मजदूरों के ऐतिहासिक रिवर्स पर ऐजेंडाधारी मीडिया के फोकस की वजह भारत को बदनाम करना तो नहीं?

मजदूरों के ऐतिहासिक रिवर्स अपने गांव आने पर ऐजेंडाधारी मीडिया के फोकस की वजह भारत को बदनाम करना तो नहींं? जो पहले पलायन पर चिंंतित रहते थे वे कामगारों के रिवर्स अपने गांंवों जाने पर इतना हाय-तौबा क्यों मचा रहे हैं? शहरों से भारत अधिसंख्य कामगार अपने गांंवों लौट गये फिर शहरों में काम कौन करेगा? इस पर ये चिंंतित नहीं क्या बात? भारत के अधिकांश मजदूर अपने गांव लौट गये पर रोहिंग्या बंगला देशी और घुसपैठियों को अपने वतन लौटते नहीं देखा गया, तो क्या शहर अब इन्हीं सस्ते मजदूरों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया? ऐसे में शहरों की सुरक्षा व्यवस्था पर ऐजेंडाधारी मीडिया खामोश क्यों है? 

*एक मजदूर 10 किलो के सामान के साथ एक दिन में 20 किलोमीटर ही पैदल चल सकता है।*

*यह वर्ल्ड साइंस की रिपोर्ट है कि एक व्यक्ति 24 घण्टों में 20 से 25 किमी ही चल सकता है।*
तो 1200 किलोमीटर तक पहुँचने के लिये 60 दिन लगेंगे।

लाॅकडाउन 24 मार्च की रात से शुरू हुआ मतलब आज 22-5-2020 तक 58 दिन हुए हैं। *ये मान भी लिया जाये कि ये 24 मार्च की रात को ही पैदल चल पड़े थे तो अब तक 58 दिनों का राशन इनको कहाँ से मिला*?

*खाना बनाने के लिए इन्होने क्या साधन प्रयोग किया? और इन्होंने 58 दिनों में इतनी दूरी कैसे तय कर ली* ?  फिर जो लोग स्वेच्छा से कारों से अपने गांव लौट रहे उनके फोटो बिकेंगे नहीं ना? 

वास्तविकता तो ये है कि सरकार को बदनाम करने के लिए विपक्ष, मीडिया और ट्रासपोर्टरों की और देश विरोधी ऐजेंडा चलाने वालों की मिलीभगत ने इसको धन्धा बना दिया है।

ये मजदूर अवैध तरीके से ट्रांसपोर्टरों व कई जगहों मीडिया के माध्यम से अपने गन्तव्य को जा रहे हैं।  तब नाटक सुनसान हाइवे पर होता है *जब इन मजदूरों को बस, ट्रक, टेम्पो, जीप आदि से उतारकर पैदल चलाया जाता है और कैमरों में शूट करने के बाद वापस फिर उसी वाहन पर चढ़ा दिया जाता है*। फिर ये बनाई गयी फोटो ऐसे भुनाई जाती है जैसे केन्द्र सरकार इन मज़दूरों को भगा रही हो। जबकि इसका मुख्य कारण राज्य सरकारों की प्रबंधन व्यवस्था से जुड़े हैं। पर ये बात ऐजेंडा चलाने वालों द्वारा छिपाई जाती है।

*हद तो तब हो गयी जब मीडिया में बताया गया कि मजदूर 1500 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके 15 दिन बाद अपने घर पहुँचे*।

*मतलब एक दिन में 100 किलोमीटर पैदल चले वो भी सामान के साथ।*

*ऐसी नौटंकी ने विज्ञान ही फेल कर दिया।*
विपक्षियों ने मीडिया मैनेजमेंट के माध्यम से देश विरोधी ऐजेंडे को राजनीतिक धन्धा बना दिया? 

🤔🤔बात अच्छी तरह समझ आ गई कि प्रवासी मजदूरों पर मीडिया का इतना फोकस क्यों है ? इस मामले में News Manufacturing क्यों की जा रही है । सूटकेस पर बीवी-बच्चों को ले जाते मज़दूर के साथ पूरे रास्ते वीडियोग्राफी क्यों की जा रही है ? रैबीज टाईप लोग क्यों घड़ियाली आँसू बहा रहे? बीस लाख करोड़ के पैकेज को बेकार क्यों बताया जा रहा है ?
एक ही उद्देश्य है कि भारत में मज़दूरों और आम जनता में असंतोष पैदा करना, देश में दंगे भड़काना और ऐसी स्थिति पैदा करना कि चीन से बाहर निकलने वाले उद्योग भारत की ऐसी खराब हालत देख कर भारत की ओर रुख न करें ।

एक मुख्य कारण ये भी कहा जा रहा है कि ये चीन के षड़यंत्र में शामिल वामपंथी दल, अर्बन नक्सल, देश की एक प्रमुख पार्टी और कई रीजनल पार्टियां, कई मज़दूर संगठन, और एक खास तरह का ऐजेंडा चलाने वाला मीडिया भारत को कमज़ोर रख कर आत्म निर्भर नहीं होने देना चाहते और चाहते हैं ताकि चीन-पाकिस्तान जब भारत के खिलाफ जंग छेड़ें तो आसानी से भारत हार जाए औऱ चीन के इन प्यादों को सत्ता का सुख मिल सके।

