आज का पंचाग, आपका राशि फल, ब्रह्म मुहूर्त में खुले भगवान केदारनाथ और रूद्रनाथ के कपाट, जनेऊ धारण करने के वैज्ञानिक कारण एवं अद्भुत लाभ, जहां तक शंख की ध्वनि जाती है वहाँ तक नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं करती,

*नास्ति कामसमो व्याधि:*
*नास्ति मोहसमो रिपुः।*
*नास्ति कोपसमो वह्नि:*
*नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥*

अर्थात – काम के समान व्याधि नहीं है, मोह-अज्ञान के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है।

*मनुष्य साधनों से नहीं, साधना से श्रेष्ठ बनता है।*

*मनुष्य भवनों से नहीं, भावना से श्रेष्ठ बनता है*
*मनुष्य उच्चारण से नहीं, उच्च आचरण से श्रेष्ठ बनता है।* *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:**🙏💐🌻सर्व मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

*दिनाँक-: 17/05/2021,सोमवार*
पंचमी, शुक्ल पक्ष
वैशाख
“””””””‘””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)

तिथि————- पंचमी 11:34:02 तक
पक्ष————————– शुक्ल
नक्षत्र———— पुनर्वसु 13:20:42
योग————— गण्ड 26:47:11
करण———— बालव 11:34:02
करण———- कौलव 24:08:03
वार———————— सोमवार
माह————————-वैशाख
चन्द्र राशि—— मिथुन 06:51:40
चन्द्र राशि———————-कर्क
सूर्य राशि——————- वृषभ
रितु—————————ग्रीष्म
आयन——————– उत्तरायण
संवत्सर———————– प्लव
संवत्सर (उत्तर)——— आनंद
विक्रम संवत——————2078
विक्रम संवत (कर्तक) —–2077
शाका संवत—————– 1943
सूर्योदय————— 05:30:36
सूर्यास्त—————– 19:00:55
दिन काल————— 13:30:18
रात्री काल————— 10:29:11
चंद्रोदय—————- 09:36:24
चंद्रास्त—————- 23:54:20

लग्न—- वृषभ 2°10′ , 32°10′

सूर्य नक्षत्र—————– कृत्तिका
चन्द्र नक्षत्र—————— पुनर्वसु
नक्षत्र पाया——————–रजत

*🚩💮🚩 पद, चरण🚩💮🚩*

हा—- पुनर्वसु 06:51:40

ही—- पुनर्वसु 13:20:42

हु—- पुष्य 19:47:33

हे—- पुष्य 26:12:08

*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*

ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य= वृषभ 02°52 ‘ कृतिका , 2 ई
चन्द्र = मिथुन 29°23 ‘ पुनर्वसु , 3 हा
बुध = वृषभ 24°57′ मृगशिरा’ 1 वे
शुक्र= वृषभ 15°55, रोहिणी ‘ 2 वा
मंगल=मिथुन 20°30 ‘ पुनर्वसु ‘ 1 के
गुरु=कुम्भ 06°22 ‘ धनिष्ठा , 4 गे
शनि=मकर 19°43 ‘ श्रवण ‘ 3 खे
राहू=(व)वृषभ 17°38 ‘मृगशिरा , 3 वि
केतु=(व)वृश्चिक 17°38 ज्येष्ठा , 1 नो

*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*

राहू काल 07:12 – 08:53 अशुभ
यम घंटा 10:34 – 12:16 अशुभ
गुली काल 13:57 – 15:38 अशुभ
अभिजित 11:49 -12:43 शुभ
दूर मुहूर्त 12:43 – 13:37 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:25 – 16:19 अशुभ

💮चोघडिया, दिन
अमृत 05:31 – 07:12 शुभ
काल 07:12 – 08:53 अशुभ
शुभ 08:53 – 10:34 शुभ
रोग 10:34 – 12:16 अशुभ
उद्वेग 12:16 – 13:57 अशुभ
चर 13:57 – 15:38 शुभ
लाभ 15:38 – 17:20 शुभ
अमृत 17:20 – 19:01 शुभ

🚩चोघडिया, रात
चर 19:01 – 20:20 शुभ
रोग 20:20 – 21:38 अशुभ
काल 21:38 – 22:57 अशुभ
लाभ 22:57 – 24:16* शुभ
उद्वेग 24:16* – 25:34* अशुभ
शुभ 25:34* – 26:53* शुभ
अमृत 26:53* – 28:11* शुभ
चर 28:11* – 29:30* शुभ

