आज का पंचाग, आपका राशि फल, आज है जेष्ठ आमावास्या, शनि जयन्ती और सूर्य ग्रहण करें ये अचूक उपाय, आज सावित्री व्रत से करें पति की लम्बी आयु की कामना, शास्त्रों में वर्णित यही हैं वे चौरासी लाख योनियां, वृक्ष और पशु योनियों में जाने से बचने के उपाय, जैसा चिंतन-मनन वैसा ही मिलता है धन, अमृत से भरे कलश छोड़ दिये!

 🕉️ श्री गणेशाय नमः 🕉️ जगत् जनन्यै जगदंबा भगवत्यै नम 🕉️ नमः शिवाय 🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय नमः सभी मित्र मंडली को आज का पंचांग एवं राशिफल भेजा जा रहा है इस का लाभ उठाएंगे *गुरु स्तुति*:–
*देवानां च ऋषिणां च,गुरूं कान्चन सन्निभम्*। *बुद्धिभूतं,त्रिलोकेशं,तं नमामि बृहस्पतिम्*।।
हिन्दी ब्याख्या:–
जो देवताओं और ऋषि यों के गुरु हैं कंचन के समान जिनकी प्रभा है जो बुद्धि के अखंड भंडार और तीनों लोकों के प्रभु हैं उन बृहस्पति देव को मैं प्रणाम करता हूं।
बृहस्पति गायत्री:–
*अंगिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये च धीमहि तन्नो गुरू: प्रचोदयात्*।।
यथाशक्ति जप के बाद पीपल युक्त पायस घी से दशांश हवन करना चाहिए।।
आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री* ✡️
✡️दैनिक पंचांग✡️
✡️वीर विक्रमादित्य संवत् ✡️
✡️2078 ✡️
✡️ज्येष्ठ मासे ✡️
✡️28 प्रविष्टे गते ✡️
✡️दिनांक ✡️ :10 – 06 – ✡️✡️2021(गुरुवार)✡️
✡️सूर्योदय :05.44 पूर्वाह्न✡️
✡️सूर्यास्त :07.08 अपराह्न✡️
✡️सूर्य राशि :वृषभ✡️
✡️चन्द्रोदय :05.23 पूर्वाह्न✡️
✡️चंद्रास्त :07.15 अपराह्न✡️
✡️चन्द्र राशि :वृषभ ✡️ 01:10 पूर्वाह्न तक, ✡️बाद में मिथुन
✡️विक्रम सम्वत :विक्रम संवत✡️ 2078
✡️अमांत महीना :बैशाख 30✡️
✡️पूर्णिमांत महीना :ज्येष्ठ 15
पक्ष :कृष्ण अमावस्या✡️
तिथि :अमावस्या 4.22 अपराह्न तक, बाद में प्रतिपदा
नक्षत्र :रोहिणी 11.44 पूर्वाह्न तक, बाद में म्रृगशीर्षा
योग :धृति 7.48 पूर्वाह्न तक, बाद में शूल
करण :नाग 4:22 अपराह्न तक, बाद में किस्तुघन
✡️राहु काल :2.11 पूर्वाह्न से- 3.51 अपराह्न तक✡️
कुलिक काल :9.09 पूर्वाह्न से – 10.50 पूर्वाह्न तक
यमगण्ड :5.48 पूर्वाह्न से – 7.29 पूर्वाह्न तक
✡️अभिजीत मुहूर्त :11.59 पूर्वाह्न से- 12.53 अपराह्न तक✡️
दुर्मुहूर्त :10:12 पूर्वाह्न से – 11:05 पूर्वाह्न तक, 03:33 अपराह्न से- 04:27 अपराह्न तक
✍️चक्रधर प्रसाद शास्त्री: मित्रों बहुत से मित्रों ने राशि नाम एवं प्रसिद्ध नाम के माध्यम से राशिफल देखने की प्रक्रिया जाननी चाही इसके विषय में महर्षि पाराशर जी ने पाराशरी नामक ग्रंथ में लिखा है कि:–
*देशे ग्रामे गृहे युद्धे, सेवायां व्यवहार के। नाम राशे प्रधानत्वं , जन्म राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिंदी ब्यख्या:–
प्रदेश में घर के बाहर गांव में युद्ध के समय सेवारत में व्यवहारिक नाम की प्रधानता होती है स्थानों पर जन्म राशि का चिंतन न करके प्रचलित नाम की राशि का चिंतन करना चाहिए।
*विवाह सर्वमांगल्यै, यात्रायां ग्रह गोचरे । जन्म राशे प्रधानत्वम्, नाम राशि न चिंन्तयेत्*।।
हिन्दी ब्याख्या:–
विवाह के समय मां सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों में यात्रा में ग्रह गोचर दशा के पूजन में जन्म राशि की प्रधानता होती है प्रसिद्ध नाम राशि का चिंतन नहीं करना चाहिए।।
✡️आज के लिए राशिफल (10-06-2021) ✡️
✡️मेष✡️10-06-2021
आज आपका आर्थिक पक्ष परिपक्व
रहेगा। पारिवारिक काम को पूरा करने में आप सफल होंगे। किसी जरूरी काम में आपको दोस्तों का सहयोग मिलेगा। आपको भाग्य
का साथ मिलेगा। आज आनंद प्रसंग के कुछ अधिक अवसर मिलेंगे। कुछ लोग आपके लिए सुुन्दरसिद्ध  हो सकते हैं। खुद को सही साबित करने का अच्छा दिन है। मिल कर किये गए कामों में आपको बहुत सीमा तक सफलता मिलेगी। संतान पक्ष से आपको खुशखबरी मिलेगी। अपने गुरु को प्रणाम करें, जीवन में दूसरों का सहयोग मिलता रहेगा।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : पीला रंग
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✡️वृष ✡️10-06-2021
रोजगार में व्यस्तता रहेगी। कार्यक्षेत्र में सम्मान मिल सकता है। परिश्रम से धन लाभ लेंगे। जो काम पिछले कई दिनों से अधूरे पड़े थे, वे समाप्त होसकते हैं। नए अनुबंध या नए संबंध बनने की संभावना है। समय अच्छा है। कई क्षेत्रों में आप एक साथ सक्रिय भी रहेंगे। आगे बढ़ने के लिए आपको अपने जीवन में कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं। अविवाहित लोगों को रोमांस के अवसर मिल सकते हैं। यात्रा के भी योग हैं।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 2
भाग्यशाली रंग : हरा रंग
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✡️मिथुन✡️
10-06-2021
आर्थिक मामलों में सुधार और कुछ व्यापारिक यात्राओं के योग बन रहे हैं। कामों में सफलता मिलेगी। प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण व्यक्तियों से आपका मिलना होगा और इससे आपको लाभ भी होगा। लाभप्रद सौदे हाथ लगेंगे। जीवनसाथी तथा परिवार के साथ आनंददायी समय बीतेगा। आप अपनी या संतान की शिक्षा को लेकर कुछ हद तक चिंतित रह सकते हैं। आज स्वास्थ्य कुछ नरम-गरम रह सकता है।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 8
भाग्यशाली रंग : नीला रंग
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✡️कर्क ✡️10-06-2021
आपको आज कुछ नयी वित्तीय योजनायें पता चलेंगी। अगर एक बार आप सोच समझकर कोई फैसला ले लें तो उसे कार्यान्वित करने में हिचकिचाएं नही। आने वाले दिनों में आपको सेवा में से अवकाश मिल सकता है। छोटे-मोटे मतभेद आपको देखने को मिलेंगे। छुपी हुई शख्शियत आपकी बाहर आ सकती है। आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। पैसों के विषय में किसी भी तरह की ख़तरा
लेने से बचें। किसी को उधार पैसा न दें। पैसों से जुड़ा वादा भी न करें।
भाग्यशाली दिशा : पूर्व
भाग्यशाली संख्या : 4
भाग्यशाली रंग : ग्रे रंग
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✡️सिंह✡️10-06-2021
