सरकार ने तत्काल देश भर में यदि इन पांच वृक्षों का वृक्षा रोपण अभियान नहीं चलाया तो अगले 10 वर्षों में तापमान 55डिग्री सेल्सियस होना तय

डॉ हरीश मैखुरी
करीब 4 करोड़ वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति में  पंच वृक्षों की पूजा  धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण थी और इन पांच वृक्षों को लगाना  पुण्य और धर्म का काम माना जाता था  निसंतान लोग भी  पीपल का पेड़ लगाते थे  ताकि आने वाली पीढ़ियों को  इस पेड़ का सुख मिल सके करीब  5-7 किस्म की तुलसी के पौधे  हर  आंगन की  शोभा हुआ करते थे, तुलसी के पौधे  जरासीम और बैक्टीरिया नष्ट करते हैं  और अपनी Ozone वायु से पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते रहते थे। लेकिन यवन मुगल आक्रांताओं के आगमन के पश्चात देश की वृक्षारोपण संस्कृति और वृक्षों की पहचान तेजी से नष्ट हुई और आजादी के बाद भी पीपल, बरगद, आम, पदम और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर पाप समझा जाने लगा है। पिछले 70 सालों में पीपल, बरगद, नीम आम और पंया या पद्म के पेडों को मोटर सड़कों सरकारी भवनों व बिल्डरों, फैक्ट्रियों लिये काट कर खत्म किये गये हैं। जबकि इन पेड़ों को लगाना लगभग बन्दकर दिया गया है। पीपल कार्बन उत्सर्जन को 100% बरगद 80% और नीम 75 % आम65% और पंया 50%सोख कर हमारे वातावरण को ठंडा रखते थे। इससे वातावरण शीतल और नम रहता था। और गर्मी महसूस नहीं होती थी।
लेकिन सरकारों ने इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले यूकेलिप्टस व पाइन जैसे ब्यावसायिक पेड़ लगाये जो जमीन को रूक्षण एवं जल विहीन कर देता है, वन विभाग इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। सरकारी तंत्र की इसी नाकामी के कारण मौसम खौलने लगा और पानी गायब होने लगा है। अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नहीं रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही जिससे नमी खत्म।
यदि सरकार हर साल आधे आधे किलोमीटर की दूरी पर भी एक पीपल का पेड़ लगाये और बीच-बीच में आम पंया बरगद नीम लगाये तो आने वाले कुछ साल बाद प्रदूषण मुक्त हिन्दुस्तान होगा, ये सत्य है। क्योंकि पीपल के पत्ते का फलक चौड़ा और डंठल पतला होता है जिससे शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं। 
  वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिये – – वृक्षमूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
               सखा शंकरमेवच:
        पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
               वृक्षराज नमस्तुते:
 हम सबने करना है कि यूकेलिप्टस व पाइन जैसी धरती को रूक्षण करने वाली प्रजातियों की बजाय लाखों सालों के अनुसंधान व अनुभव के आधार पर भारतीय परम्पराओं के अनुरूप पंच वृक्षों जैसे – आम पंया बड़ पीपल व नीम लगाने के लिए सरकारी व संस्थाओं के माध्यम से अभियान चलाया जाय। साथ ही पहाड़ों पर डांडा गूल खाल चाल और मैदानों में पोखर तालाब फिर से विकसित किए जांय। इस संदर्भ में चिपको आंदोलन की धरती उत्तराखंड में चण्डी प्रसाद भट्ट, चक्र धर तिवाड़ी, गौरा देवी सुंदर लाल बहुगुणा, विश्वेश्वर दत्त सकलानी, जगतसिंह जंगली, कल्याण सिंह रावत, सच्चिदानंद भारती जैसे मनीषियों ने जंगल लगाने एवं बचाने बनाने के लिए अपने – अपने स्तर पर बहुत प्रयास किए। लेकिन जब सवाल देेश भर में अभियान चलाने का हो तब इंंदिरा सरकार की तरह पथ वृक्षारोपण की भांति समूचे खाली स्थानों पर पंच वृक्षों के निरूपण अभियान की आवश्यकता है जिसे इसी वर्ष बरसात में शुरू किया जा सकता है। देश के माने जाने पर्यावरणविद और गांधी शांति प्रतिष्ठान व रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पद्म विभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी देशभर में जंगलों के व्यावसायिक विदोहन के कारण नंगी हो रही धरती पर चिंता व्यक्त की उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्लोबल परिस्थितियों के साथ ही मैन मेड और लोकल परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। 
 
 अब बात करते हैं तापमान की जो इन दिनों 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। यदि हम सब आज ही सचेत नहीं हुए और नीचे दिए गए कारणों पर अंकुश नहीं लगा तो आने वाले दस सालों से पहले ही तापमान 55 डिग्री सेल्सियस पंहुच सकता है। जिसके कारण धरती से मधुमक्खी बहुत सारे अन्य प्राणी पशु पक्षी और वनस्पतियों की कई प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी और यह मानव जीवन के लिए सर्वाधिक घातक सिद्ध होगा। पेड़ काटान, चारों तरफ सीमेंट के जंगल, मोबाइल के जमाने में भी अखबार पढना हरघघर में ट्यूट्यूबवेल और हेंडपंप, घरती का पानी चूसकर बूचड़ खानों और वाहनों की धुलाई,  मीट मांस मदिरा और कोल्ड ड्रिंक व डिस्पोजेबल का प्रयोग करना, नदियों में रोज-रोज कचरा डालना, रात दिन एसी. चलाना, आर ओ के पानी पर डिपेंडेंसी जिससे बहुत ज्यादा पानी वेस्टीज हो जाता है, छोटी दूरी के लिए भी पैदल अथवा साइकिल की बजाय मोटरसाइकिल का प्रयोग करना, देशभर में फैक्ट्रियों और पराली जलाने का धुआं फैलाना, फ्रिज और एसी. की गैस से ओजोन परत में छेद हो जाना, धरती से पानी चूस कर घर के आगे पीछे धोना आदि बहुत से ऐसे छोटे-छोटे काम है जिससे हम धरती की जलीय और उर्वरा शक्ति को चूस कर खत्म कर रहे हैं, और धरती को रूक्षण बनाकर इसके पर्यावरण को तहस-नहस कर रहे हैं। इन सारी प्रवृत्तियों पर हम अपनी थोड़ी सी जागरूकता से अंकुश लगाकर धरती को सुंदर और रहने लायक रख सकते हैं।