क्या ये न्यायसंगत है…?

 
ग्रामीणों को रामगंगा नदी में 1 मरी हुई मछ्ली मिलती है जिसे वे खाने के लिए अपने गाँव लेकर आ जाते हैं और पूरा गाँव मिल-बाँटकर उसकी दावत उड़ाता है (हालांकि सरकारी विभाग वालों को उस मछ्ली का एक अंश तक बरामद नहीं हो पाया है और न ही कोई गाँव वाला इस बात की पुष्टि कर रहा है) को खाने पर 5 लोग हिरासत में और पूरे गाँव पर मुक़द्दमा दर्ज़… क्या बिना सबूत के सिर्फ फेसबुक पर मिली एक फोटो के आधार पर ही निर्दोष ग्रामीणों को इस प्रकार से हिरासत में लेना गैर-कानूनी नहीं है…?
               मुझे याद है पिछले वर्ष “थापर ग्रुप” के लोग अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर नाइट-विज़न केमरे / राइफल एवं अन्य साजो-समान के साथ प्रतिबंधित क्षेत्र में विदेशी शराब / लड़कियों के साथ केंपिंग / शिकार करते हुवे पकड़े गए थे तो उन्हें महज़ कुछ ही घंटों में सकुशल / बाइज़्ज़त छोड़ दिया गया था एवं मुक़द्दमे तक बात भी नहीं पहुंची थी !
                मत्स्य-विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार की मछलियाँ रामगंगा से लेकर नेपाल की काली नदी में कई हजारों की संख्या में होनी चाहिए जिनमें से 75% मछलियाँ “पञ्चेश्वर बाँध” बनने के बाद पर्यावास नष्ट होने की वजह से और बांध कंपनी द्वारा मलवे को नदियों में प्रवाहित करने की वजह से खत्म होने वाली हैं तो ऐसा करने वालों के लिए किस प्रकार की सजा का प्रावधान भारतीय वन कानून के अंतर्गत है…?