आर्थिक उतार-चढ़ाव की स्थितियां देखने को मिल सकती है। काम ज्यादा और लाभ कम, इस तरह की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। आप किसी काम के लिए जितना ज्यादा प्रयास करेंगे, काम उतना ही बेहतर तरीके से होगा। वाहन चलाते समय आपको सावधानी रखने की जरूरत है। कारोबारी आज व्यावसायिक साझेदारी में अपनों से सलाह लेकर काम करेंगे, तो फायदा जरूर होगा। कार्यालय में काम आसानी से पूरा हो जायेगा। कुल मिलाकर आपका दिन ठीक-ठाक रहेगा। मंदिर में चंदन का टुकड़ा दान करें, आपकी सभी परेशानियाँ दूर होगी।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : गहरा नीला
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✡️कन्या✡️10-06-2021
रोजगार बढ़ेगा। अपने से निचले स्तर के कर्मचारियों से सहयोग मिलेगा। आपकी भेंट खास लोगों से हो सकती है। आपको नियमित कामकाज से कुछ समय के लिए छुटकारा मिल सकता है। आपकी ज्यादातर परेशानियां खत्म होने के योग हैं। जिस काम को आप अधूरा समझ रहे हैं, वह पूरा हो जाएगा। बड़े लोगों से सहयोग मिल सकता है। आपको फायदा भी हो सकता है। दिन थकान भरा रहेगा। आराम करें नहीं तो परेशानी हो सकती है।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर
भाग्यशाली संख्या : 9
भाग्यशाली रंग : लाल रंग
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✡️तुला ✡️10-06-2021
गलतफहमी और लगातार असहमति पारिवारिक माहौल को निराशाजनक बना सकती है। यह स्थिति आपको तनावग्रस्त कर सकती है। आज कार्य स्थल पर सहकर्मियों और अधीनस्थों से टकराव होने का खतरा है। घरेलू मोर्चे से निपटने के लिए राजनयिक बनने की कोशिश करें और दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाकर वास्तविक दुनिया को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास करें। वित्तीय व्यवहार और निवेश के साथ अधिक सतर्क और सावधान रहें क्योंकि दिन ज्यादा अनुकूल नही है। कमाई घट सकती है और धन अवरुद्ध हो सकता है। दूसरों के लिए स्थायी गारंटी देने से बचें।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 7
भाग्यशाली रंग : सफ़ेद रंग
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✡️वृश्चिक✡️10-06-2021
आज आप ऐसे स्रोत से धन अर्जित कर सकते हैं, जिसके बारे में आपने पहले सोचा तक न हो। वैवाहिक जीवन में सुख शांति का वातावरण बना रह सकता है। जीवन साथी के साथ अच्छा दिन बिताना में सक्षम रहेंगे। पेट दर्द से कुछ लोग बहुत ही ज्यादा परेशान रह सकते हैं। एक पारिवारिक आयोजन में आप सभी के ध्यान का केंद्र होंगे। दिन भर आपको चुनौतीपूर्ण कार्य मिलेंगे। यदि आपका अपना व्यापार है तो आज यात्रा करनी पड़ सकती है।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 4
भाग्यशाली रंग : भूरा रंग
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✡️धनु ✡️10-06-2021
आज आपको अचानक धन लाभ होगा। आपके सोचे हुए काम पूरे होंगे। आप किसी नए काम की शुरुआत करने के बारे में विचार करेंगे। जीवनसाथी के साथ संबंधों में मधुरता का रस घुलेगा। आपके मन में सकारात्मकता रहेगी। इससे आपको फायदा होगा। आपको पुराने कामकाज में बेहतर नतीजे मिलेंगे। कई योजनाएँ समय से पूरी हो जायेंगी। परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपको अच्छी-खासी सफलता मिलेगी। अपनी ऊर्जा से आप बहुत कुछ हासिल कर लेंगे। गायत्री मंत्र का 24 बार जप करें, रिश्ते बेहतर होंगे।
भाग्यशाली दिशा : उत्तर पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 8
भाग्यशाली रंग : मोर नीला
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✡️मकर ✡️10-06-2021
नए सौदे आज न करें तो ही अच्छा है। पैसा भी रुक सकता है। दिन की शुरुआत ठीक नहीं रहेगी। न चाहते हुए भी पैसा खर्चा हो सकता है। परिवार के लोग आपको किसी कठिन स्थिति में डाल सकते हैं। आज आप अपनी योजना गुप्त रखें। किसी से शेयर नहीं करें। रिश्तों के क्षेत्रमें भी कुछ कठिन स्थितियां बन सकती हैं। वाद-विवाद में उलझ सकते हैं। कामकाज में सुस्ती का माहौल रहेगा। सिर और पेट दर्द हो सकता है। भोजन में सावधानी रखें।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिण
भाग्यशाली संख्या : 1
भाग्यशाली रंग : नारंगी रंग
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✡️कुंभ ✡️10-06-2021
यात्राएं अधिक हो सकती हैं। आपको अपने वरिष्ठों और आधिकारिक से सहायता और पुरस्कार प्राप्त हो सकते हैं। आप अपने कार्य स्थल पर प्रशंसा के पात्र रहेंगें जो आपकी संतुष्टि को बढ़ाएगा। आर्थिक संदर्भ में त्वरित पैसा बनाने की योजनाओं या आकर्षक प्रस्तावों से दूर रहना बेहतर है। इससे आने वाले महीनों में समस्या हो सकती है। परिवार के सदस्यों के साथ कुछ गलतफहमी घरेलू माहौल को कड़वा बना सकती है। अगर किसी को प्रपोज करने की योजना है तो ऐसा करने के लिए यह एक आदर्श समय नही है। आपके बच्चों का स्वास्थ्य आपकी चिंता का कारण हो सकता है।
भाग्यशाली दिशा : पश्चिम
भाग्यशाली संख्या : 3
भाग्यशाली रंग : पीला रंग
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✡️मीन✡️10-06-2021
आज आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। लेखकों और कलाकारों के लिए समय अनुकूल है। अपनी या अपनों की सेहत की ओर ध्यान तो ज़रूर देना ही होगा, अगर मन में कोई दबाव है तो उसका असर सेहत पर आ सकता है। दोस्तों और बंधुजनों के साथ भी रिश्तों में खटास आने की संभावना है। कुछ जातकों के लिए दिन बहुत ही खास रहने वाला है। सामाजिक सभी प्रकार के रिश्ते आपके बन सकते हैं। कार्य बिना रुके आप कर सकते हैं।
भाग्यशाली दिशा : दक्षिणपूर्व
भाग्यशाली संख्या : 5
भाग्यशाली रंग : हल्का नीला
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आपका अपना *पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली फलित ज्योतिष शास्त्री जगदंबा ज्योतिष कार्यालय सोडा सरोली रायपुर देहरादून मूल निवासी ग्राम वादुक पत्रालय गुलाडी पट्टी नन्दाक जिला चमोली गढ़वाल उत्तराखंड फोन नंबर ✡️ 8449046631,9149003677*✡️✡️✡️
*सूर्य ग्रहण: क्या पाएं, क्या बचाएं*
आज इस वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून दिन गुरूवार को होगा, ये सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, इस बार का सूर्य ग्रहण भारत में आंशिक रूप से दिखाई देगा,भारतीय समय के अनुसार, सूर्य ग्रहण दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से शुरू होगा और शाम 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा। 