इधर हमारे आम भारतीय तो छोड़िए, पढ़े-लिखे इस षड़यंत्र को समझ नहीं पा रहे और मज़दूरों की वीडियो की मैन्युफैक्चर्ड खबरों को देख कर सरकार की आलोचना करने में लगे हैं ।

” सरकार देश में चीन और दुनियां के सामान को क्यों बैन नहीं कर सकती, उसके पीछे का कारण जानने के लिए १९९४ की गयी एक संधि को भी समझना होगा। 

 1994 में देश में एक कांड हुआ (wto में शामिल होना) भारत में तब उद्योगों के हालात बहुत खराब थे। तब कम्युनिस्ट पार्टियां कांग्रेस के साथ पॉवर में थी। मजदूर कानूनों और भ्रष्टाचार के कारण देश में कारखाने और manufacturing units बड़ी तादात में बंद हो चुकी थी, यह काम 1960 से ही चल रहा था और कम्युनिस्ट मजदूर संगठनों द्वारा हिंसात्मक आंदोलन और उनके कानूनी पचड़े इतने ज्यादा थे कि कुछेक बड़े व्यापारियों को छोड़कर अधिकतर भारतीय व्यापारी भारत में काम बंदकर यहां से दूसरे देशों में अपना काम शुरू कर चुके थे… जैसे अफ्रीका, अमरीका, कनाडा आदि। भारत के इन सभी मजदूर संगठनों को चाइना के लाल झंडे व ईसाई मिशनरियों के जरिए पैसा पहुंचाया जाता था.. ताकि भारत की बजाय ये कारखाने रुस व चीन में लगाए जा सकें।

तात्कालिक भारतीय नेता इन बातों को जानते थे। 1980 में जब उन्हें यह बात समझ में आयी तब तक भारत में हालात बहुत खराब हो चुके थे। कम्युनिस्ट रूस व चीन के जासूसों की पकड़ भारतीय राजनीति पर बहुत ज्यादा हो चुकी थी… जो भी सरकार कुछ करने की कोशिश करती, उसे गिरा दिया जाता या समर्थन वापस ले लिया जाता। इस तरह इस दरम्यान सरकारें बार बार गिराई गई।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गांधी परिवार के अलावा 13 और प्रधानमंत्री बनाए गए। पर किसी ने 1 वर्ष का कार्यकाल भी पूरा नहीं किया सिवाय लाल बहादुर शास्त्री जी के। जिन्होंने केवल 18 महीने शासन किया। मतलब 1.5 साल और अच्छे शासन का पुरस्कार में उन्हें रूस के ताशकंत में मौत दी गई। 1991 से 4 वर्ष के साथ नरसिंहराव ने यह क्रम तोड़ा तो उसका परिणाम उनके मृत शरीर व अमर आत्मा को सहना पड़ा। वाजपयी जी को भी 6 साल मिले .. लेकिन जो भी कहो भारत, रूस और चीन जैसे कम्युनिस्ट देशों के हाथ की कठपुतली बना रहा।

तो 1990 में ये हालत हो गए कि हमारे पास लोगों के लिए दवाई बाहर से आ रही, किसानों के लिए बीज-pestiside, गाडियां, सेना के लिए बंदूक की गोली, यहां तक कि सुई भी बाहर से बनकर आती।

इधर तेल और हथियार के व्यापार के कारण अमरीका महाशक्ति बन चुका था। उसका ही कंट्रोल अरब के तेल पर भी था और इसीलिए विश्व में उसने सोने के बदले होने वाले व्यापार को बंद कर विश्व व्यापार डॉलर में शुरू करवाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप का गोल्ड बैंक अमरीका में सुरक्षित समझ बनाया गया था यह भी प्रमुख कारण बना।
और डॉलर के माध्यम से हो रहे लेन-देन के कारण अमरीका ने सभी देशों को प्रभाव में लेकर WTO का निर्माण किया (world Trade organisation)।
और अब लगभग दुनिया के सभी देशों ने तय किया किया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर होने वाले विवादों का निपटारा wto के नियमों के अधीन होगा। जो इसके नियम नहीं मानता व किसी नियम का उल्लघंन करते पाए जाने पर wto उस देश पर trading restrictions लगायेगा। जैसे duties को बढ़ाएगा और व्यापार पर प्रतिबंध- मतलब कोई भी देश ना उसे कोई भी सामान देगा, ना लेगा।

The most important and first rule of WTO is MFN- इसमें वो कहते है कि आप किसी भी देश से discrimination नहीं कर सकते। इसका उदाहरण देखें भारत में भले ही पर्याप्त चीनी हो पर आपको पाकिस्तान व चीन आदि देशों से भी खरीदनी ही होगी। 

