आज का पंचाग आपका राशि फल, हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) और लो बीपी ( निम्न रक्तचाप) दूर करने हेतु घरेलू उपाय, नदी बचाओ अभियान जाने कैसे विलुप्त हुई वृहद रुप से बहने वाली ‘सरस्वती नदी’

 🕉श्री हरिहरो विजयतेतराम🕉
🌄सुप्रभातम🌄
🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌻गुरुवार, १६ सितंबर २०२१🌻

सूर्योदय: 🌄 ०६:०९
सूर्यास्त: 🌅 ०६:२१
चन्द्रोदय: 🌝 १५:३६
चन्द्रास्त: 🌜२५:५९
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (राक्षस)
मास 👉 भाद्रपद
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 दशमी (०९:३६ तक)
नक्षत्र 👉 उत्तराषाढ (२८:०९ तक)
योग 👉 शोभन (२२:३२ तक)
प्रथम करण 👉 गर (०९:३६ तक)
द्वितीय करण 👉 वणिज (२०:५० तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कन्या (२५:१२ से)
चंद्र 🌟 मकर (१०:४२ से)
मंगल 🌟 कन्या (अस्त, पश्चिम, मार्गी)
बुध 🌟 कन्या (अस्त, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 कुम्भ (उदय, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 तुला (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:४७ से १२:३६
अमृत काल 👉 २१:५७ से २३:३०
रवियोग 👉 ०६:०२ से २८:०९
विजय मुहूर्त 👉 १४:१५ से १५:०४
गोधूलि मुहूर्त 👉 १८:०९ से १८:३३
निशिता मुहूर्त 👉 २३:४८ से २४:३५
राहुकाल 👉 १३:४४ से १५:१६
राहुवास 👉 दक्षिण
यमगण्ड 👉 ०६:०२ से ०७:३४
होमाहुति 👉 शनि
दिशाशूल 👉 दक्षिण
अग्निवास 👉 पृथ्वी (०९:३६ तक)
भद्रावास 👉 पाताल (२०:५० से)
चन्द्रवास 👉 पूर्व (दक्षिण ०१:४३ से)
शिववास 👉 सभा में (०९:३६ से क्रीड़ा में)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – शुभ २ – रोग
३ – उद्वेग ४ – चर
५ – लाभ ६ – अमृत
७ – काल ८ – शुभ
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – अमृत २ – चर
३ – रोग ४ – काल
५ – लाभ ६ – उद्वेग
७ – शुभ ८ – अमृत
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
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दक्षिण-पूर्व (दही का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
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संक्रान्ति सूर्य कन्या में २५:१२ से (पुण्यकाल अगले दिन सुबह ०७:३७ से), तेजा दशमी, धूप दशमी (जैन), गृहप्रवेश मुहूर्त प्रातः १०:५० से दोपहर ०३:२५ तक, नीवखुदाई एवं गृहारम्भ मुहूर्त प्रातः ०६:१६ से ०७:४६ तक आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २८:०९ तक जन्मे शिशुओ का नाम
उत्तराषाढ़ नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (भे, भो, ज, जी) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओं का नाम श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण अनुसार क्रमश (खी) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
सिंह – २७:५० से ०६:०८
कन्या – ०६:०८ से ०८:२६
तुला – ०८:२६ से १०:४७
वृश्चिक – १०:४७ से १३:०७
धनु – १३:०७ से १५:१०
मकर – १५:१० से १६:५१
कुम्भ – १६:५१ से १८:१७
मीन – १८:१७ से १९:४१
मेष – १९:४१ से २१:१४
वृषभ – २१:१४ से २३:०९
मिथुन – २३:०९ से २५:२४
कर्क – २५:२४ से २७:४६
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पञ्चक रहित मुहूर्त
शुभ मुहूर्त – ०६:०२ से ०६:०८
चोर पञ्चक – ०६:०८ से ०८:२६
शुभ मुहूर्त – ०८:२६ से ०९:३६
रोग पञ्चक – ०९:३६ से १०:४७
शुभ मुहूर्त – १०:४७ से १३:०७