वट सावित्री व्रत 

यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. वट सावित्री व्रत को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं. इस व्रत का संबंध सावित्री देवी से है, पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। *ज्येष्ठ अमावस्या आज, पितरों के निमित्र करे दान और तर्पण* भूल से भी वट और पीपल के पेड़ पर सिंथेटिक धागे नहीं बांधने चाहिए और वट पीपल सहित किसी भी पेड़ की जड़ में तेल और मट्ठा नहीं डालना चाहिए, वृक्ष तपस्यारत प्राणी होते हैं इससे वंश का नाश होता है 

【ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री】
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✍🏻ज्येष्ठ माह में आने वाली १५वीं तिथि ज्येष्ठ अमावस्या कहलाती है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में ज्येष्ठ अमावस्या का खास महत्व होता है, इस साल ज्येष्ठ अमावस्या १० जून को मनाई जाएगी, ज्येष्ठ अमावस्या के अवसर पर भगवान शिव-पार्वती, विष्णुजी और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा है, अमावस्या के दिन स्नान और दान का काफी महत्व होता है,
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन स्नान करने को महत्वपूर्ण बताया गया है, प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है, तीर्थ स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है, इसके बाद ब्राह्मण भोजन और जल दान का संकल्प लेना चाहिए, इस दिन अन्न और जल दान करने से पितर संतुष्ट होते हैं, जिससे परिवार में समृद्धि आती है, इस दिन स्नान करने से नकारात्मक तत्व दूर होते हैं और मानसिक बल मिलता है, ज्येष्ठ अमावस्या के अवसर पर ये उपाय करने वैज्ञानिक हैं 
*१:-* ज्येष्ठ अमावस्या के दिन अगर आपके घर में कई गरीब मांगने वाला आता है तो उसे कभी भी मना नहीं करना चाहिए या खाली हाथ लौटाना नहीं चाहिए।
*२:-* ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है इसलिए शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन तन और मन से शुद्धता बनाए रखनी चाहिए।
*३:-* ज्येष्ठ अमावस्या के दिन महिलाओं को बाल खोलकर नहीं रहना चाहिए, ऐसा अशुभ माना जाता है, अमावस्या की तिथि पर महिलाओं को हमेशा अपना बाल बांधकर रखने चाहिए।
*४:-* ज्येष्ठ अमावस्या के दिन लोहा, कांच या सरसों का तेल आदि शनि से संबंधित किसी भी चीज की खरीदारी नहीं करनी चाहिए, ऐसा करना अशुभ बताया गया है, इन चीजों पर शनि व राहु-केतु का संबंध माना गया है। ✍🏻आचार्य:- पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री,

