मुख्यमंत्री ने किया अनुसूया माता मेले का उद्घाटन

 दत्तात्रेय सती माॅ अनुसूया मेला का शुक्रवार को पूरे विधि विधान व पूजा-पाठ के साथ शुभारंभ हो गया। सूबे के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने दत्तात्रेय जयंती पर आयोजित होने वाले दो दिवसीय माॅ अनुसूया मेले का उद्घाटन किया। इस अवसर पर अनसूया मेला ट्रस्ट समिति एवं स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री के पधारने पर उनका हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत किया। माॅ अनसूया मंदिर में दत्तात्रेय जयंती पर सम्मपूर्ण भारत से हर वर्ष निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुॅचते है।

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि सती माता अनसूया के बारे में उन्होंने काफी कुछ सुना था, लेकिन आज इस पावन अवसर पर सती माता का आर्शीवाद लेने का उन्हें सौभाग्य मिला है। इस दौरान मुख्यमंत्री ने माता अनसूया की विधिवत पूजा अर्चना भी की। उन्होंने कहा कि माता सती का स्थान चमोली में है तो उनके पुत्र दत्तात्रेय भगवान का मंदिर गुजरात में है, जो पूरे देश की एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हमारे पौराणिक मंदिर हम सबको जोड़ने का काम करते है।
माॅ अनसूया मंदिर में भक्तजनों के ठहरने की विकट परिस्थितियों को देखते हुए मुख्यमंत्री ने अनसूया मंदिर के निकट टिन सैट का निर्माण हेतु 50 लाख तथा रा0इ0का0 बंडगांव के विद्यालय भवन निर्माण हेतु भी 50 लाख की धनराशि देने की घोषणा की। वही बडद्वारा-दोगडी कांडई मोटर मार्ग के शीघ्र निर्माण की भी घोषणा की। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए मण्डल में ट्राउड फिस की हैजरी खोली गई थी, ताकि स्थानीय लोग ट्राउड प्रजाति की मछली पालन से अपनी आर्थिकी को मजबूत बना सके। उन्होंने रूद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों का उदारहण देते हुए कहा कि यहाॅ पर स्थानीय लोग ट्राउड फिस के पालन से अच्छी खासी आमदनी कमा रहे है। कहा कि ट्राउड फिस आज पन्द्रह सौ रुपये किलो तक बाजार में बिक रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की आर्थिकी को मजबूत करने में चीड़ का वृक्ष भी वरदान साबित हो सकता है। कहा कि चीड़ की पत्तियों से तारपीन का तेल बनाया जा रहा है, जो कि हड्डी रोग में उपयोग में लाया जाता है, वही चीड़ की पत्तियों से बनने वाले तारकोल का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जा रहा है। चीड़ की पत्तियों से डीजल और वायोमास (पत्तियों के बचे मलवे) से बिजली पैदा की जा सकती है। कहा कि आज चीड़ के वृक्ष से दवाईयां, सेंट, मिठाईयों में प्रयोग किये जाने वाले 143 प्रोडेक्ट तैयार किये जा रहे है। बागेश्वर जिले में इसकी फक्ट्री भी शुरू हो चुकी है। उन्होंने नौजवानों, महिला मंगल दलों, स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करते हुए पिरूल प्रोजेक्ट को अपनाकर अपनी आर्थिका का साधन बनाने को कहा। इसके राज्य सरकार के माध्यम से हर सम्भव मदद भी उपलब्ध करायी जायेगी।
इस अवसर पर क्षेत्रीय विधायक महेन्द्र भट्ट एवं मेला समिति के अध्यक्ष बीएस झिंक्वाण ने क्षेत्रवासियों की ओर से मुख्यमंत्री का हार्दिक अभिनंदन और स्वागत करते हुए माता अनसूया मेले की विकट परिस्थितियों और समस्याओं से अवगत कराया। मेला समिति के अध्यक्ष ने बताया कि मेले में हजारों की संख्या में निसंतान दंपत्ति और भक्तजन माता अनसूया मंदिर पहुॅचते है तथा मंदिर व मार्ग में उनके ठहरने की कोई व्यवस्था न होने के कारण रातभर खुले आसमान के नीचे रहने को विवश है। उन्होंने अनसूया मेले को राज्य स्तरीय मेला घोषित करने, मण्डल-अनसूया मो0मार्ग के लिए धन आवंटित करने, हर वर्ष मेले के आयोजन के लिए संस्कृतिक विभाग से 10 लाख रुपये का प्राविधान करनेे, विधायक निधि से धर्मशाला निर्माण कराने तथा वैतरणी नदी पर चैकडैम निर्माण कराने, दूरसंचार की सुविधा उपलब्ध कराने आदि संबधी मांग पत्र भी मुख्यमंत्री को सौंपा।
इस अवसर पर बद्रीनाथ विधायक महेन्द्र भट्ट, थराली विधायक मुन्नी देवी शाह, भाजपा जिला अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल, नगर पालिका अध्यक्ष गोपेश्वर सुरेन्द्र लाल, नंदप्रयाग नगर पंचायत अध्यक्षा हिमानी वैष्णव, जिप सदस्य ऊषा रावत, भागीरथी कुंजवाल, मेला समिति के अध्यक्ष बीएस झिंक्वाण, उपाध्यक्ष विनोद राणा, सचिव दिलवर सिंह बिष्ट, मुख्य पुजारी प्रदीप सेमवाल सहित अन्य जनप्रतिनिधि व क्षेत्रीय जनता तथा भारी संख्या में श्रृद्धालु उपस्थित थे।
विदित हो कि पौराणिक काल से दत्तात्रेय जंयती पर हर वर्ष सती माता अनसूया में दो दिवसीय मेला लगता है। माॅ अनुसूया मेले में निसंतान दंपत्ति और भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पहुूचते है। मान्यता है कि मां के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। मां सबकी झोली भरती है। इसलिए निसंतान दंपत्ति पूरी रात जागकर मां की पूजा अर्चना कर करते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनसूया ने अपने तप के बल पर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था। बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुनः उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं। यहां दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है। बताते है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मां अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, तब उन्होंने तीनों को शिशु बना दिया। यही त्रिरूप दत्तात्रेय भगवान बने। उनकी जयंती पर यहां मेला और पूजा अर्चना होती है।