कैसे दी जाती है फांसी, ये हैं प्रावधान

सौजन्य – हरीश पुजारी वरिष्ठ अधिवक्ता जिला एवं सत्र न्यायालय 

फांसी की सजा
जब सेशन कोर्ट या समकक्ष कोर्ट दोषी को फांसी की सजा सुनाती है तो फैसला हाईकोर्ट के दो जजों के पास समीक्षा के लिए भेजा जाता है जब हाई कोर्ट के जज यदि फैसले से संतुष्ट हो जाते हैं तो फांसी की सजा की पुष्टि हो जाती है।
इसके बाद दोषी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में इस सजा के विरुद्ध अपील कर सकता है और यदि सुप्रीम कोर्ट भी फांसी की सजा बरकरार रखता है तो दोषी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर कर सकता है वहां भी यदि फांसी की सजा बरकरार रखता है तो वह अपने राज्य के राज्यपाल या राष्ट्रपति महोदय को क्षमा याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
क्षमादान याचिका के भी नामंजूर होने पर दोषी व्यक्ति पुनः सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन(CURATIVE PETITION) दायर कर सकता है और सर्वोच्च न्यायालय से सजा कम करने की गुहार लगा सकता है।
यदि सुप्रीम कोर्ट पुनः इसकी इस याचिका को भी नामंजूर करती है तो तब फांसी लगाने की तैयारी शुरू होती है।
इस सभी प्रक्रिया में काफी समय लगता है और कभी-कभी 5- 7 वर्ष हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में ही इन अपील, पुनर्विचार याचिका क्यूरेटिव पिटिशन के निपटाने में व्यतीत हो जाते हैं।
जनता कभी-कभी इस देरी के लिए न्याय व्यवस्था या सरकारों को दोष देती है परंतु धरातल पर ऐसा नहीं है क्योंकि न्याय शास्त्र का यह सिद्धांत है के “भले ही 100 दोषी व्यक्ति छूट जाए परंतु एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए”।
इस प्रकार सेशन जज के फांसी के आदेश पर जब हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल व राष्ट्रपति महोदय की मुहर लग जाती है तो पत्रावली पुनः सेशन कोर्ट में प्रस्तुत होती है जिस पर सेशन कोर्ट फांसी का आदेश जारी करता है परंतु यदि दोषी महिला हो और गर्भवती हो तो उसकी फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी जाती है।
सेशन कोर्ट से फांसी का वारंट मिलते ही जेल प्रशासन दोषी को कालकोठरी में रखता है व दोषी व उसके रिश्तेदारों को फांसी के दिन व समय की सूचना भेजता है और जिलाधिकारी ही फांसी देने वाले जल्लाद की व्यवस्था करता है।
जल्लाद की उपस्थिति में जेल अधीक्षक फांसी घर व फंदे का निरीक्षण करेगा व फांसी लगाने से पूर्वा दोषी के वजन के बराबर बोरे में रेत भरकर जल्लाद से फांसी लगाने का डेमो करवाएगा।
फांसी का समय जेल अधीक्षक की आज्ञा से दोषी के पुरुष रिश्तेदार उपस्थित रह सकते हैं फांसी प्रातः काल मैं अमूमन दी जाती है और फांसी के वक्त मजिस्ट्रेट, डॉक्टर व जेल अधीक्षक व जेलर उपस्थित रहते हैं। जेल खाने के अन्य कैदियों को जेल में अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया जाता है ताकि वे फांसी लगते हुए देख न पायें।
नियत समय में मजिस्ट्रेट, जेल अधीक्षक व जेलर दोषी की कालकोठरी में जाकर पुनः फांसी का आदेश सुनायेंगे व उसके हाथ पीछे से बांधकर फांसी घर तक ले लायेंगे वहां जल्लाद उसके पांव बांधकर मजिस्ट्रेट से संकेत मिलने के बाद दोषी को फांसी के फंदे पर लटका देगा आधा घंटा लटकाने के बाद डॉक्टर द्वारा उसे मृत घोषित किए जाने पर जेल अधीक्षक मृत शरीर को उसके रिश्तेदारों को सौंपेगा या स्वयं प्रशासन द्वारा उसके धर्म के अनुसार दाह संस्कार या दफन करेगा और वारंट पर फांसी दिए जाने का उल्लेख कर वारंट सेशन कोर्ट को वापस कर देगा।
( जेल मैनुअल के आधार पर)