💮होरा, दिन
चन्द्र 05:31 – 06:38
शनि 06:38 – 07:46
बृहस्पति 07:46 – 08:53
मंगल 08:53 – 10:01
सूर्य 10:01 – 11:08
शुक्र 11:08 – 12:16
बुध 12:16 – 13:23
चन्द्र 13:23 – 14:31
शनि 14:31 – 15:38
बृहस्पति 15:38 – 16:46
मंगल 16:46 – 17:53
सूर्य 17:53 – 19:01

🚩होरा, रात
शुक्र 19:01 – 19:53
बुध 19:53 – 20:46
चन्द्र 20:46 – 21:38
शनि 21:38 – 22:31
बृहस्पति 22:31 – 23:23
मंगल 23:23 – 24:16
सूर्य 24:16* – 25:08
शुक्र 25:08* – 26:00
बुध 26:00* – 26:53
चन्द्र 26:53* – 27:45
शनि 27:45* – 28:38
बृहस्पति 28:38* – 29:30

*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

🐏मेष
सही काम का भी विरोध होगा। कोई पुरानी व्याधि परेशानी का कारण बनेगी। कोई बड़ी समस्या बनी रहेगी। चिंता तथा तनाव रहेंगे। नई योजना बनेगी। कार्यप्रणाली में सुधार होगा। सामाजिक कार्य करने के प्रति रुझान रहेगा। मान-सम्मान मिलेगा। रुके कार्यों में गति आएगी। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में चैन बना रहेगा।

🐂वृष
धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। कोर्ट व कचहरी के कार्य मनोनुकूल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। चोट व रोग से बचें। सेहत का ध्यान रखें। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। झंझटों में न पड़ें। व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि होगी। नौकरी में मातहतों का सहयोग मिलेगा। निवेश शुभ रहेगा। परिवार में प्रसन्नता रहेगी।

👫मिथुन
शत्रुभय रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। विवाद से क्लेश होगा। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। ऐश्वर्य के साधनों पर सोच-समझकर खर्च करें। कोई ऐसा कार्य न करें जिससे कि बाद में पछताना पड़े। दूसरे अधिक अपेक्षा करेंगे। नकारात्मकता हावी रहेगी।

🦀कर्क
प्रतिद्वंद्विता कम होगी। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। बात बिगड़ सकती है। शत्रुभय रहेगा। कोर्ट व कचहरी के काम मनोनुकूल रहेंगे। जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। स्त्री वर्ग से सहायता प्राप्त होगी। नौकरी व निवेश में इच्छा पूरी होने की संभावना है।

🐅सिंह
भूमि व भवन संबंधी खरीद-फरोख्त की योजना बनेगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। आर्थिक उन्नति होगी। संचित कोष में वृद्धि होगी। देनदारी कम होगी। नौकरी में मनोनुकूल स्थिति बनेगी। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। शेयर मार्केट आदि से बड़ा फायदा हो सकता है। परिवार की चिंता बनी रहेगी।

🙍‍♀️कन्या
शारीरिक कष्ट संभव है। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। किसी प्रभावशाली व्यक्ति मार्गदर्शन प्राप्त होगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। झंझटों में न पड़ें।

⚖️तुला
शत्रुओं का पराभव होगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी। दु:खद समाचार मिल सकता है। व्यर्थ भागदौड़ रहेगी। काम पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। बेवजह किसी व्यक्ति से कहासुनी हो सकती है। प्रयास अधिक करना पड़ेंगे। दूसरों के बहकावे में न आएं। फालतू बातों पर ध्यान न दें। लाभ में वृद्धि होगी।

🦂वृश्चिक
पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है। जल्दबाजी न करें। आवश्यक वस्तुएं गुम हो सकती हैं। चिंता तथा तनाव रहेंगे। प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। भेंट व उपहार देना पड़ सकता है। प्रयास सफल रहेंगे। कार्य की बाधा दूर होगी। निवेश शुभ रहेगा। व्यापार में वृद्धि तथा सम्मान में वृद्धि होगी।

🏹धनु
किसी भी तरह के विवाद में पड़ने से बचें। जल्दबाजी से हानि होगी। राजभय रहेगा। दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। घर में मेहमानों का आगमन होगा। व्यय होगा। सही काम का भी विरोध हो सकता है। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। निवेश शुभ रहेगा। सट्टे व लॉटरी के चक्कर में न पड़ें।

