जाने काली शिला , यमकेश्वर , पौड़ी गढ़वाल का गोपनीय रहस्य

फोटो – श्री चंद्र प्रकाश लखेड़ा

लेख – राजेन्द्र पंत रमाकांत

*?कालीशिला से प्रकट काली ने ही मां भद्रकाली बनकर दैत्यों का संहार किया*? माँ भद्रकाली को ही माँ काली के रूप में पूजा जाता है मां की विराट लीलाओं का वर्णन अद्भुत है इनकी महिमा अपरंपार है जयंती मंगला काली भद्रकाली का एक भव्य स्वरूप काली शीला व कालीमठ में देखने को मिलता है यह वह स्थान है जहां पर देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर मां काली एकशिला से प्रकट हुई यह शिला युगों युगों से पूज्यनीय है मां काली के रूप में प्रकट होकर मां ने इस शीला से ही बाद में भद्रकाली का रूप धारण कर दुष्टों का संहार किया इस शीला की संक्षिप्त कथा का वर्णन इस प्रकार है जनपद रूद्रप्रयाग के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित कालीमठ व विहंगम पर्वतों की चोटी में स्थित कालीशिला का महत्व आध्यात्मिक दृष्टि से बडा ही अद्भूत व निराला है,कालीतीर्थ के इन क्षेत्रों की महिमां का न आदि है और न ही अन्त इन स्थलों में पहुंचकर सांसारिक मायाजाल में जकडे मानव की ब्याधियां यूं शान्त हो जाती है, जैसै अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है,विराट आध्यात्म की आभा से ये स्थल जितने महत्वपूर्ण है,तीर्थाटन के लिहाज से उतने ही उपेक्षित भी रक्तबीज के वध से सम्बन्धित पुण्यदायक,पवित्र,चिंरजीविता प्रदान करने वाली पुराणों में इस भूभाग की कथा दिव्य एंव मनोहर है,इस क्षेत्र की महिमां का बखान पुराणों के माध्यम से सबसे पहले महर्शि वसिष्ठ़ ने उद्द्याटित की है और माता अरून्धती को इन पावन स्थलों की जानकारी दी