मृत्यु पञ्चक – १३:०७ से १५:१०
अग्नि पञ्चक – १५:१० से १६:५१
शुभ मुहूर्त – १६:५१ से १८:१७
रज पञ्चक – १८:१७ से १९:४१
अग्नि पञ्चक – १९:४१ से २१:१४
शुभ मुहूर्त – २१:१४ से २३:०९
रज पञ्चक – २३:०९ से २५:२४
शुभ मुहूर्त – २५:२४ से २७:४६
चोर पञ्चक – २७:४६ से २८:०९
शुभ मुहूर्त – २८:०९ से ३०:०२
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन आपके लिए कार्य सफलता वाला रहेगा दिन के पहले भाग में जो भी योजना बनाएंगे मध्यांतर थोड़ी दौड़ को उसके बाद उसे पूरा करके ही दम लेंगे स्वभाव में थोड़ी तेजी भी रहे जिससे स्वजनों से वैचारिक मतभेद हो सकते हैं कार्यक्षेत्र पर आकस्मिक लाभ के योग बन रहे हैं। धन की आमद कि जितनी संभावना रहेगी वह अंत समय में किसी न किसी कारण से या तो टलेगी अथवा सोच से कम होगी। दूर रहने वाले जानकार से शुभ समाचार मिलने की संभावना है। आपकी प्रसन्नता ज्यादा देर तक स्थाई नहीं रह पाएगी स्वयं अथवा किसी जानने वाले को शारीरिक कष्ट होने से मानसिक पीड़ा होगी आज यात्रा सोच समझकर ही करें वाहन चलाते समय अधिक सावधानी बरतें दुर्घटना में गंभीर चोट लग सकती है घरेलू कार्य अस्त व्यस्त रहेंगे।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज के दिन आपके मन मे नए नए विचार बनेंगे दिन का अधिकांश समय कल्पनाओं में ही व्यतीत होगा। आवश्यक कार्य के चलते मध्यान तक कार्य क्षेत्र से अवकाश लेना पड़ेगा। आज कोई परिजन अथवा अधीनस्थ अपनी मांग मनवाने के लिये जिद पर अड़ेगा जिससे कुछ समय के लिये असुविधा होगी क्रोध आएगा लेकिन स्थिति को देख मन मे ही रखेंगे। स्वभाव में व्यवहारिकता की कमी रहेगी किसी की बातों का सीधा जवाब नही देंगे। धन की आमद अनैतिक कार्यो से होने की संभावना ज्यादा है। घर का वातावरण आपकी कंजूस प्रवृति के कारण उदासीन बनेगा। स्वास्थ्य में थोड़ी नरमी रहेगी।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन आप को शांति से बिताने की सलाह है। निरंतर मिल रही असफलताओं से क्षुब्ध होकर जल्दबाजी में कोई गलत फैसला ले सकते हैं। जिसकी भरपाई आने वाले समय में स्वयं के साथ परिजनों को भी करनी पड़ेगी। कार्यक्षेत्र पर असहयोगी वातावरण मिलेगा जिस किसी से भी सहायता की उम्मीद रखेंगे वही टालमटोल करेगा। अंत में स्वयं के बलबूते ही कार्य करना पड़ेगा। व्यवसाई वर्गों को कम समय में अधिक लाभ कमाने के प्रलोभन दिए जाएंगे लेकिन इनसे बचें अन्यथा हानि ही निश्चित है। नौकरी पेशा जातक वश्य अपनी चतुराई से प्रतिकूल परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बना लेंगे। घरेलू वातावरण में गर्मागर्मी जिद बहस लगी रहेगी इस कारण घर की तुलना में बाहर समय बिताना अधिक पसंद करेंगे। संध्या बाद स्थिति में बदलाव आने लगेगा धैर्य से समय बिताएं जोखिम वाले कार्यों से दूर रहे शारीरिक कष्ट के साथ सम्मान हानि की भी संभावना है।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज का दिन भी आपके लिए आनंददायक रहेगा आज आप स्वतंत्र विचार रहने के कारण किसी के दबाव में नहीं आएंगे। कोई भी कार्य चाहे वह गलत हो या सही बिना सोचे समझे करेंगे। परिजन अथवा अन्य किसी स्नेही जन के टोकने विरोध पर उतारू हो जाएंगे। कार्य क्षेत्र पर आलस्य प्रमाद फैलाएंगे। अपना कार्य अन्य सहकर्मियों से करवाना आगे भारी पड़ सकता है इसका ध्यान रखें। धन की आमद किसी भी मार्ग से होकर ही रहेगी नैतिक हो या अनैतिक इसका आपके ऊपर प्रभाव नहीं पड़ेगा। धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ने का अवसर मिलेगा इन में निष्ठा रहेगी लेकिन केवल व्यवहार मात्र के लिए ही समय देंगे। घर में कोई बुजुर्ग अक्समात बीमार पड़ने से अतिरिक्त भागदौड़ करनी पड़ेगी। आवश्यक कार्य को आज के दिन पूरा करें कल पर छोड़ना हानि कराएगा।