फिर से पुरानी कहानी पर आते हैं.. जब हमारे अधिकतर बड़े उद्योग खत्म हो गए थे तो केवल छोटे उद्योग ही बचे थे। जैसे हैंडीक्राफ्ट्स, छपाई, एंटीक फर्नीचर आदि कला से जुड़े उद्योग। इन उत्पादों का उपयोग भारत में होता ही नहीं था, खपत थी ही नहीं। लोग सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान की दौड़ में थे और वो भी बहुत कम पैसे में। जबकि ये luxury आइटम थे। निर्माण में मजदूरी ही बहुत ज्यादा थी, जो वास्तव में दुनिया के लिए भी luxury ही थी। इनके ना मिलने से किसी का कोई भी कार्य रुक नहीं रहा था। पर दिखने में सुंदर। जिसके सामने आ जाए, वह व्यक्ति मोह में लेता ही था। यह सभी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट होते थे और एक्सपोर्ट ड्यूटी से ही सरकार को धन की प्राप्ति थी। बाकी चीजों में मसाले, तेल जैसे कृषि आधारित वस्तुओं का सहारा था।

इस एक्सपोर्ट से प्राप्त हुए डॉलर (फौरन रिजर्व) से ही देश को चलाने के लिए पेट्रोल, डीजल हथियार, कृषि, डेयरी के व्यापार की वस्तुएं खरीदी जा सकती थी।
अगर तब भारत wto के साथ नहीं जुड़ता और दुनिया से आवश्यकता की मूलभूत वस्तुएं ना मंगवाता तो उस सबसे बूरे समय में हथियारों, भोजन, नई तकनीक के अभाव में भारत ना जाने कितने अलग-अलग और छोटे-छोटे व कमजोर देशों में बंट जाता। एक तरह से हमारा देश ही नष्ट हो जाता। उस समय की काल-परिस्थिति के अनुसार wto से जुड़ना ठीक था। हमको आवश्यकताएं अधिक थी और सस्ता सामान भी आवश्यक था।
पर आज परिस्थिति अलग है। हम आगे बढ़ सकते हैं। अगले 10 वर्ष में एक बहुत बड़ी आर्थिक शक्ति बन सकते हैं। Wto के कारण अब मोदी जी यह तो कह नहीं सकते कि सीधे सीधे बॉयकॉट चाइना। लेकिन स्वदेशी का मन्त्र और उद्योगों के लिए हर छोटे-बड़े व्यापारी के लिए भारत का खजाना खोल देना उनकी मंशा समझा देता है। वे सीधे-सीधे चीन के बॉयकॉट का नारा तो दे नहीं सकते।

चीन भी हल्के में इसे जाने नहीं देगा। हमारा आत्मनिर्भर हो जाना ही उसके लिए सबसे बड़ा नुकसान है। पैसे और काम की कमी से चीन में आंदोलन जोर पकड़ सकते हैं, चीन में सत्ता पलट या रूस जैसे टुकड़े हो सकते हैं। चीन यह बात अच्छे से जानता है और इसीलिए वो फिर से भारत के मजदूरों को कम्युनिस्टों के जरिए भड़का कर और उकसे हुए जिहादियों को पैसा-हथियार देकर भारत को अस्थिर कर सकता है।
वह युद्ध में जाने को पूरी तरह से तैयार है। पाकिस्तान को दवाई और मेडिकल सप्लाई देकर भारत पर आतंकवादी हमला या युद्ध शुरू करना चाहता है। फिर पाकिस्तान के नाम पर वो युद्ध में कूदेगा। ताकि दुनिया की जो कंपनियां भारत में चीन छोड़कर आ रही है, वो युद्ध और दंगे देख कर ना आए। दंगों की टेस्टिंग उसने बंगाल से शुरू कर दी है।
उसने भारत पर मजबूत आक्रमण करने के लिए कुछ दिनों में ही गतिविधियां तेज की हैं। मालदीव के पास एक कृत्रिम आइलैंड बनाया है, श्रीलंका के पोर्ट पर लड़ाकू विमान उतरे हैं, नेपाल के एवरेस्ट पर उसकी सेना ने कब्जा कर लिया है। वहां से लद्दाख केवल 80 किलोमीटर है। नॉर्थ ईस्ट की सारी सीमा पर भारतीय सैनिकों से गुत्थम गुत्था लड़ाई की है, पाकिस्तान-बांग्लादेश में वो पहले से है। वो छह दिशा से युद्ध को तैयार है।

और आपको उसी चीन का रेवेन्यू tick tok से बढ़ाना है, उनके सामान खरीद के बढ़ाना है- आपकी मर्ज़ी। पर अब भी आप नहीं समझते हैं तो हमारी नजर में आप जाने-अनजाने अपनी ही मातृभूमि, अपने स्वदेश के प्रति एक अक्षम्य अपराध के भागी होंगे। जिसका प्रायश्चित स्वयं देवताओं के पास भी नहीं है।