🕉️🕉️🕉️🕉️✅🧘🏼‍♂️✅🕉️🕉️🕉️🕉️।         *#चौरासी_लाख_योनियों के #चक्र का #शास्त्रों में वर्णन-*

          
 *#३० लाख बार वृक्ष योनि* में जन्म होता है ।
इस योनि में सर्वाधिक कष्ट होता है ।
धूप ताप,आँधी, वर्षा आदि में बहुत शाखा तक टूट जाती हैं ।
शीतकाल में पतझड में सारे पत्ता पत्ता तक झड़ जाता है।लोग कुल्हाड़ी से काटते हैं ।
उसके बाद,,,।                                                *जलचर प्राणियों के रूप में ९ लाख बार जन्म होता है।* 
हाथ और पैरों से रहित देह और मस्तक। सड़ा गला मांस  ही खाने को मिलता है ।
एक दूसरे का मास खाकर जीवन  रक्षा करते हैं ।
उसके बाद,,।                                                *कृमि योनि में १० लाख बार जन्म होता है..!!!।*
  
और फिर..
*११ लाख बार पक्षी योनि में जन्म होता है..!!!।* 
वृक्ष ही आश्रय स्थान होते हैं ।
जोंक, कीड़-मकोड़े, सड़ा गला जो कुछ भी मिल जाय, वही खाकर उदरपूर्ति करना।
*स्वयं भूखे रह कर संतान* को खिलाते हैं और जब *संतान उडना सीख जाती है  तब पीछे मुडकर भी नहीं देखती..!!!।*।                                 काक और शकुनि का जन्म दीर्घायु होता है ।
उसके बाद,,,                                         
*२० लाख बार पशु योनि,*                      वहाँ भी अनेक प्रकार के कष्ट मिलते हैं ।
अपने से बडे हिंसक और बलवान् पशु सदा ही पीडा पहुँचाते रहते हैं ।
भय के कारण पर्वत कन्दराओं में छुपकर रहना…!!!!। 
एक दूसरे को मारकर खा जाना । कोई केवल घास खाकर ही जीते हैं..!!! । 
किन्ही को,,                                                    हल खीचना, गाडी खीचना आदि कष्ट साध्य कार्य करने पडते हैं । 
*रोग शोक आदि होने पर  कुछ बता भी नहीं सकते..!!!।*                   सदा मल मूत्रादि में ही रहना पडता है ।
  *गौ का शरीर समस्त “पशु योनियों” *                    में श्रेष्ठ एवं अंतिम माना गया है..!!! ।*
तत्पश्चात् *४ लाख बार मानव योनि में जन्म होता है..!!!।*
इनमे *सर्वप्रथम* घोर अज्ञान से आच्छादित, पशुतुल्य आहार -विहार, वनवासी वनमानुष का जन्म मिलता है।
उसके *बाद जंगली जीवन के रूप में जैसे नागा,कूकी,संथाल आदिवासियों तरह की स्थिति में ।
*उसके बाद वैदिक धर्मशून्य अधम कुल में ,पाप कर्म करना एवं मदिरा आदि निकृष्ट और निषिद्ध वस्तुओं का सेवन और पशु बद्ध जुआ दुष्कर्म सर्वोपरि..!!।*
*उसके बाद शूद्र कुल में जन्म होता है।* 
*उसके बाद वैश्य कुल में।*
फिर, *क्षत्रिय  और अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है।*
*सबसे अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है..!!!।*
*यह जन्म एक ही बार मिलता है..!!!।*
*जो ब्रह्मज्ञान सम्पन्न है वही ब्राह्मण है..!!!।*
*अपने उद्धार के लिए वह आत्मज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है.!!!।*
यदि *इस दुर्लभ जन्म में भी ज्ञान* नहीं प्राप्त कर लेता तो पुनः *चौरासी लाख योनियों में घूमता रहता है..!!!।* इसलिए यदि मानवतन पाया है तो सकारात्मक रहें अच्छे और श्रेष्ठ कार्य करें। केवल शास्त्र सम्मत आचरण करें। अभक्ष्य खाना, पशुओं की हत्या (कुर्बानी) जैसे घृणित कार्य करने पर तो मरते ही तत्काल ही हाथ पैर विहीन सर्पों की योनि में चले जाता है। यदि हृदय में दया नहीं है तो पत्थर बन जाता है। यदि मनुष्य शरीर में रह कर ध्यान और तपस्या नहीं करता है तो फिर वृक्ष बन कर तप करना पड़ता है। आदि इत्यादि यही चक्र चलता रहता है 
*भगवत शरणागति गुरुजी शरण* के अलावा कोई और सरल उपाय नहीं है.!!! ।
यह मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है।
बहुत लम्बी जीवन यात्रा तय करके ही यहाँ तक पहुँचे हैं..!!!!! ।
अतः *अपने मानव जीवन* को सार्थक बनाइये, हरिजस गाइये। भगवान का निरंतर स्मरण करते रहैं और केवल सनातन धर्म संस्कृति के शास्त्रों में वर्णित जीवनचर्या अपनायें 🕉️🕉️🕉️🕉️🙏🙏🙏🕉️🕉️🕉️🕉️