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन छोटी अथवा बड़ी यात्रा के योग बन रहे है इसके कारण दिनचर्या अस्त व्यस्त होगी कार्य क्षेत्र पर भी योजनाओं में बदलाव करना पड़ेगा लेकिन फिर भी स्नेहीजन से भेंट मन को प्रसन्न रखेगी। मन मे पुरानी यादें ताजा होने पर भावुक होंगे। कार्य व्यवसाय में आज उतार चढ़ाव लगा रहेगा धन की आमद निश्चित नही रहेगी फिर भी जरूरत के अनुसार हो ही जाएगी। घर मे सुख सुविधा के साधन बढ़ेंगे इनका उपभोग भी करेंगे। खर्च भी आज अतिरिक्त रहेंगे लेकिन पारिवारिक प्रसन्नता के आगे अखरेंगे नही। धन को लेकर किसी से बहस होने की संभावना है सेहत आज उत्तम रहेगी।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज के दिन आप अपने विवेकी व्यवहार से सभी जगह सम्मान पाएंगे। मध्यान तक पारिवारिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति में व्यस्त रहेंगे रिश्तेदारी में जाना पड़ेगा खर्च आज पिछले दिनों से कम लेकिन बजट बिगाड़ने वाले रहेंगे। कार्य व्यवसाय में आज समय कम ही दे पाएंगे धन की आमद कम ही रहेगी। कार्य क्षेत्र पर सहकर्मियों की कमी खलेगी। परिवार में आज आनंद का वातावरण किसी ना किसी के अहम के कारण खराब हो सकता है। महिलाए आज अपबे आप को अन्य से अधिक बुद्धिमान प्रदर्शित कर स्वयं ही हास्य की पात्र बनेंगी। आरोग्य बना रहेगा।

तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज आपका मन घरेलू कलह से अशान्त रहेगा। दिन भर किसी न किसी से रूठने मनाने का क्रम चलता रहेगा महिलाए विशेषकर वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा मुश्किल से बने प्रेम व्यवहार टूटते देर नही लगेगी। कार्य क्षेत्र पर भी अपनी के आगे किसी की नही चखने देंगे सहकर्मियों के कार्यो में छोटे मोटे नुक्स निकालना भारी पड़ सकता है। आदत में सुधार लाये वरना अकेले रह जाएंगे। धन संबंधित कार्यो को शांति से मिलबैठकर सुलझाने का प्रयास करें व्यक्तिगत मामले सार्वजनिक होने पर प्रतिष्ठा में कमी आएगी। धन लाभ की आशा आज मुश्किल से ही पूरी होगीं यात्रा एवं लेनदेन पर खर्च होगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन लाभ की कई नई सम्भावनाये जगायेगा इनमे से कुछ एक आज पूर्ण होंगी शेष के दुविधा में फंसने के कारण निकट भविष्य में पूर्ण होने की आशा लगी रहेगी। कार्य क्षेत्र पर बिक्री में पिछले दिनों की तुलना में कमी आएगी लेकिन फिर भी आय के दृष्टिकोण से आज का दिन संतोषजनक रहेगा कार्य व्यवसाय के अतिरिक्त अन्य मार्ग से भी धन की आमद होगी। लेकिन खर्च भी लगे रहेंगे। मित्र रिश्तेदारों का आगमन घर मे चहल पहल बढ़ाएगा उपहार का आदान प्रदान होगा। घर के बड़ो का मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद जल्दी से हारने नही देगा आवश्यक कार्य संध्या से पहले कर लें इसके बाद सेहत प्रतिकूल होने लगेगी।