कौन हैं अष्टवसु क्यों करनी चाहिए इनकी पूजा

अष्टबसुओ की तपस्थली : बसुकेदार
दस्तक केदारघाटी
केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बासवाड़ा से 22 किमी की दूरी पर है प्रचीन बसुकेदार मंदिर समूह। शंकराचार्यकालीन यह मंदिर कत्यूरी शिल्प मे निर्मित 18 छोटे बड़े मंदिरो का समूह है। मुख्य मंदिर शिव के केदार स्वरूप को समर्पित है जिसके अंदर गर्भगृह से पहले द्वार पर गणेश और विष्णु भगवान की पाषाण प्रतिमाऐ है। मुख्य मंदिर से लगते अन्य मंदिरो मे भी शिव रूप स्थापित है। मान्यता है कि यहा अष्ट बसुओ ने भगवान आदिकेदार की तपस्या की थी इसलिऐ यह स्थान बसुकेदार नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कौन थे 8 वसु  :
‘वसु’ शब्द का अर्थ ‘वसने वाला’ या ‘वासी’ है। धरती को वसुंधरा भी कहते हैं। 8 पदार्थों की तरह ही 8 वसु हैं। इन्हें ‘अष्ट वसु’ भी कहते हैं। इन आठों देवभाइयों को इन्द्र और विष्णु का रक्षक देव माना जाता है। सभी का जन्म दक्ष कन्या और धर्म की पत्नी वसु से हुआ है। दक्ष कन्याओं में से एक सती भी थी, जो शिव की पत्नी थीं। सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। स्कंद पुराण के अनुसार महिषासुर मर्दिनी दुर्गा के हाथों की अंगुलियों की सृष्टि अष्ट वसुओं के ही तेज से हुई थी। रामायण में वसुओं को अदिति पुत्र कहा गया है। हालांकि यह शोध का विषय भी है।
आठ वसुओं के नाम :
वेद और पुराणों में इनके अलग-अलग नाम मिलते हैं। स्कंद, विष्णु तथा हरिवंश पुराणों में 8 वसुओं के नाम इस प्रकार हैं:- 1. आप, 2. ध्रुव, 3. सोम, 4. धर, 5. अनिल, 6. अनल, 7. प्रत्यूष और 8. प्रभाष।
वसुओं का इतिहास :
जालंधर दैत्य के अनुचर शुंभ को वसुओं ने ही मारा था। पद्मपुराण के अनुसार वसुगण दक्ष के यज्ञ में उपस्थित थे और हिरण्याक्ष के विरुद्ध युद्ध में इन्द्र की ओर से लड़े थे। भागवत में कालकेयों से इनके युद्ध का वर्णन है। एक कथा के अनुसार पितृशाप के कारण एक बार वसुओं को गर्भवास भुगतना पड़ा, फलस्वरूप उन्होंने नर्मदातीर जाकर 12 वर्षों तक घोर तपस्या की। तपस्या के बाद भगवान शंकर ने इन्हें वरदान दिया। तदनंतर वसुओं ने वही शिवलिंग स्थापित करके स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
वसुओं की उत्पत्ति की कथा :
8 वसुओं में सबसे छोटे वसु ‘द्यो’ ने एक दिन वशिष्ठ की गाय नंदिनी को लालचवश चुरा लिया था। वशिष्ठ को जब पता चला तो उन्होंने आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। वसुओं के क्षमा मांगने पर वशिष्ट ने 7 वसुओं के शाप की अवधि केवल 1 वर्ष कर दी। ‘द्यो’ नाम के वसु ने अपनी पत्नी के बहकावे में आकर उनकी धेनु का अपहरण किया था अत: उन्हें दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने तथा संतान उत्पन्न न करने, महान विद्वान और वीर होने तथा स्त्री-भोग परित्यागी होने को कहा। इसी शाप के अनुसार इनका जन्म शांतनु की पत्नी गंगा के गर्भ से हुआ। 7 को गंगा ने जल में फेंक दिया, 8वें भीष्म थे जिन्हें बचा लिया गया था। लेकिन इससे इतर भी उनकी मनुष्य योनि में जन्म से पूर्व की कथा प्राचीन है।
प्रकृति का मनोरम स्थल –
तीर्थाटन के साथ बसुकेदार क्षेत्र मे पर्यटन की अपार संभावनाऐ है। पहाड़ी ढलानो पर छितरे गावो का मनोरम दृश्य मन मोह लेता है। बसुकेदार से एक रस्ता वीरो देवल चण्डिका मंदिर को जाता है यहा पर भी शंकराचार्य कालीन मंदिरो का छोटा समूह है।