“जहाँ चाह वहाँ राह” यानी मनुष्य जैसा बनना चाहता है यदि मन वचन कर्म से वैसा ही प्रयत्न करे तो ये निश्चित रूप से उसे वैसा ही मार्ग मिल जाता है। दुर्गा सप्तसती में भी माता भगवती स्वयं कह रही है यं यं चिंतयते कामम् तं तं प्रापनोति निश्चितम् अर्थात जो जैसा जैसा चिंतन करता है वो वैसा ही उसे प्राप्त होता है। 
‘तत्तत् कामस्य चेष्टितम्’ मनुस्मृति के इस कथन के अनुसार मनुष्य जो कुछ करता है,वह सब चाह (इच्छा) के कारण। महाकवि कालिदास भी इसका समर्थन करते हुए कहते हैं,मनोरथानामगतिर्न विद्यते अर्थात् कामनाएं कभी समाप्त नहीं होतीं। वास्तव में बन्धूओं! जहाँ चाह है वही राह है। यह ऐसा मनोवेग है,जो मनुष्य को अभीष्ट वस्तु प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। तभी तो प्रसाद जी कहते है–प्यासा हूँ मैं अब भी प्यासा हूँ,संतुष्ट ओघ से मै न हुआ ।आया फिर वह चला गया,तृष्णा को तनिक न चैन हुआ। सच्चाई यही है कि चाह जीवन के उत्कर्ष का द्वार खोलती है, सुख सौभाग्य की वर्षा करती है और मंगलमय जीवन का अभयदान देती है। सचमुच महान् संकल्प ही महान् फल का जनक होता है। इसे यो समझते है– ‘जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ ‘अब इस कहावत के साथ विराम लेती हूं। इति शुभम्–डाॅ सुमन

हमारे पास तो पहले से ही अमृत से भरे कलश थे…
🧐
फिर हम वो अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं… ?
🤔
*तनिक इन पर विचार करें…*
🧐👇🏻
० यदि *मातृनवमी* थी,
तो मदर्स डे क्यों लाया गया ?
० यदि *कौमुदी महोत्सव* था,
तो वेलेंटाइन डे क्यों लाया गया ?
० यदि *गुरुपूर्णिमा* थी,
तो टीचर्स डे क्यों लाया गया ?
० यदि *धन्वन्तरि जयन्ती* थी,
तो डाक्टर्स डे क्यों लाया गया ?
० यदि *विश्वकर्मा जयंती* थी,
तो प्रद्यौगिकी दिवस क्यों लाया गया ?
० यदि *सन्तान सप्तमी* थी,
तो चिल्ड्रन्स डे क्यों लाया गया ?
० यदि *नवरात्रि* और *कन्या भोज* था,
तो डॉटर्स डे क्यों लाया गया ?
० *रक्षाबंधन* है तो सिस्टर्स डे क्यों ?
० *भाई-दूज* है ब्रदर्स डे क्यों ?
० *आंवला नवमी, तुलसी विवाह* मनाने वाले हिंदुओं को एनवायरमेंट डे की क्या आवश्यकता ?
० केवल इतना ही नहीं, *नारद जयन्ती* ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है…
० *पितृपक्ष* 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है…
० *नवरात्रि* को स्त्री के नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये…
*सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये…*
आपकी सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व और त्योहार विधर्मीओं के धर्मांतरण की राह में बधक हैं, बस इसीलिए आपके धार्मिक परंपराओं से मिलते-जुलते Program लाए जा रहे हैं विधर्मीओ द्वारा।
ताकि आपको सनातन सभ्यता से तोड़कर धर्मांतरण की ओर प्रेरित किया जा सके… 
अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो वे ही हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे ! 
इसका एक ही उपाय है कि अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए, व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए, अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये। जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए, जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है…
*संस्कृति रक्षा अभियान…*
💫🚩🙏🏻🙏🏻🚩

शनि जयंती आज
राजेश मंत्री
शनि जिन्हें कर्मफलदाता माना जाता है। दंडाधिकारी कहा जाता है, न्यायप्रिय माना जाता है। जो अपनी दृष्टि से राजा को भी रंक बना सकते हैं। हिंदू धर्म में शनि देवता भी हैं और नवग्रहों में प्रमुख ग्रह भी जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में बहुत अधिक महत्व मिला है। शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना जाता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या को ही सूर्यदेव एवं छाया (संवर्णा) की संतान के रूप में शनि का जन्म हुआ।

शनि पूजा (साधना) की सामान्य विधि

शनिदेव की पूजा करने के लिये कुछ अलग नहीं करना होता। इनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह ही होती है। शनि जयंती के दिन उपवास भी रखा जाता है।

शनिदेव का जन्म दोपहर के समय हुआ था, अतः शास्त्र अनुसार शनि देव की पूजा उपासना मध्यकाल के समय ही कि जानी चाहिये। भारत में अनेक स्थानों पर उदय तिथि के (पंचांग) अनुसार के पर्व संपन्न होता हैं।

शारीरिक शुद्धि के पश्चात लकड़ी के एक पाट पर साफ-सुथरे काले रंग के कपड़े को बिछाना चाहिये। कपड़ा नया हो तो बहुत अच्छा अन्यथा साफ अवश्य होना चाहिये। फिर इस पर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा या तस्वीर न भी हो तो एक सुपारी के दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाये। इसके पश्चात धूप जलाएं। फिर इस स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। सिंदूर, कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल आदि के साथ-साथ नीले या काले फूल शनिदेव को अर्पित करें। इमरती व तेल से बने पदार्थ अर्पित करें। श्री फल के साथ-साथ अन्य फल भी अर्पित कर सकते हैं। पंचोपचार व पूजन की इस प्रक्रिया के बाद शनि मंत्र की एक माला का जाप करें। माला जाप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें। फिर शनिदेव की आरती उतार कर पूजा संपन्न करें।