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन आपके लिए सामान्य फलदायक रहेगा दिन के पहले हिस्से में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाएंगे परिश्रम करने में भी कमी नहीं रखेंगे लेकिन परिस्थितियां आज साथ कम ही देंगी। कार्य क्षेत्र पर आपकी स्वयं की किसी गलती से नुकसान हो सकता है। अपनी ही गलती से शत्रुओं को बढ़ाएंगे। धन लाभ की कामना किसी सहयोगी अथवा परिचित के माध्यम से पूर्ण अवश्य हो जाएगी लेकिन कुछ कमी भी रहेगी। आज व्यवसाय कुटुंब एवं सामाजिक कार्य एक साथ आने से असहजता होगी। परिवार की किसी महिला की मदद मिलने से राहत मिलेगी लेकिन ताने सुनने के बाद। कुछ समय के लिए आप स्वयं को बंधा हुआ जैसा अनुभव करेंगे। सेहत स्वयं के ही कारण खराब होगी असमय भोजन करने से पेट संबंधित व्याधियां पनपेगी। कमर में दर्द भी हो सकता है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन आपके लिए मिश्रित फलदायक रहेगा स्वभाव की मनमानी आज प्रत्येक क्षेत्र में आपको कुछ ना कुछ कमी रखेगी। कार्यक्षेत्र पर जब मन करेगा तब कार्य करेंगे अन्यथा खाली बैठना ही पसंद करेंगे। सहकर्मियों से आज विशेष सावधानी बरतें अंदर ही अंदर आपके खिलाफ कोई योजना बनाएंगे जिसका निकट भविष्य में प्रतिकूल फल मिलेगा। प्राइवेट नौकरी करने वाले जातक स्वयं की अन्य लोगों से तुलना करने पर भाग्यहीन जैसा अनुभव करेंगे। घर के सदस्यों के प्रति ईमानदार रहें अन्यथा आने वाले समय में इनसे किसी भी प्रकार के सहयोग की आशा न रखें। धन संबंधित कामनाएं आज बहुत मुश्किल से ही पूरी होंगी। छोटी बड़ी यात्रा की योजना बनेगी जिसके अंत समय में टलने की संभावना है। सेहत छोटी-मोटी व्याधियों को छोड़ सामान्य ही रहेगी।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आपका आज का दिन भागदौड़ वाला रहेगा दिन के आरंभ में यात्रा करनी पड़ेगी लेकिन इनसे व्यवहारिक लाभ के अतिरिक्त अन्य किसी लाभ की उम्मीद ना रखें। मध्यान तक दिनचार्य अस्त व्यस्त रहेगी इसके बाद ही स्थिरता आएगी। कार्य व्यवसाय में पुराने सामान की बिक्री से धन लाभ होगा नए अनुबंध भी मिलेंगे लेकिन समय की कमी के कारण आज इनपर कार्य आरंभ नही कर पाएंगे। सभी प्रकार के आर्थिक विषयो को आज ही ले देकर पूर्ण करने का प्रयास करें कल से स्थिति विपरीत होने पर धन को लेकर अपमानित हो सकते है। परिवार में छोटी मोटी बातो को छोड़ शांति रहेगी।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन आप को सार्वजनिक क्षेत्र से लाभ के साथ सम्मान की प्राप्ति कराएगा। स्वभाव में जल्दबाजी भी रहेगी। जो भी कार्य करें बुद्धि विवेक के साथ ही करें तो होने वाले लाभ के प्रतिशत में अवश्य वृद्धि होगी। घर अथवा कार्य क्षेत्र पर किसी के ऊपर अनैतिक दबाव डालने से बचें विशेषकर कार्य क्षेत्र पर किसी सहकर्मी को डांटना स्वयं के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सहकर्मी अथवा अधीनस्थ अवश्य ही कुछ ना कुछ गड़बड़ करेंगे फिर भी आज शांत रहकर सही समय की प्रतीक्षा करें। धन की आमद आवश्यकता अनुसार हो जाएगी लेकिन व्यर्थ के कार्यों मैं वृद्धि होने से अनैतिक खर्च भी बढ़ेंगे। घर में आप के अनुसार वातावरण ना मिलने पर क्रोध आ सकता है। इच्छा पूर्ति ना होने पर मानसिक तनाव आएगा।

*♻️ हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) और लो बीपी ( निम्न रक्तचाप) दूर करने हेतु*
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*🌹🌀 सुंदर और सफल उपाय*👌🏻👌🏻

1️⃣ *पहले दिन* – 1 दाना किशमिश गुलाब जल में रात को भिगो दें और सुबह चबा कर खा लें l

🔸 *दूसरे दिन*- 2 दाना किशमिश गुलाब जल में रात को भिगो दें और सुबह चबा कर खा लें l

🔸 *तीसरे दिन*- 3 दाना