🐊मकर
कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय सोच-समझकर करें। किसी अनहोनी की आशंका रहेगी। शारीरिक कष्ट संभव है। लेन-देन में लापरवाही न करें। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल चलेगा। शेयर मार्केट से बड़ा लाभ हो सकता है।

🍯कुंभ
मस्तिष्क पीड़ा हो सकती है। आवश्यक वस्तु गुम हो सकती है या समय पर नहीं मिलेगी। पुराना रोग उभर सकता है। दूसरों के झगड़ों में न पड़ें। हल्की हंसी-मजाक करने से बचें। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। चिंता रहेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी। यश बढ़ेगा।

🐟मीन
बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। विवेक से कार्य करें। लाभ में वृद्धि होगी। फालतू की बातों पर ध्यान न दें। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में उन्नति होगी। व्यापार-व्यवसाय की गति बढ़ेगी। चिंता रह सकती है। थकान रहेगी। प्रमाद न करें।

*🚩आपका दिन मंगलमय हो🚩*
🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏🌺🙏
🕉🔱🕉🔱🕉🔱🕉🔱🕉🔱
जोतिष आचार्य पांडुरंगराव शास्त्री
कुंडली हसतरेखा वास्तुशास्त्र निष्णात एवम संपुर्ण पुजाविधी संपन्न, मुम्बई 
मो: +9321113407
Email- pigweshastri@gmail.com

भगवान केदारनाथ के कपाट पुनर्वसु नक्षत्र में प्रात: पांच बजे खुल गये हैं। कपाट खुलने की प्रक्रिया प्रात: तीन बजे से शुरू हो गयी थी। रावल भीमाशंकर एवं मुख्य पुजारी बागेश लिंग तथा  देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी. सिंह एवं जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग मनुज गोयल ने पूरब द्वार से मंदिर  मुख्य प्रांगण में प्रवेश किया तथा  मुख्य द्वार पर पूजा अर्चना की मंत्रोचार के पश्चात ठीक पांच बजे भगवान केदारनाथ मंदिर के कपाट खोल दिये गये। 
 
मंदिर के कपाट खुलने के पश्चात मुख्य पुजारी बागेश लिंग ने स्यंभू शिवलिंग को समाधि से जागृत किया तथा निर्वाण दर्शनों के पश्चात श्रृंगार तथा रूद्राभिषेक पूजाएं की गयी।  श्री केदारनाथ धाम में भी प्रथम रूद्राभिषेक पूजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की ओर से की गयी तथा जनकल्याण की कामना की गयी।
 
कोरोना महामारी को देखते हुए चारधाम यात्रा अस्थायी तौर पर स्थगित है धामों में केवल पूजापाठ संपन्न हो रही है यात्रियों को आने की अनुमति नहीं है। केदारनाथ के कपाट खुलते समय  पूजापाठ से जुड़े चुंनिंदा लोग मौजूद रहे। धाम में मौसम सर्द है मंदिर के कुछ दूरी पर बर्फ मौजूद है। तथा रास्ते में कहीं- कहीं हिमखंड नजर आ रहे है।
 
       मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने पर प्रसन्नता ब्यक्त की है तथा भी के आरोग्यता की कामना की है। कहा है कि कोरोना महामारी के कारण अस्थाई तौर पर यात्रा स्थगित है सभी लोग वर्चुअली दर्शन करें तथा अपने घरों में पूजा-अर्चना करें।
 
       पर्यटनमंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि कोरोना महामारी समाप्त होगी तथा शीघ्र चारधाम यात्रा शुरू होगी। उल्लेखनीय है कि पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की पहल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नाम से जनकल्याण की भावना के साथ सभी धामों में प्रथम पूजा संपन्न करवायी जा रही है।
 
       श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर  ऋषिकेश के दानीदाता सौरभ कालड़ा ग्रुप द्वारा श्री केदारनाथ मंदिर को 11 क्विंटल फूलों से सजाया गया था। इस अवसर पर रावल भीमाशंकर लिंग, केदार लिंग, मुख्य पुजारी बागेश लिंग, देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी. सिंह,  जिलाधिकारी मनुज गोयल,पुलिस क्षेत्राधिकारी अनिल मनराल  बीकेटीसी पूर्व सदस्य शिवसिंह रावत, एसडीएम रवीन्द्र वर्मा,तहसीलदार जयराम बधाड़ी, धर्माधिकारी आचार्य औंकार शुक्ला,मंदिर  प्रशासनिकअधिकारी यदुवीर पुष्पवान, प्रबंधक अरविंद शुक्ला एवं प्रदीप सेमवाल, पारेश्वर त्रिवेदी,महावीर तिवारी,मृत्युंजय हीरेमठ, विपिन कुमार आदि मौजूद रहे। 
पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया की श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के पश्चात केदारनाथ मास्टर प्लान कार्यों में अधिक गति आयेगी।
 