इसी दिन वट सावित्री पूजन का पर्व भी मनाया जायेगा।

साधना के नियम

साधना-शनिअमावस्या शनिवार या शनि जयन्ती से आरम्भ करें।
साधना-समय सूर्योदय के पूर्व या सूर्यास्त के बाद
पुरुष सफेद या नीला वस्त्र करके
स्त्री नीला वस्त्र धारण करके
मुख की दिशा दक्षिण
लकड़ी की चौकी पर सवा मीटर काला वस्त्र बिछा कर चारो किनारे पर कील लगा दे, ध्यान रहे [ बर्तन स्टील या लोहे का ही प्रयोग करे ] एक बड़ी थाली या परात में सवा किलो काला [ खड़ा ] उड़द और सवा किलो काला तिल रख लें,
अब सवा सौ ग्राम सरसों का तेल उडद और तिल में मिला दें, अब पुनः एक स्टील के पात्र में शनिदेव की प्रतिमा या शनि यंत्र रख दे, अब आप शनि यंत्र या प्रतिमा पर कुंकुम केसर अष्टगंध से तिलक करे
और फिर कुंकुम अष्टगंध से उस परात या थाली में “श्रीं” लिख दें अब
सामाग्री सहित यंत्र या प्रतिमा स्थापित कर दे। और निम्न मंत्रो से शनिदेव की अंगपूजा करें।

ॐ श्री शनिदेवाय नमो नमः
ॐ श्री शनिदेवाय शान्ति भव:
ॐ श्री शनिदेवाय शुभम फल:
ॐ श्री शनिदेवाय फल: प्राप्ति फल:।

अंगपूजन के बाद हाथ जोड़कर ध्यान करे।

ॐ भगभवाय विदमहे मृत्यु रूपाय धीमहि तन्नो शौरि: प्रचोदयात।

ध्यान के बाद पंचोपचार विधि से शनिदेव का पुजन करें इसके बाद तिल-लड्डू गुड का भोग लगाये।

शनि देव के लिये सप्तधान्य

मूंगी, उड़द, गेहूं, काले-चने, जौ, धान्य “तंदुल” कंगनी आदि शनिदेव को अर्पण कर दान करें।

अष्टगंध धूप

अगर, छरीला, जटामासी, कर्पूर-कचरी, गुग्गल, देव दारू, गोघृत, सफ़ेद चन्दन आदि की धूप से पूजन करें।

अष्टगंध

अगर, कस्तूरी, कुकुम, कर्पूर, चन्दन, लौंग, देवदारु, गुग्गुल आदि अष्टगंध का प्रयोग पूजा में करें। पूजन के उपरांत शनिदेव की आरती करें आरती के बाद क्षमायाचना करें।

शनिदेव की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

शनिदेव व्रत कथा

एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए. और कुछ देर सोच कर बोले, देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं.

पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है. हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं. उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं.

देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे. देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया. महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे. क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे. किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी.

तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा, सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है. राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है.

तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो. मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा, सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है. राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा.

उसके वंश का सर्वनाश हो गया. राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा. राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए, लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा. फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए. राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे. उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे. कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे. विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे.

राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा. अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ. लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई. घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया.

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया. राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा.

लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला. राजा को भूख-प्यास लग आई. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला. राजा ने उससे पानी मांगा. पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी. फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा.

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया. उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई. सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया. सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया.

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई, सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था. सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो. राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था.

इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया, राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया. राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता. इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा. शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई.

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी. उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा. दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया.

राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी. अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया. राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये. राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है. रानी ने मोहिनी को समझाया, बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है. फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?

राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही. लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया. आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पडा. विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे. उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा, आज! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है.

राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की, हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना, शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा, अच्छा! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. उसे कोई दुख नहीं होगा.

शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई. उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई. तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुना.

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्योकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया. सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया.

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया. उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, च्शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं.

प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं. सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे।

पौराणिक कथा शनिदेव की

शनि देव को आज के युग मे कौन नही जानता।अक्सर शनि का नाम सुनते ही आफत नजर आने लगती है,लोग सहमने लग जाते हैं, शनि के प्रकोप का खौफ खा जाते हैं। कुल मिलाकर शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वह अच्छे का परिणाम अच्छा और बूरे का बूरा देने वाले ग्रह हैं। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है। शनि जयंती का दिन तो इस काम के लिये सबसे उचित माना जाता है। आइये जानते हैं शनिदेव के बारे में, क्या है इनके जन्म की कहानी और क्यों रहते हैं शनिदेव नाराज।

शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में जो कथा मिलती वह कुछ इस प्रकार है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। वह सोचा करती कि किसी तरह तपादि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। जैसे तैसे दिन बीतते गये संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया। संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिये उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा। संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए नारीधर्म का पालन करोगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिये।

अब संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची और अपनी परेशानी बताई तो पिता ने डांट फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई। उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं सुवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही उसे छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।

एक अन्य कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ मे पल रही संतान यानि शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर न सुधरा आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।

शनिदेव की तिरछी नजर का राज

शनिदेव के गुस्से की एक वजह उपरोक्त कथा में सामने आयी कि माता के अपमान के कारण शनिदेव क्रोधित हुए लेकिन वहीं ब्रह्म पुराण इसकी कुछ और ही कहानी बताता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। जब शनिदेव जवान हुए तो चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह हुआ। शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी लेकिन शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतना लीन रहते कि अपनी पत्नी को उन्होंनें जैसे भुला ही दिया। एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिये वह शनि के पास आयी लेकिन शनि देव हमेशा कि तरह भक्ति में लीन थे। वे प्रतीक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। आवेश में आकर उन्होंने शनि देव को शाप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी वह नष्ट हो जायेगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने की कोशिश की उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तीर कमान से छूट चुका था जो वापस नहीं आ सकता था अपने श्राप के प्रतिकार की ताकत उनमें नहीं थी। इसलिये शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे।