🔸 *चौथे दिन*- 4 दाना
…………… इस तरह

🔸 *21वे दिन* – 21 दाना किशमिश गुलाब जल में रात को भिगो दें और सुबह चबा कर खा लें l

🔸10-15 दिन छोड़कर फिर से इस तरह 21 दिन का कोर्स करें l

🔸 *इस प्रकार 2-3 कोर्स में ही आपकी हाई बीपी जड़ से नष्ट हो जाएगी l* यह सामान्य रूप से बताया गया परम्परागत उपाय है रोग यदि गंभीर हो तो अपने निकटवर्ती डाॅ से परामर्श लें। 

#सरस्वती_नदी
सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। इसे प्लाक्ष्वती,वेद्समृति, वेदवती भी कहते है! ऋग्वेदमें सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी। कहते हैं, यह नदी हिमाचल में सिरमौरराज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरुक्षेत्र,कैथल होती हुई पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती (कांगार) नदी में मिल गई थी। प्राचीन काल में इस सम्मिलित नदी ने राजपूताना के अनेक स्थलों को जलसिक्त कर दिया था। यह भी कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा तथा यमुना में मिलकर त्रिवेणी बन गई थी। कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अंत:सलिला होकर बहती है। मनुसंहिता से स्पष्ट है कि सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था।
सरस्वती नदी (#नदीतमा)
—-महाभारत कालीन सरस्वती नदी। (हरे रंग से प्रदर्शित)
▪️उद्गम स्थल: हिन्दू देवी सरस्वती
▪️देश – भारत, पाकिस्तान
▪️राज्य – हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान
▪️क्षेत्र – भारत और पाकिस्तान
▪️लम्बाई – 1,600 कि.मी. (994 मील)
▪️विसर्जन स्थल – अरब सागर
▪️उद्गम – रूपण (सरस्वती)
▪️स्थान – शिवालिक पर्वतमाला, हिमालय, उत्तराखंड, भारत
▪️मुख स्थान – आदिबद्री, यमुनानगर, उत्तर भारत, हरियाणा, भारत
▪️मुख्य सहायक नदियाँ – वामांगी, दृषवती, हिरण्यवती
नोट – सरस्वती नदी को इसरो द्वारा प्रेषित मानचित्र में हरे रंग की रेखा के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
#सरस्वती_नदी_का_परिचय
सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रन्थों तथा #ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक मंत्र (१०.७५) में सरस्वती नदी को ‘यमुना के पूर्व’ और ‘सतलुज के पश्चिम’ में बहती हुई बताया गया है उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे #ताण्डय और #जैमिनीय_ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है, महाभारत में भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में ‘#विनाशन’ नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन आता है। महाभारत में सरस्वती नदी के #प्लक्षवती नदी, #वेदस्मृति, #वेदवती आदि कई नाम हैं। महाभारत, वायुपुराण अदि में सरस्वती के विभिन्न पुत्रों के नाम और उनसे जुड़े मिथक प्राप्त होते हैं। महाभारत के शल्य-पर्व, शांति-पर्व, या वायुपुराण में सरस्वती नदी और दधीचि ऋषि के पुत्र सम्बन्धी मिथक थोड़े थोड़े अंतरों से मिलते हैं उन्हें संस्कृत महाकवि बाणभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘हर्षचरित’ में विस्तार दे दिया है। वह लिखते हें- ” एक बार बारह वर्ष तक वर्षा न होने के कारण ऋषिगण सरस्वती का क्षेत्र त्याग कर इधर-उधर हो गए, परन्तु माता के आदेश पर सरस्वती-पुत्र, सारस्वतेय वहां से कहीं नहीं गया। फिर सुकाल होने पर जब तक वे ऋषि वापस लौटे तो वे सब वेद आदि भूल चुके थे। उनके आग्रह का मान