कपाट खुलने के दौरान कोरोना बचाव मानकों का पालन किया गया। मास्क, सेनिटाईजर, थर्मल स्क्रीनिंग अनिवार्य किया गया। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन ने कपाट खुलने के लिए एसओपी द्वारा ब्यापक दिशा निर्देश जारी किये हैं। केदारनाथ में जिला प्रशासन, पुलिस, एसडीआरएफ तथा स्वास्थ्य विभाग, विद्युत, जल संस्थान की टीम अपना कार्य कर रही हैं।
 
देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 18 मई  प्रात:4 बजकर 15 मिनट पर  खुल रहे है।  आज श्री योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर से आदि गुरू शंकराचार्य जी की गद्दी के साथ श्री उद्धव जी, श्री कुबेर जी तथा  तेलकलश (गाडू घड़ा) श्री बदरीनाथ धाम पहुंचेगा। 
 
तृतीय केदार तुंगनाथ जी के कपाट आज दोपहर में खुल रहे है जबकि चतुर्थ केदार रूद्रनाथ जी के कपाट भी आज खुल रहे हैं। द्वितीय केदार  मदमहेश्वर जी के कपाट 24 मई को खुल रहे हैं। जबकि गुरूद्वारा  श्री हेमकुंड साहिब एवं श्री लक्ष्मण मंदिर के कपाट खुलने की तिथि अभी निश्चित नहीं है।

चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की डोली शनिवार को गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर परिसर से कैलाश के लिए चली है। सीमित संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भोले अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास कैलाश  रूद्रनाथ में भगवान शिव के एकानन मुख के दर्शन होते है। 

आभूषणों और फूलों से सजी चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की उत्सव डोली पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ डोली में पिछले वर्षो तक सैकड़ों की संख्या में श्रद्वालु उत्सव डोली के साथ जाते थे, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार भी गिनती के लोगों को ही अनुमति दी गई। इस दौरान मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग का भी पूरा ध्यान रखा गया। दो दिनों की कठिन पैदल यात्रा में उत्सव डोली का पहला पडाव पनार में रहा। इसके बाद अगले दिन डोली रूद्रनाथ के लिए चली। भगवान रूद्रनाथ के कपाट 17 मई को ब्रहामुहूर्त में खोले गयेे।कपाट खुलने के बाद अब अगले 6 माह तक रूद्रनाथ में भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाएगी। इस बार पूजा पाठ में गोपेश्वर के तिवाड़ी पंडिताें की बारी है। आज ही भगवान तुंगनाथ के कपाट भी श्रद्धालुओं के लिए खोले गए हैं। 

