कश्मीर को नासूर बनाने वाली तिकड़ी कौन थी

 

महाराजा हरि सिंह को विलेन की तरह पेश करने वाले नव इतिहासकारों को हमारा देश माफ नहीं कर सकता है।
जम्मू काश्मीर रियासत के आखिरी हिन्दू राजा के बारे में जो गलतफहमियाँ फैलायी गई हैं , उसके अनुसार हरि सिंह ने राज्य का विलय कराने में देरी की थी ,
या फिर …उस वक्त विलय कराने पर मजबूर हुए जब पाकिस्तानी कबाईलियों का आक्रमण  हुआ था ,

या फिर… वे विलय चाहते ही नहीं थे , राज्य को स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे।
काश! कि महाराजा ने अपनी बायोग्राफी लिखवाई होती तो आज कई चेहरे बेनकाब हुए होते।
विलय के बाद उन्हें उस राज्य से निर्वासित होने के लिए मजबूर किया गया था , जिस राज्य से के लोगों के हृदय में अपने लोकप्रिय राजा के प्रति अगाध श्रद्धा थी ।
हिन्दू , बौद्ध और यहाँ तक कि गिलगीत बल्तिस्तान के मुस्लिमों में भी उनके प्रति आदर और प्रेम का भाव था और वे सभी भारत के साथ आने को बिना शर्त और सहर्ष तैयार थे।क्यों वे पहले से ही भारत के अभिन्न हिस्सा रहे  थे। 
बस कोई तैयार नहीं था तो वो था एक कट्टर मुस्लिम और सिर्फ काश्मीर घाटी तक सीमित रहने वाला एक नेता शेख अब्दुल्ला …. वो भारत से जम्मू कश्मीर रियासत को एक अलग स्वायतशासी राज्य बनाने वाले कानूनों की माँग कर रहा था … ऐसे कानून जो भारत के साथ दिखने के बावजूद भी राज्य को भारत से अलग रखे।
महाराजा की छवि को धूमिल करने में माउंटबेटन , शेख अब्दुल्ला और नेहरू की तिकड़ी के षडयंत्रों का बड़ा हाथ रहा ।
रही सही कसर उनके नालायक पुत्र कर्ण सिंह ने पूरी कर दी, नेहरू के विचारों से सम्मोहित कर्ण सिंह को अपना पिता दुश्मन की तरह तथा नेहरू की मुस्लिम शेख-परस्त नीतियाँ राज्य के लिए हितकारी लग रही थीं ।
माउंटबेटन तो खैर विदेशी था जिसकी सत्ता खत्म हो चुकी थी …आखिरी वक्त तक वो दबाव बनाता रहा कि महाराजा हर हाल में राज्य का विलय पाकिस्तान के साथ कर लें । लेकिन महाराजा इसके सख्त खिलाफ थे।
नेहरू तो यहाँ तक ताल ठोके थे कि यदि पूरी घाटी को पाकिस्तान क्यों ना दखल कर ले , शेख को सत्ता मिल जाने के बाद हम घाटी को भारतीय सेना की मदद से खाली करवा लेंगे इतनी ताकत है हमारे में।
लेकिन वे क्या कर पाये थे यह तो सारा देश जानता है , आज पीओके पाक के कब्जे में है।
शेख अब्दुल्ला की मुस्लिम परस्त पार्टी यह दबाव बनाती रही कि महाराजा पहले घाटी छोड़े … क्विट काश्मीर का नारा सालों पहले से बुलंद किए हुए थे शेख अब्दुल्ला (शेख के बारे कहा जाता है कि फारूख शेख और मुहम्मद अली जिन्ना गय्यासुद्दीन गाजी उर्फ गंगाधर के बेटे की एक शेख रखैल के बेटे हैं यानी एक ही मां के बेटे हैं  ) 
इस प्रकार तीनों महाराजा पर दबाव बनाते रहे….
परंतु महाराजा को इन तीनों लफंदरों की शर्तें मंजूर नहीं थी।
यहाँ ध्यान दें , शेख को सिर्फ़ काश्मीर घाटी से ही मतलब था..यानी कि जम्मू , लद्दाख और गिलगित बल्तिस्तान से कोई लेना देना नहीं था … वैसे भी शेख सिर्फ घाटी तक ही सीमित था पर नेहरू उसे पूरे रियासत की सत्ता सौपना चाहते थे।
आखिरकार देश की आजादी के ढाई महीनों बाद महाराजा ने उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए जो विलय पत्र शेष सभी रियासतों के लिए था।
बिना किसी शर्त के हस्ताक्षर किए थे महाराजा ने … पर हाँ , एक लााइन जरूर लिखे थे कि रियासत की सत्ता मुस्लिम परस्त शेख अब्दुल्ला को यदि ना मिले तो उन्हें आत्मिक खुशी होगी।
अठारह वर्षों तक राज्य से निर्वासित होकर मुंबई को अपना ठिकाना बनाने वाले राष्ट्र भक्त महाराजा की अंतिम साँसें एक हाॅस्पिटल के बेड पर जिस वक्त निकल रही थी, बस चंद स्टाफ उनके पास खड़े थे .. अपनी मातृभूमि जम्मू कश्मीर की धरती पर दोबारा कदम रखने और उसकी रज को माथे से लगा पाने की लालसा धरी की धरी रह गई ।
मृत्यु से पहले महाराजा ने अपने परिजनों से एक वचन लिया था कि उनके पार्थिव शरीर को उनका पुत्र कर्ण सिंह हाथ भी ना लगाए … और उनकी अस्थियों को जम्मू की तवी नदी में प्रवाहित की जाए।
1925 में रियासत की सत्ता संभालने वाले एक लोकप्रिय राजा और 1930 के गोलमेज सम्मेलन में अँगरेजों को आँखें दिखाने वाले देशभक्त महाराजा की छवि अब उन गद्दारों और वामपंथी इतिहासकारों की मोहताज नहीं रही।
सत्य परेशान हो सकता है पर परास्त नहीं।
23 सितंबर है महाराजा हरि सिंह का जन्म दिन होता है ,देशभक्त डुग्गरों की धरती पर पैदा हुए ऐसे महाराजा को मैं शत-शत नमन करता हूँ।संजय दुबे
23/09/2017 

Hari Singh was the last ruling Maharaja of the princely state of Jammu and Kashmir in India. He was married four times. With his fourth wife, Maharani Tara Devi, he had one son, Yuvraj Karan Singh #wikipedia 
 Died: 26 April 1961, Mumbai
Spouse: Tara Devi (m. 1928–1950), Rani Sahiba (m. 1915–1920), MORE