रखते हुए सारस्वतेय ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया और पुनः श्रुतियों का पाठ करवाया. अश्वघोष ने अपने ‘बुद्धचरित’काव्य में भी इसी कथा का वर्णन किया है। दसवीं सदी के जाने माने विद्वान राजशेखर ने ‘काव्यमीमांसा’ के तीसरे अध्याय में काव्य संबंधी एक मिथक दिया है कि जब पुत्र प्राप्ति की इच्छा से सरस्वती ने हिमालय पर तपस्या की तो ब्रह्मा ने प्रसन्न हो कर उसके लिए एक पुत्र की रचना की जिसका नाम था- काव्यपुरुष. काव्यपुरुष ने जन्म लेती ही माता सरस्वती की वंदना छंद वाणी में यों की- हे माता! मैं तेरा पुत्र काव्यपुरुष तेरी चरण वंदना करता हूँ जिसके द्वारा समूचा वाङ्मय अर्थरूप में परिवर्तित हो जाता है।..”
ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आ कर मिलती थीं। इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियां थीं, लगभग १९०० ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के २६०० ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी भी लुप्त हो गयी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। इसरो द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमिगत रूप में प्रवाहमान है।
सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई अरब सागर में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है। कई मंडलों में इसका वर्णन है। ऋग्वेद वैदिक काल में इसमें हमेशा जल रहता था। सरस्वती आज की गंगा की तरह उस समय की विशालतम नदियों में से एक थी। उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल में यह नदी बहुत कुछ सूख चुकी थी। तब सरस्वती नदी में पानी बहुत कम था। लेकिन बरसात के मौसम में इसमें पानी आ जाता था। भूगर्भी बदलाव की वजह से सरस्वती नदी का पानी गंगा में चला गया, कई विद्वान मानते हैं कि इसी वजह से गंगा के पानी की महिमा हुई, भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया, जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी प्रयागराज तक नहीं पहुंची।
#ऋग्वेद_में_उल्लेख
ऋग्वेद की चौथे पुस्तक (मंडल ?) को छोड़कर सरस्वती नदी का सभी (मंडलों) पुस्तकों (?) में कई बार उल्लेख किया गया है। केवल यही ऐसी नदी है जिसके लिए ऋग्वेद की ऋचा ६.६१,७.९५ और ७.९६ में पूरी तरह से समर्पित स्तवन दिये गये हैं।
#प्रशस्ति_और_स्तुति:
▪️वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे ‘परम पवित्र’ नदी माना जाता था, क्यों कि इसके तट के पास रह कर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेद रचे औ‍र वैदिक ज्ञान का विस्तार किया। इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। ऋग्वेद के ‘नदी सूक्त’ में सरस्वती का इस प्रकार उल्लेख है कि ‘इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया’ सरस्वती, ऋग्वेद में केवल ‘नदी देवी’ के रूप में वर्णित है (इसकी वंदना तीन सम्पूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मन्त्रों में की गई है), किंतु ब्राह्मण ग्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच् के रूप में देखा गया, क्योंकि तब तक यह लुप्त हो चुकी थी परन्तु इसकी महिमा लुप्त नहीं हुई और उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यत:, वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में इसकी वंदना के गीत गाये गए हैं **ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। उसकी एक शाखा २.४१.१६ में इसे “सर्वश्रेष्ठ माँ, सर्वश्रेष्ठ नदी, सर्वश्रेष्ठ देवी” कह कर सम्बोधित किया गया है। यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों ६.६१,८.८१,७.९६ और १०.१७ में भी की गयी है।