 
#संस्कार–जनेऊ पहनने के लाभ 👍👍
पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। जनेऊ धारण से आयु वृद्धि होती है। यह वैज्ञानिक अनुसंधान का सूत्र है। जनेेेऊ धारण का शाास्त्र सम्मत अधिकार प्रत्येक  सात्विक व्यक्ति को है। 
वर्तमान में अंग्रेजी आचरण के चलते यह वैज्ञानिक परम्परा कम गयी है। 
जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है।
पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को 
पढऩे का अधिकार मिलता था। 
मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस 
कर तीन बार लपेटना पड़ता है। 
इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट 
की आंतों से है।
आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है।
जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा 
कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन 
के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है।
जनेऊ उसके वेग को रोक देती है,जिससे कब्ज, एसीडीटी,पेट रोग,मूत्रन्द्रीय रोग,रक्तचाप,हृदय 
रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।
जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। 
वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार 
नहीं सकता।
जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। 
अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही 
जनेऊ कान से उतारता है।
यह सफाई उसे दांत,मुंह,पेट,कृमि,जिवाणुओं के 
रोगों से बचाती है। 
जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को 
होता है।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। 
इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय 
करने का अधिकार प्राप्त होता है।
यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक 
पृष्ठभूमि भी है। 
शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक 
प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह 
कार्य करती है। 
यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक 
स्थित होती है। 
यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। 
इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह 
होता है। 
यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य 
काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता।
अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसकी मात्र 
अनुभूति होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त 
होने लगता है।
यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के 
कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो 
कोई आश्चर्य नहीं है।
इसीलिए सभी हिंदुओं में किसी न किसी कारण
वश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। 
सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत 
की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है।
यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य 
का पोषक भी है,अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए।
शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया 
गया है। 
आदित्य,वसु,रूद्र,वायु,अगि्न,धर्म,वेद,आप,सोम 
एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में 
होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने 
पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है।
यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा 
जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।
यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) 
शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है 
और विद्यारंभ होता है। 
मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार 
के अंग होते हैं।
जनेऊ पहनाने का संस्कार
सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी 
व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, 
यज्ञसूत्र या जनेऊ
यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से 
ग्रन्थित करके बनाया जाता है। 
इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । 
ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। 
तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के 
बाद हमेशा धारण किया जाता है। 
तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा,विष्णु और महेश के 
प्रतीक होते हैं।
तीन सूत्र हमारे ऊपर तीन प्रकार के ऋणों 
का बारम्बार स्मरण कराते हैं कि उन्हें भी 
हमें चुकाना है।
1 – पितृ ऋण 
2 – मातृ ऋण
3 – गुरु ऋण
अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। 
बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं 
किया जाता।
यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांति मौजूद है|
लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं जबकि सच 
तो कुछ और ही है।
जानें कि सच क्या है ? 
जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा 
मिल जाती है।
क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ 
धारण करने वाले को लघुशंका करते समय 
दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा 
अधर्म होता है।
दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य 
छिपा है।
दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा 
नहीं मारता।
आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, 
एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का 
भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है,एक पत्नी 
पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् 
पति पक्ष का।
अब एक एक जनेऊ में 9 – 9 धागे होते हैं।
जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी 
पक्ष के 9 – 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन 
करना है।
अब इन 9 – 9 धांगों के अंदर से 1 – 1 धागे 
निकालकर देंखें तो इसमें 27 – 27 धागे होते हैं।
अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 – 27 
नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है।
अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 
27+9 = 36 होता है,जिसको एकल अंक 
बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आता है,
जो एक पूर्ण अंक है।
अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 
2 और जोड़ दें तो 9 + 2 = 11 होगा जो हमें 
बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो 
लोगों अर्थात् पति और पत्नी ( 1 और 1 ) के 
मिलने सेबना है | 1 + 1 = 2 होता है जो अंक 
विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है और चंद्रमा 
