बढ़ रही है, जल्द ही वहाँ पर शेष सुविधाओं का विकास किया जा रहा है, सरकार इसी कार्यकाल में स्थाई समाधान कर लेगी।’ फिर सुरेन्द्र सिंह नेगी को अपनी मूर्खतापूर्ण बयानबाजी के साथ गैरसैंण विरोधी भाजपा का ऐजेन्डा बखान करते हुए शर्म आनी चाहिए। उन्हें गैरसैंण जिला बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए और गैरसैंण स्थाई राजधानी के मुद्दे को भटकाना नहीं चाहिए। वे भूल गए हैं कि बाबा मोहन उत्तराखंडी ने स्थाई राजधानी के मुद्दे पर 36 दिन बेनीताल में भूख हड़ताल के बाद अपनी शहादत दी।

राज्य आन्दोलनरियों ने गोली खाई जेल में बंद रहे सालों मुकदमे लड़े। और राज्य बनने के बाद गैरसैंण स्थाई राजधानी बनाने के लिए सालों आन्दोलन चलाया। ये सब देहरादून के लिए हुआ? भले ही नेताओं की ऐय्याशी का अड्डा बन गया है लेकिन स्थाई राजधानी गैरसैंण ही बनानी होगी। हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पलायन रोकने के लिए फेसबुक पर सुझाव मांगे हैं। असल सुझाव यही है कि विधायक और विधानसभा जब पहाड़ में ठहरेगा तभी पलायन रूकेगा। वर्ना सब बेमानी। और बेईमान जादा दिन नहीं ठहरते।ये मुख्यमंत्री भलीभांति जानते हैं।