▪️ऋग्वेद के मंत्र ७.९.५२ तथा अन्य जैसे ८.२१.१८ में सरस्वती नदी को “दूध और घी” से परिपूर्ण बताया गया है। ऋग्वेद के श्लोक ३.३३.१ में इसे ‘गाय की तरह पालन करने वाली’ बताया गया है
▪️ऋग्वेद के श्लोक ७.३६.६ में सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी बताया गया है।
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#अन्य_वैदिक_ग्रंथों_में_उल्लेख
ऋग्वेद के बाद के वैदिक साहित्य में सरस्वती नदी के विलुप्त होने का उल्लेख आता है, इसके अतिरिक्त सरस्वती नदी के उद्गम स्थल की ‘प्लक्ष प्रस्रवन’ के रूप में पहचान की गयी है, जो यमुनोत्री के पास ही अवस्थित है।
#यजुर्वेद
यजुर्वेद की वाजस्नेयी संहिता ३४.११ में कहा गया है कि पांच नदियाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ सरस्वती नदी में प्रविष्ट होती हैं, ये पांच नदियाँ पंजाब की सतलुज, रावी, व्यास, चेनाव और दृष्टावती हो सकती हैं। वी. एस वाकणकर के अनुसार पांचों नदियों के संगम के सूखे हुए अवशेष राजस्थान के बाड़मेर या जैसलमेर के निकट पंचभद्र तीर्थ पर देखे जा सकते है।
#रामायण
वाल्मीकि रामायण में भरत के कैकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है- ‘सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्’ सरस्वती नदी के तटवर्ती सभी तीर्थों का वर्णन महाभारत में शल्यपर्व के 35 वें से 54 वें अध्याय तक सविस्तार दिया गया है। इन स्थानों की यात्रा बलराम ने की थी। जिस स्थान पर मरूभूमि में सरस्वती लुप्त हो गई थी उसे ‘विनशन’ कहते थे।
#महाभारत
महाभारत में तो सरस्वती नदी का उल्लेख कई बार किया गया है। सबसे पहले तो यह बताया गया है कि कई राजाओं ने इसके तट के समीप कई यज्ञ किये थे। वर्तमान सूखी हुई सरस्वती नदी के समान्तर खुदाई में ५५००-४००० वर्ष पुराने शहर मिले हैं जिन में पीलीबंगा, कालीबंगा और लोथल भी हैं। यहाँ कई यज्ञ कुण्डों के अवशेष भी मिले हैं, जो महाभारत में वर्णित तथ्य को प्रमाणित करते हैं।
महाभारत में यह भी वर्णन आता है कि निषादों और मलेच्छों से द्वेष होने के कारण सरस्वती नदी ने इनके प्रदेशों मे जाना बंद कर दिया जो इसके सूखने की प्रथम अवस्था को दर्शाती है, साथ ही यह भी वर्णन मिलता है कि सरस्वती नदी मरुस्थल में विनाशन नामक स्थान पर लुप्त हो कर किसी स्थान पर फिर प्रकट होती है। महाभारत में वर्णन आता है कि ऋषि वसिष्ठ सतलुज में डूब कर आत्महत्या का प्रयास करते हैं जिससे नदी १०० धाराओं में टूट जाती है। यह तथ्य सतलुज नदी के अपने पुराने मार्ग को बदलने की घटना को प्रमाणित करता है, क्योंकि प्राचीन वैदिक काल में सतलुज नदी सरस्वती में ही जा कर अपना प्रवाह छोड़ती थी।
बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ (प्लक्षप्रस्त्रवण, यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण) तक की गयी तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र तीर्थ सरस्वती नदी के दक्षिण और दृष्टावती नदी के उत्तर में स्थित है।
#पुराण_में_संदर्भ