हमें शीतलता प्रदान करता है।
जब हम अपने दोनो पक्षों का ऋण वहन कर 
लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है|
यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं 
कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत।
अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं 
कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। 
अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए 
भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। 
हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान 
पर से उतारें। 
इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि 
शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक 
क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का 
हिस्सा अपवित्र माना गया है।
दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक 
कारण यह है कि इस कान की नस,गुप्तेंद्रिय 
और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है।
मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की 
संभावना रहती है। 
दाएं कान को ब्रह्म सूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश 
से बचाव होता है।
यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। 
यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान 
बम्ह्रसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में मूत्र त्याग करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान 
पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है।
इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते 
समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय 
आज्ञा है।
शंख की ध्वनि जाती है वहाँ तक कोई नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। प्राचीन काल में शंख ना सिर्फ पवित्रता का प्रतीक था बल्कि इसे शौर्य का द्योतक भी माना जाता था। प्रत्येक योद्धा के पास अपना शंख होता था और किसी भी युद्ध अथवा पवित्र कार्य का आरम्भ शंखनाद से किया जाता था। महाभारत में भी हर योद्धा के पास अपना शंख था और कुछ के नाम भी महाभारत में वर्णित हैं। आइये कुछ प्रसिद्ध शंखों के बारे में जानें।
– पाञ्चजन्य: ये श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध शंख था। जब श्रीकृष्ण और बलराम ने महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा समाप्त की तब उन्होंने गुरुदक्षिणा के रूप में अपने मृत पुत्र को माँगा। तब दोनों भाई समुद्र के अंदर गए जहाँ श्रीकृष्ण ने शंखासुर नामक असुर का वध किया। तब उसके मरने के बाद उसका शंख (खोल) शेष रह गया जो श्रीकृष्ण ने अपने पास रख लिया। वही पाञ्चजन्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस बारे में विस्तृत लेख बाद में धर्मसंसार पर प्रकाशित किया जाएगा।
– गंगनाभ: ये गंगापुत्र भीष्म का प्रसिद्ध शंख था जो उन्हें उनकी माता गंगा से प्राप्त हुआ था। गंगनाभ का अर्थ होता है “गंगा की ध्वनि” और जब भीष्म इस शंख को बजाते थे तब उसकी भयानक ध्वनि शत्रुओं के ह्रदय में भय उत्पन्न कर देती थी। महाभारत युद्ध का आरम्भ पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य और कौरवों की ओर से भीष्म ने गंगनाभ को बजा कर ही की थी।
– हिरण्यगर्भ: ये सूर्यपुत्र कर्ण का शंख था। कहते हैं ये शंख उन्हें उनके पिता सूर्यदेव से प्राप्त हुआ था। हिरण्यगर्भ का अर्थ सृष्टि का आरम्भ होता है और इसका एक सन्दर्भ ज्येष्ठ के रूप में भी है। कर्ण भी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे।
– अनंतविजय: ये महाराज युधिष्ठिर का शंख था जिसकी ध्वनि अनंत तक जाती थी। इस शंख को साक्षी मान कर चारो पांडवों ने दिग्विजय किया और युधिष्ठिर के साम्राज्य को अनंत तक फैलाया। इस शंख को धर्मराज ने युधिष्ठिर को प्रदान किया था।
– विदारक: ये महारथी दुर्योधन का भीषण शंख था। विदारक का अर्थ होता है विदीर्ण करने वाला या अत्यंत दुःख पहुँचाने वाला। ये शंख भी स्वाभाव में इसके नाम के अनुरूप ही था जिसकी ध्वनि से शत्रुओं के ह्रदय विदीर्ण हो जाते थे। इस शंख को दुर्योधन ने गांधार की सीमा से प्राप्त किया था।
– पौंड्र: ये महाबली भीम का प्रसिद्ध शंख था। इसका आकर बहुत विशाल था और इसे बजाना तो दूर, भीमसेन के अतिरिक्त कोई अन्य इसे उठा भी नहीं सकता था। इसकी ध्वनि इतनी भीषण थी कि उसके कम्पन्न से मनुष्यों की तो क्या बात है, अश्व और यहाँ तक कि गजों का भी मल-मूत्र निकल जाया करता था। कहते हैं कि जब भीम इसे पूरी शक्ति से बजाते थे जो उसकी ध्वनि से शत्रुओं का आधा बल वैसे ही समाप्त हो जाया करता था। ये शंख भीम को नागलोक से प्राप्त हुआ था।
– देवदत्त: ये अर्जुन का प्रसिद्ध शंख था जो पाञ्चजन्य के समान ही शक्तिशाली था। इस शंख को स्वयं वरुणदेव ने अर्जुन को वरदान स्वरुप दिया था। इस शंख को धारण करने वाला कभी भी धर्मयुद्ध में पराजित नहीं हो सकता था। जब पाञ्चजन्य और देवदत्त एक साथ बजते थे तो दुश्मन युद्धस्थल छोड़ कर पलायन करने लगते थे। 
– सुघोष: ये माद्रीपुत्र नकुल का शंख था। अपने नाम के स्वरुप ही ये शंख किसी भी नकारात्मक शक्ति का नाश कर देता था।
– मणिपुष्पक: ये सहदेव का शंख था। मणि और मणिकों से ज्यादा ये शंख अत्यंत दुर्लभ था। नकुल और सहदेव को उनके शंख अश्विनीकुमारों से प्राप्त हुए थे।
– यञघोष: ये द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का शंख था जो उसी के साथ अग्नि से उत्पन्न हुआ था और तेज में अग्नि के समान ही था। इसी शंख के उद्घोष के साथ वे पांडव सेना का सञ्चालन करते थे।
श्रीमद्भगवतगीता के पहले अध्याय के एक श्लोक में इन शंखों का वर्णन है।
पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:। पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर।। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर। नकुल सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।
अर्थात: श्रीकृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया। कुंती-पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख का नाद किया।
इसके अगले श्लोक में अन्य योद्धाओं द्वारा शंख बजाने का वर्णन है हालाँकि उनके नाम नहीं दिए गए हैं। 
काश्यश्च परमेष्वास शिखण्डी च महारथ। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजिताः।। द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।
अर्थात: इसके अलावा काशीराज, शिखंडी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट, सात्यकि, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों एवं अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंखों का नाद किया (प्रस्तुति नीता मैखुरी)