आवासीय विद्यालय प्राथमिक शिक्षा का बेहतरीन विकल्प

 हरीश मैखुरी

जहां सबको स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार संविधान के मूलभूत सिद्धांतो में है वहीं अब सरकार ने आरटीई बिल भी पारित कर दिया है, लेकिन बावजूद इसके सरकारी प्राथमिक विद्यालयों से अब जनता का मोह पूरी तरह से भंग हो चुका है इसी कारण उत्तराखण्ड में 456 प्राथमिक विद्यालय इस साल शिक्षा विभाग के नियमों के अन्तर्गत बंद दिए जाएंगे, क्योंकि इन विद्यालयों में 10 से कम छात्र संख्या है इसका तात्पर्य यह हुआ कि हमारे 456 गांवों में नई पीढ़ी के 10 बच्चे भी नहीं बचे हैं, इसी से आने वाले समय में पलायन की भयावहता का पता लगाया जा सकता है।

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, सम्पूर्ण साक्षरता अभियान, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा गुणवत्ता सुधार अभ्यिान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे खरबों रुपए के भारी-भरकम शिक्षा कार्यक्रम और मिडडे-मील चलाए और नतीजा ढाक के तीन पात, प्राथमिक विद्यालयों से नई पौध के बच्चे गायब, यानि जड़ ही खत्म। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस पेड़ की जड़ ही सूख जाए तो वह पेड़ कितने दिन जिंदा रहेगा। उत्तराखण्ड में 6500 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में करीब 35,000 शिक्षक औसतन 50,000 रुपए महीना वेतन आहरित करते हैं। उत्तराखण्ड सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा विभाग की तनख्वाह और विद्यालयों के रख-रखाव पर खर्च होता है, अब सवाल यही उठता है कि यदि इन विद्यालयों में छात्र लौटकर ही न आए तो इस भारी-भरकम बजट का रिजल्ट क्या है।

इसके लिए एक बेहतरीन सुझाव यह आया कि उत्तराखण्ड सरकार आवासीय विद्यालयों पर ध्यान केंद्रित करें और यह विद्यालय तहसील, ब्लाॅक या न्याय पंचायत स्तर पर खोले जा सकते हैं। जिसमें भोजन, स्वास्थ्य, पहनावा और किताबें सरकार मुफ्त में उपलब्ध कराए और इन विद्यालयों में जितने छात्र आवेदन करें सबके प्रवेश हो लेकिन इतनी शर्त अनिवार्य रुप से जानी चाहिए कि इन विद्यालयों में सिर्फ उन्हीं परिवारों के बच्चे प्रवेश ले सकेंगे जिनके दो या दो से कम बच्चे हों अथवा तीसरा बच्चा कन्या हो, ऐसा करने से जहां जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा मिलेगा वहीं सिर्फ बच्चों की शिक्षा के लिए पलायन कर रहे परिवार भी गांव में ठिठक जाएंगे और कुछ लोग शहरों से भी वापस अपने गांवों में बसासत शुरु कर देंगे।