सिद्धपुर (गुजरात) सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ है। पास ही बिंदुसर नामक सरोवर है, जो महाभारत का ‘विनशन’ हो सकता है। यह सरस्वती मुख्य सरस्वती ही की धारा जान पड़ती है। यह कच्छ में गिरती है, किंतु मार्ग में कई स्थानों पर लुप्त हो जाती है।’सरस्वती’ का अर्थ है- सरोवरों वाली नदी, जो इसके छोड़े हुए सरोवरों से सिद्ध होता है।
#श्रीमद्भागवत 
“श्रीमद् भागवत (5,19,18)” में यमुना तथा दृषद्वती के साथ सरस्वती का उल्लेख है। “मंदाकिनीयमुनासरस्वतीदृषद्वदी गोमतीसरयु” “मेघदूत पूर्वमेघ” में कालिदास ने सरस्वती का ब्रह्मावर्त के अंतर्गत वर्णन किया है। “कृत्वा तासामभिगममपां सौम्य सारस्वतीनामन्त:शुद्धस्त्वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्ण:” सरस्वती का नाम कालांतर में इतना प्रसिद्ध हुआ कि भारत की अनेक नदियों को इसी के नाम पर ‘सरस्वती’ कहा जाने लगा। पारसियों के धर्मग्रंथ अवेस्ता में भी सरस्वती का नाम हरहवती मिलता है।
#उद्गम_स्थल_तथा_विलुप्त_होने_के_कारण
महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदिबद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती कह देते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय हैं। जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं और ये तालाब और झीलें अर्ध्दचन्द्राकार शक्ल में पायी जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्ध्दचन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। लेकिन ये सरोवर प्रमाण हैं कि उस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती रही थी और उसके सूखने के बाद वहां विशाल झीलें बन गयीं। भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से होता था। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदिबद्री तक सरस्वती बहकर आती थी और आगे चली जाती थी।
वैज्ञानिक और भूगर्भीय खोजों से पता चला है कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकम्प आए, जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से हो कर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकम्प आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी। बहुत बाद में यह प्रयागराज में गंगा से जाकर मिली। यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी। जैसा ऊपर भी कहा जा चुका है, प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। केवल इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि भूगर्भीय यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी प्रयागराज तक नहीं पहुंची।
#सरस्वती_नदी_और_हड़प्पा_सभ्यता 
सरस्वती नदी के तट पर बसी सभ्यता को जिसे हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु-सरस्वती सभ्यता कहा जाता है, यदि इसे वैदिक ऋचाओं से हटा कर देखा जाए तो फिर सरस्वती नदी मात्र एक नदी रह जाएगी, सभ्यता खत्म हो जाएगी। सभ्यता का इतिहास बताता है कि सरस्वती नदी तट पर बसी बस्तियों से मिले अवशेष तथा इन अवशेषों की कहानी केवल हड़प्पा सभ्यता से जुड़ती है। हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियां हैं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं। अभी तक हड़प्पा सभ्यता को सिर्फ सिन्धु नदी की देन माना जाता रहा था, लेकिन अब नये शोधों से सिद्ध हो गया है कि सरस्वती का सिन्धु सभ्यता के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान था।
संदर्भ श्रेय – वी.एस. वाकणकर और सी.एन.परचुरी, 
“द लॉस्ट सरस्वती रिवर”
दिनांक – १५.०९.२०२१