शनि ग्रह ज्योतिष में

यह नौ ग्रहों में सबसे अधिक रहस्यमयी ग्रह है. भारतीय ज्योतिष में इसे अन्त्यज माना गया है, इसलिए इसका मौलिक गुण एकाकी, गोपनीय किन्तु अपने उद्ïदेश्य के प्रति दृढ़ संकल्प वाला क्योंकि प्रत्येक कार्य से यह अपने वर्ग की उन्नति करना चाहता है. यह जब शुक्र द्वारा शासित राशि में हो तो यह मौलिक मानवी स्वभाव का होता है. इसका अकेलापन अधिक आकर्षक और क्रूरता अधिक परिष्कृत हो जाती है. इसलिए वह तुला में उच्च का होता है. शनि मेष में मंगल द्वारा शासित राशि में नीच का होता है क्योंकि एक एकाकी में समाज से कटा हुआ व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन करने में निरा अकेला होता है.

अपने मौलिक गुणों में वह हमेशा हारा हुआ ही रहता है. वस्तुत: सूर्य और शनि एक-दूसरे से विपरीत दो स्तम्भ हैं. मंगल जो राजा सूर्य की सेनाओं का प्रधान सेनापति है- कैसे एक आम व्यक्ति को अपनी ही राशि में शक्तिशाली बनने दे सकता है?

इस प्रकार ग्रहों की मौलिक विशेषताओं को समझकर कोई भी व्यक्ति के जीवन पर पडऩे वाले प्रभाव का फलादेश कर सकता है. शनि ग्रह की मूल विशेषताओं को सूत्र रूप में कहा जा सकता है। अपने आपमें सीमित, धैर्यशाली और दृढ़ संकल्पी. दृष्टि और युति को लिया जाये तो शनि 7वें, तीसरे और 10वें भावों को देखता है. युति में मित्र ग्रहों की ओर अशुभ ग्रहों की दृष्टियां अच्छे और बुरे परिणाम देती है. केन्द्र और त्रिकोणाधिपतियों की शुभ युतियां अच्छे परिणाम देती हैं. चूंकि सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर शेष सभी ग्रह दो-दो भावों के स्वामी होते हैं इसलिए एक अकेला ग्रह योगकारक हो सकता है. यह व्यक्तिगत कुंडली पर निर्भर करता है. कई बार दो ग्रहों की एक राशि में युति से विशेष प्रकार का योग बनता है. इसमें एक ग्रह उच्च का हो और दूसरा नीच का हो.

ये योग नीच भंग राजयोग, चंद्र मंगल योग और गुरु चांडालयोग के नाम से जाने जाते हैं. ये विशेष योग हैं और इनका प्रभाव इनके संयुक्त रूप से ही देखा जाना चाहिए.

शनि सम्बन्धी रोग

उन्माद नाम का रोग शनि की देन है, जब दिमाग में सोचने विचारने की शक्ति का नाश हो जाता है, जो व्यक्ति करता जा रहा है, उसे ही करता चला जाता है, उसे यह पता नही है कि वह जो कर रहा है, उससे उसके साथ परिवार वालों के प्रति बुरा हो रहा है, या भला हो रहा है, संसार के लोगों के प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं, उसे पता नही होता, सभी को एक लकडी से हांकने वाली बात उसके जीवन में मिलती है, वह क्या खा रहा है, उसका उसे पता नही है कि खाने के बाद क्या होगा, जानवरों को मारना, मानव वध करने में नही हिचकना, शराब और मांस का लगातार प्रयोग करना, जहां भी रहना आतंक मचाये रहना, जो भी सगे सम्बन्धी हैं, उनके प्रति हमेशा चिन्ता देते रहना आदि उन्माद नाम के रोग के लक्षण है।

वात रोग का अर्थ है वायु वाले रोग, जो लोग बिना कुछ अच्छा खाये पिये फ़ूलते चले जाते है, शरीर में वायु कुपित हो जाती है, उठना बैठना दूभर हो जाता है, शनि यह रोग देकर जातक को एक जगह पटक देता है।यह रोग लगातार सट्टा, जुआ, लाटरी, घुडदौड और अन्य तुरत पैसा बनाने वाले कामों को करने वाले लोगों मे अधिक देखा जाता है।

भगन्दर रोग गुदा मे घाव या न जाने वाले फ़ोडे के रूप में होता है। अधिक चिन्ता करने से यह रोग अधिक मात्रा में होता देखा गया है। चिन्ता करने से जो भी खाया जाता है, वह आंतों में जमा होता रहता है, पचता नही है, और चिन्ता करने से उवासी लगातार छोडने से शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है, मल गांठों के रूप मे आमाशय से बाहर कडा होकर गुदा मार्ग से जब बाहर निकलता है तो लौह पिण्ड की भांति गुदा के छेद की मुलायम दीवाल को फ़ाडता हुआ निकलता है, लगातार मल का इसी तरह से निकलने पर पहले से पैदा हुए घाव ठीक नही हो पाते हैं, और इतना अधिक संक्रमण हो जाता है, कि किसी प्रकार की एन्टीबायटिक काम नही कर पाती है।

गठिया रोग शनि की ही देन है। शीलन भरे स्थानों का निवास, चोरी और डकैती आदि करने वाले लोग अधिकतर इसी तरह का स्थान चुनते है, चिन्ताओं के कारण एकान्त बन्द जगह पर पडे रहना, अनैतिक रूप से संभोग करना और लकडी, प्लास्टिक, आदि से यौनि को लगातार खुजलाते रहना, शरीर में जितने भी जोड हैं, रज या वीर्य स्खलित होने के समय वे भयंकर रूप से उत्तेजित हो जाते हैं। और हवा को अपने अन्दर सोख कर जोडों के अन्दर मैद नामक तत्व को खत्म कर देते हैं, हड्डी के अन्दर जो सबल तत्व होता है, जिसे शरीर का तेज भी कहते हैं, धीरे धीरे खत्म हो जाता है, और जातक के जोडों के अन्दर सूजन पैदा होने के बाद जातक को उठने बैठने और रोज के कामों को करने में भयंकर परेशानी उठानी पडती है, इस रोग को देकर शनि जातक को अपने द्वारा किये गये अधिक वासना के दुष्परिणामों की सजा को भुगतवाता है।

स्नायु रोग के कारण शरीर की नशें पूरी तरह से अपना काम नही कर पाती हैं, गले के पीछे से दाहिनी तरफ़ से दिमाग को लगातार धोने के लिये शरीर पानी भेजता है, और बायीं तरफ़ से वह गन्दा पानी शरीर के अन्दर साफ़ होने के लिये जाता है, इस दिमागी सफ़ाई वाले पानी के अन्दर अवरोध होने के कारण दिमाग की गन्दगी साफ़ नही हो पाती है, और व्यक्ति जैसा दिमागी पानी है, उसी तरह से अपने मन को सोचने मे लगा लेता है, इस कारण से जातक में दिमागी दुर्बलता आ जाती है, वह आंखों के अन्दर कमजोरी महसूस करता है, सिर की पीडा, किसी भी बात का विचार करते ही मूर्छा आजाना मिर्गी, हिस्टीरिया, उत्तेजना, भूत का खेलने लग जाना आदि इसी कारण से ही पैदा होता है, इस रोग का कारक भी शनि है।

इन रोगों के अलावा पेट के रोग, जंघाओं के रोग, टीबी, कैंसर आदि रोग भी शनि की देन है।

शनि की दशा अन्तर्दशा अरिष्ट शांति के कुछ आसान उपाय

अगर किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की कोई भी दशा चल रही है , तो सबसे पहले अपने पैरों को साफ़ रखना शुरू कर दे , यह अति आवश्यक है , उन्हें साबुन से अच्छी तरह धोये , दिन में एक बारी अवश्य ही नहाना चाहिए और गर्मियों में कम से कम दो बारी स्नान ले , दाड़ी और बाल समय से कटवा लेने चाहिए , और हमेशा साफ़ सुथरे रहने का प्रयास करे , शनि की किसी भी दशा में चन्दन का इत्र लगाकर रखे , और अपने आस पास भी चन्दन की खुशबू प्रयोग में लाना शुरू कर दे । अगर आप मोज़े / जुराबे पहनते हो तो हमेशा रोज़ बदले । शनि की दशा में आपको गन्दा रहने , न नहाने , आलस्य के कारण बढे हुए बाल रखने की आदत पड़ जाती है , तो शनि के कारण होने वाले बुरे प्रभावों से बचने के लिए यह सब उपाय करे और हमेशा साफ सुथरे रहे ,

किसी की भी आलोचना से बचे अपने ऑफिस या कार्यालय में दोस्तों से सम्बन्ध अच्छे रखें ।

सप्ताह में एक बार शनि या भेरो मंदिर में दर्शन करें !

हनुमान चालीसा का नियम से पाठ करें
मन में आत्मविश्वास बनाये रखें अपने पर विश्वास रखें किसी को धोखा ना दें।

बुजुर्गों , मां और पत्नी पर क्रोध ना करें !
ज़रूरी बातों में घर के और बाहर के बुजुर्ग लोगों से समय समय पर सलाह मशवरा लेते रहे उन्हे क्रोध और अपमानित करने से बचे देखिएगा , शनि के बुरे प्रभाव अपने आप कम हो जायेंगे !!

कुछ अन्य उपाय रूठे शनिदेव को प्रसन्न करने के लिये
रुष्ठ शनि देव जी को प्रसन्न करने के उपाय अर्थात शनि शांति उपाय :

1 नीले रंग के कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।

2 शनिवार के दिन अपंग, नेत्रहीन, कोढ़ी, अत्यंत वृद्ध या गली के कुत्ते को खाने की सामग्री दें।

3 पीपल या शम्मी पेड़ के नीचे शनिवार संध्या काल में तिल का दीपक जलाएं।

4 समर्थ हैं तो काली भैंस, जूता, काला वस्त्र, तिल, उड़द का दान सफाई करने वालों को दें।

5 सरसों तेल की मालिश करें व आंखों में सुरमा लगाएं।

6 पानी में सौंफ, खिल्ला या लोबान मिलाकर स्नान करें।

7 लोहे का छल्ला मध्यम अंगुली में शनिवार से धारण करें।

8 लोहे की कटोरी में सरसों तेल में अपना चेहरा देखकर दान करें।

9 घर के या पड़ोस के बुजुर्गो की सेवा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

10 शम्मी की जड़ काले कपड़े में बांह में बांधें।

शनि देव का वैदिक मंत्र-

ॐ खां खीं खौं स: ॐ भूर्भव: स्व: ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भन्तु पीतये शं योरभिस्त्रवन्तु न:
ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: खौं खीं खां ॐ शनैश्चराय नम: ||

पौराणिक मंत्र-

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्‌॥

बीज मंत्र-

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

सामान्य मंत्र-

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

जप संख्या २३००० जप समय संध्या काल

निम्न मंत्रो का संभव हो तो शनि मंदिर अथवा घर मे संध्या का समय शुद्ध तन एवं मन से जाप करने से शनि जानित अरिष्ट में शांति आती है।